‘पीड़ित की गवाही ही काफी, मेडिकल सबूत जरूरी नहीं’ – पीर बाबा को यौन शोषण का दोषी मानते हुए कोर्ट की टिप्पणी..

ये पूरा मामला कश्मीर का है 2016 में एक नाबालिग ने यौन उत्पीड़न का आरोप एजाज अहमद शेख उर्फ पीर बाबा पर लगाया. आरपीसी (रनबीर पीनल कोड) की धारा 377 के तहत मुकदमा चलने लगा. जांच हुई. पता चला कि 2012 से 2016 के बीच एजाज अहमद शेख ने नाबालिग लड़कों के साथ अप्राकृतिक यौन हरकतें कीं. आमतौर पर यौन उत्पीड़न के मामले में दोषी सिद्ध करने के लिए मेडिकल सबूत की जरूरत होती है. मगर कश्मीर के सोपोर के जज मीर वजाहत ने आरोपी को महज पीड़ितों की गवाही पर दोषी माना. ये अपने आप में काफी अहम था.

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तकरीबन नौ साल की सुनवाई के बाद, जम्मू-कश्मीर की एक अदालत ने सोमवार को नाबालिगों का यौन शोषण करने के आरोप में एजाज अहमद शेख को दोषी ठहराया. ये सभी बच्चे धार्मिक शिक्षा के लिए उसके पास आते थे. शेख के खिलाफ 2016 में एक एफआईआर दर्ज की गई थी. कई पीड़ितों के खिलाफ यौन शोषण के आरोपों की जांच के लिए बाद में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया.नाबालिग पीड़ितों को अलौकिक नुकसान का डर दिखाकर उनका यौन उत्पीड़न हुआ.

एक कविता का हिस्सा भी फैसले में शामिल

अदालत ने कहा कि “बचाव पक्ष कोई भी ऐसा ठोस सबूत रखने में नाकाम रहा है, जिसके कारण उसके मुवक्किल को बरी किया जा सके”. फैसले में जज ने एक कविता के कुछ हिस्से को भी शामिल रखा – “विस्पर्स ऑफ फेथ, इकोज ऑफ फियर”. जिसमें लिखा था कि “वह रोशनी के वस्त्र पहने खड़ा था…जिन्न से डरो, लेकिन मुझ पर भरोसा करो, मेरे पास चाबी है, मैं तुम्हें आज़ाद करता हूँ…एक वादा जो अनदेखे जालों में बुना गया, एक दुःस्वप्न जो था उसमें छिपा हुआ था। साल बीत जाएँगे, घाव बने रहेंगे, गूँज दर्द के बीच फुसफुसाएगी”

 

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