संघर्ष की जीत: 36 साल बाद मिला इंसाफ, प्लॉट न अलॉट करने पर हाउसिंग बोर्ड पर 35 लाख रुपये का जुर्माना

कहते हैं “शिद्दत से लड़ी गई न्याय की लड़ाई कभी बेकार नहीं जाती. आज हम आपको एक ऐसे ही संघर्ष से मिली जीत की कहानी बताते हैं. जहां 36 सालों के लंबे संघर्ष के बाद बाद आखिरकार न्याय की जीत हुई, और पीड़ित को इंसाफ मिल गया. राज्य उपभोक्ता आयोग ने हाउसिंग बोर्ड की लापरवाही पर कड़ा रुख अपनाते हुए 35 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है.

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आयोग ने कोलार रोड निवासी बालकृष्ण त्रिपाठी को 35 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है. इसमें 25 लाख रुपये का मानसिक पीड़ा के हर्जाने के रूप में और ₹10 लाख न्यायिक लड़ाई के कानूनी खर्च के लिए शामिल हैं. साथ ही आयोग ने अपने आदेश में यह भी कहा गया है कि हाउसिंग बोर्ड या तो बालकृष्ण को 1392 वर्गफीट का प्लॉट दे या फिर कलेक्टर गाइडलाइन के अनुसार उचित मुआवजा अदा करे.

क्या है पूरा मामला?

यह मामला सन् 1986 का है, जब बालकृष्ण त्रिपाठी ने भोपाल के नेहरू नगर क्षेत्र में स्थित एल-107 एलआईजी प्लॉट को हाउसिंग बोर्ड से लीज पर किया था. ₹10,000 जमा करने के बाद उन्हें पजेशन सर्टिफिकेट भी जारी कर दिया गया, और उन्होंने वहां मकान भी बना लिया. लेकिन कुछ समय बाद एक अन्य व्यक्ति राधा मोहन ने उसी प्लॉट पर अधिकार जताते हुए दावा किया कि वही प्लॉट उन्हें भी अलॉट किया गया है.

कानूनी संघर्ष की लंबी लड़ाई

हाउसिंग बोर्ड से कोई ठोस मदद न मिलने पर बालकृष्ण ने भोपाल के जिला न्यायालय का रुख किया. वहां से राहत न मिलने पर उन्होंने हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में भी अपील की लेकिन हर जगह से मामला खारिज हो गया.

आखिरकार उन्होंने राज्य उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज करवाई. आयोग की पीठ में अध्यक्ष न्यायमूर्ति सुनीता यादव और सदस्य डॉ. श्रीकांत पांडे शामिल थे.आयोग ने माना कि हाउसिंग बोर्ड की प्रशासनिक चूक और लापरवाही के कारण त्रिपाठी को दशकों तक मानसिक तनाव और आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. आयोग ने यह भी कहा कि इतनी लंबी अवधि तक किसी को अपने अधिकार के लिए भटकते रहना एक गंभीर अन्याय है.

सीनियर एडवोकेट दीपेश जोशी ने बताया कि राधा मोहन ने पहले हाउसिंग बोर्ड और बालकृष्ण के विरुद्ध जिला न्यायालय, भोपाल में मुकदमा दायर किया था. इस मुकदमे में निर्णय राधा मोहन के पक्ष में आया. इसके बाद बालकृष्ण ने इस फैसले को उच्च न्यायालय और फिर सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी, लेकिन दोनों ही न्यायालयों ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया. चूंकि उच्च और सर्वोच्च न्यायालय में हाउसिंग बोर्ड और बालकृष्ण के बीच सीधे तौर पर कोई विवाद नहीं उठाया गया था, इसलिए बाद में बालकृष्ण ने हाउसिंग बोर्ड के खिलाफ राज्य उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज करवाई.

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