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सिस्टम से नाराज ग्रामीणों ने बनाया ऐसा पुल, कि इंजीनियर भी हो जाएंगे हैरान, अब 45 किलोमीटर की दूरी 10 किलोमीटर बची

सिस्टम से नाराज ग्रामीणों ने बनाया ऐसा पुल, कि इंजीनियर भी हो जाएंगे हैरान, अब 45 किलोमीटर की दूरी 10 किलोमीटर बची

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कहते है आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है. जिसे सिद्ध कर दिखाया है कांकेर के ग्रामीणो ने. यहाँ ग्रामीणों ने देशी जुगाड़ से, एक पुल तैयार किया है. जिसके बनाने का तरीका देख इंजीनियर भी हैरान रह जाये. 4 पिलहर वाले इस इकोफ्रेंडली पुल को 3 गांव के ग्रामीणों ने मिल कर तैयार किया है. ये देशी जुगाड़ का पुल ग्रामीणों ने प्रशासन के उदासीन रवैये और जिम्मेदारो से नाराज होकर बनाया है. अब यह पुल चर्चा का विषय बना हुआ है.

कांकेर में अभी भी कई ऐसे इलाके है. जहाँ आज तक विकास के पुल तैयार नहीं हो पाये है. इन्ही ग्रामों में है ग्राम परवी और खड़का. इन दोनों गांवो के बीच मंघर्रा नाला पड़ता है. ग्रामीण 15 सालों से इस नाले पर पुल की मांग करते आ रहे है. वर्ष 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे डॉक्टर रमन सिंह से ग्रामीणों ने पुल निर्माण की मांग की थी. आश्वासन दिया गया पर पुल नहीं बना. वर्ष 2019 में सरकार बदल गई. कांग्रेस शासन काल में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पुल निर्माण की घोषणा भी की. पर पुल फिर भी नहीं बन सका.

इकोफ्रेंडली पुल ऐसे बनकर हुआ तैयार

15 सालो की मांग के बाद भी जब किसी ने नहीं सुना तो ग्रामीणों ने खुद ही कुल्हाड़ी उठा ली. तीन गांव खड़का, भुरका और जलहुर के ग्रामीणों ने ठान लिया कि वह खुद के लिए पुल तैयार करेंगे. सभी ने मिलकर बांस-बल्लियों का इंतजाम किया और श्रमदान कर कच्चा पुल तैयार किया. इस कच्चे पुल को बनाने में दो दिनो का वक्त लगा. पहले दिन पुल की मजबूती के लिए 4 पिल्हर तैयार किये. लकड़ियों को अंदर तक मजबूती से फसकर बांस का गोलघेरा बनाया गया. जिसमें काफी संख्या में बड़े-छोटे पत्थरों को डालकर मजबूत किया गया. फिर ऊपर मोटी लकड़ियां, पेड़ के पत्तो की डंगालिया, तार और बांस के टूकड़ो से पुल बनाकर तैयार किया. ताकि बाइक सहित लोग आना जाना कर सके. ग्रामीणों के इस देशी जुगाड़ का पुल, इंजीनियरिंग की अलग ही परिभाषा बतलाने के लिए काफी है.

रोजमर्रा की जरूरतों के लिए जान जोखिम में डालना पड़ता था

ग्रामीणों का कहना है कि इस पुल के आभाव के कारण ग्रामीणों को जान जोखिम मर डालकर नाला को पार रोजमर्रा की चीजें लाना लेजाना पड़ता था. राशन लाना हो, तबियत खराब होने पर किसी को लेकर जाने सहित अन्य जरूरी कार्यो से आने जाने में बेहद परेशानी होती थी. मोटरसाइकल सहित अन्य सामान को कंधे पर डालकर लेकर आना जाना पड़ता था. बारिश के 4 महीने उनके लिए किसी मुसीबत से कम नहीं रहते. पुल के बनने से उन्हें अब 45 किलोमीटर का सफर 10 किलोमीटर कम पड़ेगा.

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