विश्व हिंदू परिषद ने CJI गवई की टिप्पणी पर जताई नाराजगी

विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई की खजुराहो मंदिर परिसर में भगवान विष्णु की प्रतिमा पुनर्स्थापना से जुड़ी याचिका पर टिप्पणी को लेकर कड़ी आपत्ति जताई। विहिप ने कहा कि अदालत को हिंदू धर्म की मान्यताओं का मजाक उड़ाने वाली टिप्पणियों से बचना चाहिए। संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार ने बयान में कहा कि अदालतें भारतीय समाज की आस्था और विश्वास का केंद्र हैं, इसलिए वहां संयम रखना अति आवश्यक है।

प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने याचिका को प्रचार हित याचिका करार देते हुए खारिज कर दिया था। सीजेआई ने कहा कि यदि कोई भगवान विष्णु का सच्चा भक्त है तो प्रार्थना कर सकता है और ध्यान केंद्रित कर सकता है। उन्होंने याचिका पर अपनी टिप्पणी देते हुए कहा कि यह मामला पूरी तरह से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधिकार क्षेत्र में आता है।

याचिका में छतरपुर जिले के जावरी मंदिर में क्षतिग्रस्त मूर्ति को बदलने और उसकी प्राण-प्रतिष्ठा करने की मांग की गई थी। जावरी मंदिर खजुराहो मंदिर परिसर का हिस्सा है, जो यूनेस्को विश्व धरोहर में शामिल है। अदालत ने कहा कि इस मामले में एएसआई का निर्णय निर्णायक होगा और वहीं पूजा-अर्चना की स्वतंत्रता सभी के लिए बनी रहेगी।

सीजेआई गवई ने बाद में सभी धर्मों के प्रति अपना सम्मान दोहराया। उन्होंने कहा कि उनकी टिप्पणियों को सोशल मीडिया पर प्रचारित किया गया है, लेकिन उनका सभी धर्मों के प्रति सम्मान बरकरार है। विहिप ने अदालत से यह आग्रह किया कि भविष्य में ऐसे मामलों में हिंदू धर्म की आस्थाओं को ध्यान में रखते हुए ही बयान दिए जाएँ।

विहिप का मानना है कि न्यायपालिका में टिप्पणियों का प्रभाव व्यापक होता है और इसलिए न्यायालय में बोले गए शब्दों का समाज पर असर गहरा पड़ता है। आलोक कुमार ने कहा कि वादियों, वकीलों और न्यायाधीशों सभी के लिए यह जिम्मेदारी समान है कि समाज की आस्था का सम्मान किया जाए।

इस घटना ने भारतीय समाज में धर्म और न्यायपालिका के बीच संतुलन के महत्व को फिर से उजागर किया है। हिंदू संगठन का संदेश साफ है कि धर्म की मान्यताओं के प्रति संवेदनशीलता बनाए रखना प्रत्येक नागरिक और न्यायपालिका का कर्तव्य है।

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