बकरीद की वजह से किसी को परेशानी ना हो, इसे लेकर वक्फ बोर्ड ने मुस्लिम समुदाय से अपील की है। बोर्ड के अध्यक्ष डॉक्टर सलीम राज ने एक वीडियो संदेश के जरिए समाज के लोगों से संयम के साथ त्योहार मनाने की अपील की है।
कुर्बानी को लेकर वक्फ के अध्यक्ष डॉ. सलीम राज ने कहा कि, यह त्योहार शांति का त्योहार है। भाईचारे का त्योहार है। इसमें बुराई को खत्म करने कुर्बानी दी जाती है। सभी से गुज़ारिश है सोशल मीडिया पर कुर्बानी की तस्वीर और वीडियो पोस्ट न करें।
उन्होंने कहा कि, आस पड़ोस के लोगों को कुर्बानी से तकलीफ न हों इसका ध्यान रखें। सार्वजनिक जगह पर ना करें, अपने घर पर कुर्बानी करें और चारों तरफ से उस जगह को ढककर करें। नालियों में खून न बहाए। कुर्बानी के खून को गड्ढा कर उसे दफनाएं। त्योहार इस तरीके से मनाएं कि हमारे पड़ोसियों को तकलीफ न हो। शासन प्रशासन के नियमों का पालन करें।
एक सपने से जुड़ी इस त्योहार की परंपरा
ईद-उल-अजहा यानी बकरीद का पर्व इस्लाम धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो इस साल 7 जून को मनाया जाएगा। यह त्योहार हजरत इब्राहिम की अल्लाह के प्रति विश्वास का प्रतीक है। इस त्योहार की शुरुआत एक ऐतिहासिक घटना से हुई। हजरत इब्राहिम ने एक सपना देखा जिसमें वे अपने बेटे की कुर्बानी दे रहे थे।
उन्होंने इसे अल्लाह का संदेश माना और अपने बेटे की कुर्बानी देने का निर्णय लिया। उनकी इस निष्ठा को देखकर अल्लाह ने उन्हें बेटे के स्थान पर एक जानवर की कुर्बानी देने का आदेश दिया। बकरीद के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग ईदगाह में सामूहिक नमाज अदा करते हैं। ईदगाह और घरों को सुंदर तरीके से सजाया जाता है।
कुर्बानी के बाद मांस को तीन भागों में बांटा जाता है – एक हिस्सा गरीबों के लिए, दूसरा रिश्तेदारों के लिए और तीसरा अपने परिवार के लिए।
यह त्योहार समाज में भाईचारा और समानता का संदेश देता है। मुस्लिम समुदाय के लोग इस अवसर पर बकरों की देखभाल में विशेष ध्यान देते हैं। कुछ लोग उन्हें सजाते हैं, तो कुछ उन्हें अपना दोस्त मानकर प्यार करते हैं। इस संबंध में कमरुद्दीन गद्दी ने बताया कि, यह कुर्बानी त्याग, समर्पण और अल्लाह के प्रति सच्ची आस्था का प्रतीक मानी जाती है।