मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि इसे उखाड़ फेंकना अब बेहद मुश्किल है. शहडोल के सरकारी कुशाभाऊ ठाकरे जिला अस्पताल में रिश्वत का अनोखा तरीका सामने आया है. जहां मरीजों से पैसे लेकर उनसे पहले ही यह लिखवा लिया जाता है कि हमने कोई रिश्वत नहीं दी यह भ्रष्टाचार की जड़ों को और स्पष्ट करता है. यह उदाहरण बताता है कि भ्रष्टाचार केवल लेन-देन तक सीमित नहीं है, बल्कि अब इसके लिए कानूनी बचाव के रास्ते भी तैयार कर लिए जाते हैं.
दरअसल शहडोल के कुशाभाऊ ठाकरे जिला चिकित्सालय में मरीजों का प्राथमिक इलाज तो सरकारी व्यवस्था के तहत किया जाता है. लेकिन जैसे ही ऑपरेशन या डिलीवरी की बारी आती है डॉक्टर और कर्मचारी परिजनों से मोटी रकम वसूलते हैं. डॉक्टर खुद ही परिजन को यह ऑफर देते हैं कि बाहर ऑपरेशन कराने पर खर्च ज्यादा आएगा जबकि अस्पताल में आधे दाम में काम हो जाएगा. यह मजबूरी मरीजों को ऐसी स्थिति में ला देती है जहां उन्हें रिश्वत देना ही पड़ता है.
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि मरीजों को भर्ती करते समय एक सत्यापन-पत्र थमा दिया जाता है. इस पत्र में लिखा होता है कि इलाज उनकी मर्जी से कराया जा रहा है और किसी को कोई पैसा नहीं दिया गया है. कई बार तो कर्मचारी ही इस पत्र को भर देते हैं और मरीज या परिजन से केवल हस्ताक्षर करा लेते हैं. यानी जुर्म करने से पहले ही बचाव का इंतजाम कर लिया जाता है. गरीब और मजबूर लोग, जिनके पास निजी अस्पताल में जाने की क्षमता नहीं होती उन्हें इन झूठे दस्तावेज़ों पर मजबूरी में हस्ताक्षर करना पड़ता है.
यह मामला सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ है और जनता में गहरी नाराज़गी दिखाई दे रही है. लोगों का कहना है कि जब गरीब और जरूरतमंद को सरकारी अस्पताल में भी राहत नहीं मिल रही, तो वह न्याय कहां ढूंढे. वहीं शहडोल की सिविल सर्जन डॉ. शिल्पी सराफ का कहना है कि यह व्यवस्था पूर्व सिविल सर्जन डॉ. जी.एस. परिहार के समय शुरू की गई थी. जिसे बंद कर दिया गया था. लेकिन अब यह फिर से कैसे लागू हो गई, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है. इस पूरे मामले की गंभीरता से जांच कराई जाएगी और दोषियों पर निश्चित ही कार्यवाही की जाएगी.
मजबूर लोगों का उठा रहे फायदा
सबसे पहली जड़ है संस्थागत कमजोरी. सरकारी विभागों में पारदर्शिता की भारी कमी है. अस्पतालों, विद्यालयों, पंचायतों या राजस्व विभागों में प्रक्रियाएं इतनी जटिल और अस्पष्ट हैं कि जनता अक्सर बेबस हो जाती है. इसका फायदा उठाकर कर्मचारी और अधिकारी लोगो से सुविधा शुल्क के नाम पर रिश्वत लेते हैं. दूसरी जड़ है गरीबी और मजबूरी. गरीब और अशिक्षित लोग जब अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं होते तो भ्रष्टाचार को मजबूरी में स्वीकार कर लेते हैं. शहडोल का मामला इसका जीता-जागता उदाहरण है. जहां गरीब गर्भवती महिलाएं मजबूरी में रिश्वत देती हैं क्योंकि वे निजी अस्पताल का खर्च वहन नहीं कर सकतीं और सरकारी अस्पताल में इलाज कराने के लिए मजबूर हैं.
इसलिए फैला है भ्रष्टाचार
तीसरी जड़ है राजनीतिक संरक्षण. भ्रष्टाचार अक्सर प्रशासनिक तंत्र में इसलिए फलता-फूलता है क्योंकि भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारी सत्ता के संरक्षण में काम करते हैं. जब सजा का भय खत्म हो जाता है तो भ्रष्टाचार को और बढ़ावा मिलता है. चौथी जड़ है जांच और कार्रवाई की ढिलाई. भ्रष्टाचार के मामले अक्सर लंबी जांच और धीमी न्यायिक प्रक्रिया में दब जाते हैं. कई बार तो शिकायतकर्ता को ही परेशान किया जाता है. परिणाम यह होता है कि भ्रष्टाचारियों को खुली छूट मिल जाती है और जनता निराश होकर चुप्पी साध लेती है. पांचवीं जड़ है सामाजिक चुप्पी और डर. बहुत बार लोग रिश्वत को एक सामान्य प्रक्रिया मान लेते हैं. वे सोचते हैं कि बिना पैसा दिए उनका काम नहीं होगा. यह मानसिकता भ्रष्टाचार को प्रथा में बदल देती है.