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‘हम युद्ध करना चाहते हैं…’ दफ्तर की नौकरी में नहीं लग रहा तालिबानियों का मन

तालिबानी लड़ाके 9 टू 5 की नौकरी से खासा परेशान हैं, उन्हें दफ्तर का काम बोरिंग लग रहा है. करीब 3 साल पहले दुनिया सबसे ताकतवर देशों में से एक अमेरिका को खदेड़कर तालिबानियों ने अफगानिस्तान में अपनी हुकूमत कायम की थी. लेकिन बंदूक, मोर्टार और बम चलाने वाले लड़ाकों को कागज-कलम चलाने में बोरियत महसूस हो रही है.

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करीब 15 साल तक तालिबान के लिए युद्ध लड़ने वाले 38 साल के मुल्ला जनान को नवंबर 2021 में एक स्थानीय जिला कार्यालय में डेस्क जॉब की पेशकश की गई थी, वो इस नौकरी को उबाऊ बताते हुए कहते हैं कि, ‘हमें इतनी जल्दी देश पर कब्जा करने की उम्मीद नहीं थी, इसलिए हमें देश पर पर्याप्त रूप से शासन करने के बारे में सोचने का कभी मौका नहीं मिला.’ वो कहते हैं इस काम में युद्ध जैसा रोमांच नहीं है.

‘हम युद्ध के लिए तरस रहे हैं’

करीब 2 दशक के संघर्ष के बाद अफगानिस्तान में तालिबानी शासन की वापसी हुई, ऐसे में जंग में महारत हासिल करने वाले लड़ाकों का दफ्तर की नौकरी में मन नहीं लग रहा है. लंबे संघर्ष के बाद मिली शांति उन्हें रास नहीं आ रही है, मुल्ला जनान कहते हैं कि युद्ध का एक अलग रोमांच था, लेकिन यह काम वैसा नहीं लग रहा जैसा मैंने सोचा था. उन्होंने कहा कि हमें इतनी जल्दी देश पर कब्ज़ा करने की उम्मीद नहीं थी, इसलिए हमें देश पर उचित शासन करने के बारे में सोचने का कभी मौका नहीं मिला.

मुल्ला जनान कहते हैं कि कभी-कभी मैं खुद से पूछता हूं कि मैं वास्तव में क्या कर रहा हूं. मुझे युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया गया था, एक योद्धा बनने के लिए न कि चाय की चुस्कियां लेते हुए डेस्क के काम के लिए. मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा है कि, ‘मैं अपने लड़ाकों को युद्ध में ले जाना चाहता हूं, गोलियों की तड़तड़ाहट, फटते हुए गोला-बारूद की आवाजों को हम याद करते हैं.”

मुल्ला जनान कहते हैं कि अब मैं युद्ध के लिए तरसता हूं. उनके पास एक बंदूक है, जिसे लेकर वह अपने बेटे के साथ पहाड़ पर जाते हैं और गोलियां चलाते हैं. उन्हें अब जिहाद की याद आती है, जब वे खिड़की के बाहर शांत और धूल भरी सड़कों को देखते हैं, तो उन्हें खालीपन महसूस होता है.

फिलिस्तीन के लिए जंग लड़ने की इच्छा

ऐसा ही कुछ हाल तालिबान के कुछ और लड़ाकों का है, दक्षिणी कंधार के 29 वर्षीय मुल्ला अहमद गुल अगस्त 2021 से पहले एक पैदल सैनिक थे, उन्हें तालिबान सरकार ने स्थानीय जिला गवर्नर दफ्तर में नौकरी दी गई थी क्योंकि वह पढ़ सकते थे, लिख सकते थे और इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकते थे. लेकिन वह अपनी इस नौकरी से खुश नहीं हैं. उन्हें एक सार्थक भूमिका चाहिए. अहमद गुल कहते हैं कि, “मैं जिहाद से दूर दफ्तर की नौकरी से ऊब गया हूं, वैसे तो मुझे युद्ध पसंद नहीं है लेकिन अगर मुझे फ़िलिस्तीन जाकर लड़ने का मौका मिले, तो यह बहुत अच्छा होगा.

कमोबेश यही हाल मैमाना शहर में मुल्ला मोहम्मद का है, उन्हें अपने पद और जिम्मेदारियों के बारे में भी ज्यादा जानकारी नहीं है. 36 साल के मुल्ला मोहम्मद को यह नौकरी इसलिए मिली क्योंकि युद्ध के दौरान वह साहसी था. मुल्ला मोहम्मद कहते हैं कि वह अपनी नौकरी से खुश नहीं हैं, वो पंजशीर जाना चाहते हैं क्योंकि वहां तालिबानी शासन के खिलाफ छिटपुट विद्रोह होता रहता है, लिहाजा उन्हें वहां लड़ने का मौका मिल सकता है. मुल्ला मोहम्मद कहते हैं कि मुझे कोई सार्थक भूमिका नहीं दी गई है, मैं अब जो कर रहा हूं वह सिर्फ़ खुद को व्यस्त रखने के लिए है. वो कहते हैं, कि, ‘दफ्तर में बैठना मेरा काम नहीं है, मैं तो जंग लड़ना चाहता हूं.’

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