विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को कहा कि भारत ने तब भी किसी के साथ गठजोड़ नहीं किया था जब वह बहुत कमजोर था, और आज तो ऐसा करने की कोई वजह नहीं है. उन्होंने कहा कि कुछ देशों के व्यवहार ने “स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी” यानी रणनीतिक स्वायत्तता के विचार को और मजबूत किया है.
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) में आयोजित अरावली समिट में बोलते हुए जयशंकर ने कहा कि भारत को दक्षिण एशिया में हर संकट के समय “गो-टू ऑप्शन” बनना होगा. उन्होंने कहा कि राजनीतिक अस्थिरता के इस दौर में भारत को “कोऑपरेशन के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर” खुद तैयार करना होगा.
जयशंकर ने कहा, ‘यही नायबरहुड फर्स्ट पॉलिसी का सार है. भारत को इस उपमहाद्वीप में हर संकट में पहला विकल्प बनना चाहिए. विभाजन के परिणामस्वरूप जो रणनीतिक क्षरण हुआ है, उसे दूर करना होगा.”
वैश्विक अस्थिरता पर रणनीति के साथ आगे बढ़ना होगा
वैश्विक हालात पर बात करते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि आज दुनिया सहयोग के वादे से हटकर प्रतिस्पर्धा की दिशा में बढ़ रही है. उन्होंने कहा कि “यह सब कुछ के हथियारकरण से प्रेरित है. सभी देशों के सामने कठिन चुनौतियां हैं. भारत को इस अस्थिरता के बीच अपनी रणनीति बनाकर लगातार आगे बढ़ना होगा. असली चुनौती इस जटिल परिदृश्य को सही तरह से पढ़ने की है.”
हम अपना नैरेटिव खुद गढ़ना होगा
जेएनयू के पूर्व छात्र रहे जयशंकर ने कहा कि भारत को अपने हितों की रक्षा करते हुए वैश्विक प्रोजेक्शन में लगातार आगे बढ़ना चाहिए. उन्होंने कहा, “भारत की दृष्टि से डिमांड, डेमोग्राफिक्स और डेटा जैसे कारक उसकी प्रगति को आगे बढ़ाएंगे. हमें 2047 की यात्रा के लिए अपने विचार, शब्दावली और नैरेटिव खुद गढ़ने होंगे.”
जयशंकर ने जेएनयू के School of International Studies (SIS) को सलाह दी कि उसे अपनी भूमिका और जिम्मेदारी को नए स्तर पर लेकर जाना चाहिए ताकि भारत एक अग्रणी शक्ति के रूप में उभर सके. उन्होंने कहा, “SIS भारत की क्षमता निर्माण में अग्रणी रहा है और इसने देश में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन को प्रेरित किया है. अब इसे विकसित भारत के लक्ष्य की दिशा में योगदान देना होगा.”