भाषाई विवाद और भाषाई अस्मिता की बहस के बीच इंडिया ब्लॉक के क्षेत्रीय दलों ने भाषा को लेकर अहम फैसला किया है. क्षेत्रीय दल लोकसभा में पहलगाम हमले, ऑपरेशन सिंदूर और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयानों पर होने वाली बहस में अपनी मातृभाषा में अपनी बात रखेंगे. डीएमके के सांसद तमिल में, टीएमसी के सांसद बांग्ला में और शिवसेना (उद्धव ठाकरे) के सांसद मराठी में बहस में हिस्सा लेंगे
तमिलनाडु की पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) ने फैसला किया कि बहसों में मूलतः तमिल भाषा का प्रयोग करेंगे. यदि जरूरत पड़ी तो अंग्रेजी का सहारा लिया जा सकता है, लेकिन हिंदी भाषा के इस्तेमाल से पूरी तरह से परहेज करेंगे.
डीएमके लगातार भाजपा पर हिंदी थोपने का आरोप लगाती रही है और डीएमके के नेता और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने त्रिभाषा नीति का विरोध किया था और केंद्र सरकार पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया था. तमिलनाडु में हिंदी के विरोध में आंदोलन होते रहे हैं.
TMC सांसद बांग्ला में बहस में लेंगे हिस्सा
इसी तरह से पश्चिम बंगाल की सत्तारूठ पार्टी तृणमूल कांग्रेस के सांसद भी बहस में मूलतः बांग्ला भाषा में बोलेंगे. बीच में अंग्रेजी का इस्तेमाल हो सकता है, लेकिन हिंदी के इस्तेमाल से परहेज करेंगे. हाल के दिनों में ममता बनर्जी और टीएमसी ने केंद्र सरकार पर बांग्लाभाषियों पर भाषा के नाम पर अत्याचार करने का आरोप लगाया है.
ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि बांग्ला भाषा बोलने पर ही बंगाल के लोगों को बांग्लादेशी करार दिया जा रहा है. उनके साथ मारपीट की जा रही है और कई बांग्लाभाषियों को बांग्लादेशी करार देकर बांग्लादेश को डिपोर्ट कर दिया जा रहा है.
मराठी में बोलेंगे शिवसेना (UBT) के सांसद
इसके साथ ही इंडिया ब्लॉक के अन्य घटक दल शिवसेना-उद्धव के सांसदों ने भी फैसला किया कि बहस में मूलतः मराठी भाषा में बोलेंगे, बीच में अंग्रेजी का इस्तेमाल हो सकता है, लेकिन हिंदी का इस्तेमाल नहीं करेंगे. महाराष्ट्र में भाषाई विवाद तूल पकड़ा हुआ है.
महाराष्ट्र सरकार ने त्रिभाषा नीति लागू की थी. इसके तहत कक्षा एक से पांचवीं तक हिंदी भाषा पढ़ने को अनिवार्य कर दिया गया था, लेकिन उद्धव ठाकरे की पार्टी और राज ठाकरे की पार्टी मनसे ने इसका कड़ा विरोध किया और विरोध के बाद फडणवीस सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा, लेकिन इसके बावजूद महाराष्ट्र में भाषा विवाद थमने को नाम नहीं ले रहा है और मराठी नहीं बोलने पर गैर मराठी भाषी लोगों के साथ मारपीट की घटनाएं घट चुकी है.
इंडिया गठबंधन के क्षेत्रीय दलों दलों लिया गया यह फैसला राजनीतिक प्रतीकवाद और भाषाई अस्मिता के प्रदर्शन के रूप में दिखा जा रहा है. विपक्षी गठबंधन की ओर से बार-बार केंद्र सरकार पर “हिंदी थोपने” का आरोप लगाया जाता रहा है. इन पार्टियों का आरोप है कि भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है और यहां सभी भाषाओं खासकर मातृभाषा को प्राथमिकता मिलनी चाहिए.