राधारानी को लेकर की गई टिप्पणी मामले में बढ़ते विवाद को लेकर कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया है. सीहोर के कुबेरेश्वर धाम में एक प्रेस वार्ता के आयोजन के दौरान कथावाचक इस विवाद में कुछ भी कहने से बचते नजर आए.
उन्होंने पत्रकार वार्ता शुरू होने के पहले स्पष्ट कर दिया कि कोई भी चर्चा हम यहां पर नहीं करेंगे. कुछ भी कहने से पहले ही मना कर दिया. प्रदीप मिश्रा ने सिर्फ कुबेरेश्वर धाम में गुरु पूर्णिमा महोत्सव और कांवड़ यात्रा को लेकर ही जानकारी दी.
World War 3 will be for language, not land! pic.twitter.com/0LYWoI3K0r
— India 2047 (@India2047in) July 4, 2025
पंडित प्रदीप मिश्रा ने आगे बताया कि गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर हर साल की तरह इस साल भी कुबेरेश्वरधाम पर सात दिवसीय शिव महापुराण का आयोजन किया जाएगा.
कथा 14 जुलाई से 20 जुलाई तक जारी रहेगी और इसके पश्चात 21 जुलाई को यहां पर आने वाले श्रद्धांलुओं को दीक्षा देने का आयोजन किया जाएगा. इसके अलावा 17 अगस्त को कांवड़ यात्रा के बारे में बताया गया.
वहीं, 17 अगस्त को निकलने वाली कांवड़ यात्रा के बारे में पंडित प्रदीप मिश्रा ने बताया. भव्य यात्रा में आधा दर्जन से अधिक ग्रामीणों के अलावा हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं के सौ से अधिक ढोल-बाजे, भगवान शंकर के डमरू और DJ आदि के साथ पूरे शहरी और ग्रामीण क्षेत्र को भगवा रंग से सराबोर कर दिया जाएगा.
पता हो कि पंडित प्रदीप मिश्रा की एक टिप्पणी को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. उत्तर प्रदेश के मथुरा में ब्रज के संतों, महंतों और धर्माचार्यों ने महापंचायत आयोजित कर कथावाचक के बयान का विरोध किया है.
बरसाना में हुई महापंचायत में निर्णय किया है कि अगर कथावाचक प्रदीप मिश्रा अपनी टिप्पणी को लेकर माफी नहीं मांगते हैं तो उनका हर स्तर पर विरोध किया जाएगा. उनके कथा के कार्यक्रमों हों, वहां उनके विरोध के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया पर भी उनका विरोध किया जाएगा.
महापंचायत की अध्यक्षता करने वाले संत रमेश बाबा बोले, ”प्रदीप मिश्रा ने कहा है कि राधानी भगवान श्रीकृष्ण की धर्मपत्नी नहीं थीं. उनका विवाह छाता निवासी अनय घोष संग हुआ था. बरसाना राधारानी का गांव नहीं है. दरअसल, उनके पिता बृषभानु वर्ष में एक बार बरसाना में कचहरी लगाने आते थे, इसलिए बरसाना नाम पड़ा.” इस टिप्पणी को लेकर ही प्रदीप मिश्रा के खिलाफ ब्रज में उबाल है. इससे पहले प्रेमानंद महाराज ने भी प्रदीप मिश्रा का विरोध किया था.