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200 गाड़ियों का काफिला, ओपन फायरिंग और 3 दिन में 82 मौतें… पाकिस्तान में ऐसा क्या हुआ कि भिड़ गए शिया और सुन्नी

पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह के कुर्रम जिले में जबरदस्त सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई है. इस हिंसा में अब तक 80 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. 150 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. न्यूज एजेंसी एएफपी के मुताबिक, कुर्रम में कई महीनों से शिया और सुन्नी के बीच टकराव होता रहा है. इस कारण 300 से ज्यादा परिवार यहां से पलायन कर चुके हैं.

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शिया और सुन्नी के बीच ये हिंसा पिछले गुरुवार से शुरू हुई थी. ये तब शुरू हुआ, जब शियाओं के एक काफिले पर गोलीबारी हुई. इस गोलीबारी में 40 से ज्यादा शियाओं की मौत हो गई थी. इसके बाद से ही कुर्रम में शिया और सुन्नी के बीच खूनखराबा जारी है.

दर्जनों मौतों के बाद रविवार को दोनों गुटों के बीच 7 दिन का सीजफायर हो गया है. खैबर पख्तूनख्वाह की सरकार ने एक हाईलेवल कमीशन बनाने का फैसला लिया है, ताकि शिया और सुन्नी के बीच का विवाद सुलझाया जा सके.

कैसे शुरू हुआ ये पूरा खूनखराबा?

ये सारा खूनखराबा 21 नवंबर से शुरू हुआ. शियाओं को ले जा रही 200 गाड़ियों पर घात लगाकर हमला किया गया. शियाओं का ये काफिला पेशावर से पाराचिनार जा रहा था. इन पर कुर्रम जिले के बेगन टाउन पर हमला हुआ था.

पाकिस्तानी अखबार ‘डॉन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, काफिले पर घात लगाकर चार तरफ से हमला किया गया था. इस हमले में बचे 14 साल के मुहम्मद ने डॉन को बताया कि लगभग आधे घंटे तक हमला होता रहा.

अजमीर हुसैन उन लोगों में थे, जो इस हमले में घायल हो गए थे. उन्हें इलाज के लिए अस्पताल लाया गया था. उन्होंने एएफपी को बताया कि अचानक गोलीबारी शुरू हो गई. उन्होंने बताया कि पांच मिनट तक गोलीबारी होती रही.

पिछले हफ्ते शुरू हुई इस हिंसा में 82 लोगों के मारे जाने की खबर है. जबकि 150 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. एक अधिकारी ने बताया कि मारे गए लोगों में 16 सुन्नी और 66 शिया हैं. एएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक, हिंसा के बाद से तकरीबन 300 परिवार पलायन कर चुके हैं. उन्हें पेशावर और हंगू में रखा गया है.

पर ये हमला क्यों?

अफगानिस्तान की सीमा से लगने वाले कुर्रम जिले में सांप्रदायिक हिंसा का लंबा इतिहास रहा है. यहां अक्सर शिया और सुन्नी के बीच जमीन विवाद को लेकर तनाव बना रहता है. इसी साल 12 अक्टूबर को दोनों गुटों के बीच हिंसक झड़प हुई थी. दोनों के बीच गोलीबारी हुई थी. इस हिंसा में दो महिलाओं और एक बच्चे समेत 15 लोगों की मौत हो गई थी. डॉन ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि 21 नवंबर की गोलीबारी इसी हमले का बदला लेने के लिए हुई थी.

लड़ाई किस बात पर?

कुर्रम जिला कबीलाई इलाका है. 2023 तक यहां की अनुमानित आबादी 7.85 लाख के आसपास थी. इनमें से 99% तुरी, बंगश, जैमुश्त, मंगल, मुकबाल, मसुजाई और परचमकनी जनजाति है. तुरी और बंगश शिया हैं, जबकि बाकी सुन्नी हैं. कुर्रम में लगभग 45 फीसदी शिया हैं. शियाओं की ज्यादातर आबादी अपर कुर्रम में रहती है, जबकि लोअर और सेंट्रल कुर्रम में सुन्नियों का दबदबा है. एक वक्त था जब लोअर और सेंट्रल कुर्रम में भी शियाओं का दबदबा था. लेकिन अब वो सिर्फ अपर कुर्रम तक ही सीमित हैं.

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, कुर्रम की डेमोग्राफी तब बदलनी शुरू हुई, जब 1980 के दशक में अफगानिस्तान के शरणार्थियों का आना शुरू हुआ. यही वो दौर था जब सोवियत संघ से लड़ने के लिए पाकिस्तान और अमेरिका समर्थित मुजाहिदिनों की फौज कुर्रम में खड़ी हुई. 90 के दशक में जैसे ही अफगानिस्तान में तालिबान उभरा, उसने कुर्रम में अपने सुन्नी मुजाहिदिनों को हथियार देना शुरू किया, जिससे यहां हिंसक घटनाएं और बढ़ गईं.

पाकिस्तान एक सुन्नी बहुल देश है. 2001 में जब अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया तो वहां से लाखों की संख्या में सुन्नी भागकर पाकिस्तान आए. पाकिस्तान के कई इलाकों में अफगानी सुन्नी बस गए. लेकिन कुर्रम के शियाओं ने सुन्नियों का यहां नहीं आने दिया. इस कारण संघर्ष और बढ़ा. हालांकि, 1997 से 1988 तक जब पाकिस्तान में जनरल जिया उल-हक की सैन्य सरकार थी, तो शियाओं को कमजोर करने के लिए अफगानिस्तान से आए सुन्नियों को कुर्रम में शरण दी गई.

अप्रैल 2007 में कुर्रम में शिया और सुन्नी के बीच कई खूनी झड़पें हुईं. इस बीच 2008 में शिया विरोधी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान यानी टीटीपी नाम से आंतकी संगठन बना, जिसने हिंसा को और बढ़ा दिया.

लगभग चार साल तक चली इस लड़ाई में दो हजार से ज्यादा लोग मारे गए. आखिरकार 2011 में एक शांति समझौता हुआ, लेकिन इसके बावजूद छिटपुट हिंसा जारी रही. 2021 में जब तालिबान ने फिर अफगानिस्तान पर कब्जा किया, तो यहां हिंसा शुरू हो गई.

कुर्रम में खूनखराबा

कुर्रम में सांप्रदायिक हिंसा की वजह सिर्फ यहां की स्थानीय आबादी ही नहीं है. बल्कि यहां हिंसा के पीछे कथित रूप से सऊदी अरब और ईरान को भी जिम्मेदार माना जाता है. सऊदी अरब जहां सुन्नी बहुल मुल्क है, वहीं ईरान शियाओं का देश है.

पाकिस्तान के सेंटर फॉर स्ट्रैटजिक एंड कंटेम्पररी रिसर्च की रिपोर्ट बताती है कि सऊदी अरब ने कुर्रम में सुन्नी उग्रवादी संगठनों का साथ दिया. जबकि, ईरान ने यहां शिया संगठनों को बढ़ावा दिया. ईरान ने यहां जैनबियुन ब्रिगेड नाम से एक संगठन खड़ा किया है, जो तालिबान समर्थित संगठनों के खिलाफ लड़ता है. पाकिस्तान सरकार ने जैनबियुन ब्रिगेड को आतंकी संगठन घोषित कर रखा है.

पाकिस्तान सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 2007 से 2011 के बीच कुर्रम में शिया और सुन्नी की लड़ाई में दो हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे, जबकि पांच हजार से ज्यादा घायल हुए थे. इस दौरान दस हजार से ज्यादा लोग विस्थापित हुए थे. इसी साल जुलाई में पाराचिनार में शिया और सुन्नी के बीच हिंसक संघर्ष हुआ था, जिसमें करीब 50 लोगों की मौत हो गई थी.

दुनियाभर में जारी है शिया-सुन्नी में संघर्ष

शिया और सुन्नी के बीच संघर्ष मजहबी है. दोनों ही कुरान और शरीयत को मानते हैं. हालांकि, इसके बावजूद प्यू रिसर्च का एक सर्वे बताता है कि ज्यादातर सुन्नी शियाओं को मुस्लमान नहीं मानते. दोनों के बीच ये संघर्ष पैगम्बर मोहम्मद की मृत्यु के बाद से ही जारी है. पैगम्बर मोहम्मद की मृत्यु के बाद शिया एक ओर हजरत अली इब्न अली तालिब को तो सुन्नी अबू बकर को अपना ‘खलीफा’ मानते हैं.

शिया और सुन्नी के बीच संघर्ष की असली वजह ‘खलीफा’ को लेकर है. सुन्नी उन सभी को पैगंबर मानते हैं, जिनका जिक्र कुरान में है. लेकिन उनके लिए आखिरी पैगंबर मोहम्मद ही थे. जबकि, शिया दावा करते हैं कि पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु के बाद उनके दामाद अली को ही खलीफा घोषित किया जाना चाहिए था. मुसलमानों का आखिरी नेता या खलीफा किसे होना चाहिए, इसे लेकर ही शिया और सुन्नी में संघर्ष होता रहता है.

काउंसिल ऑफ फॉरेन रिलेशन (सीएफआर) के मुताबिक, सुन्नी और शिया में मतभेद होने के बावजूद शांति बनी थी, लेकिन 20वीं सदी की शुरुआत के बाद दोनों में तनाव ज्यादा बढ़ गया. 1979 में ईरान की इस्लामिक क्रांति ने इस विवाद को और बढ़ा दिया.

सीएफआर के मुताबिक, दुनियाभर में 85 फीसदी आबादी मुस्लिम है और सिर्फ 15 फीसदी ही शिया हैं. सीआईए की वर्ल्ड फैक्टबुक का अनुमान है कि पाकिस्तान की 96.5% मुस्लिम आबादी में से 85 से 90% सुन्नी और 10 से 15% शिया हैं.

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