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क्या होती है ‘क्रीमी लेयर’, SC-ST पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जानें क्या पड़ेगा असर?

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को आरक्षण के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के तहत आरक्षण कोटे के अंदर कोटा का उप वर्गीकरण करने की अनुमति प्रदान की है. राज्यों के पास इन श्रेणियों की वंचित जातियों के विकास के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में उप-वर्गीकरण करने का अधिकार दिया गया है.

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सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई ने अपने फैसले में कहा कि राज्यों को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत भी क्रीमी लेयर की पहचान करनी चाहिए, ताकि ऐसे लोगों को आरक्षण की सुविधा नहीं मिल सके.

वहीं, खंडपीठ के दूसरे जज जस्टिस विक्रम नाथ कहा कि जिस तरह से अन्य पिछड़े वर्ग श्रेणी में क्रीमी लेयर सिद्धांत लागू होता है, उसी तरह अनुसूचित जाति और जनजाति में क्रीमी लेयर का नियम लागू होना चाहिए.

क्या है क्रीमी लेयर?

अन्य पिछड़े वर्ग कैटगरी के तहत मिलने वाले आरक्षण के लिए क्रीमी लेयर शब्द का इस्तेमाल किया जाता है. क्रीमी लेयर के तहत उन लोगों को शामिल किया जाता है, जो आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक रूप से उसी कैटगरी के पिछड़े लोगों के मुकाबले संपन्न हैं. क्रीमी लेयर के तहत आने वाले वाले लोगों को रोजगार और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है.

साल 1971 में सबसे पहले सत्तानाथन आयोग द्वारा ‘क्रीमी लेयर’ शब्द का इस्तेमाल किया था. सत्तानाथन आयोग ने निर्देश दिया था कि अन्य पिछड़े वर्ग के तहत क्रीमी लेयर में आने वाले लोगों को सिविल सेवा के पदों पर नियुक्ति के लिए आरक्षण के दायरे से बाहर रखा जाए.

माता-पिता की आय को ध्यान में रखते हुए इसे क्रीमी और नॉन क्रीमी लेयर में विभाजित किया गया है. अगर अन्य पिछड़े वर्ग के व्यक्ति के परिवार की आय 8 लाख से अधिक है, तो व्यक्ति क्रीमी लेयर के अंतर्गत आता है. अगर आय 8 लाख से कम है, तो व्यक्ति नॉन क्रीमी लेयर के अंतर्गत आता है.

कैसे तय होता है क्रीमी लेयर?

साल 1992 के इंदिरा साहनी मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी के क्रीमी लेयर के मानदंड निर्धारित करने के लिए एक विशेषज्ञ कमेटी का गठन किया था. यह कमेटी सेवानिवृत्त जज आरएन प्रसाद के नेतृत्व में गठित की गई थी.

इस कमेटी के सुझाव पर 8 सितंबर 1993 को, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने ओबीसी के क्रीमी लेयर के लिए कुछ निर्देश जारी किए हैं. यह निर्देश आय, स्थिति और रैंक की श्रेणियों के तहत सूचीबद्ध किया गया है. इनके अंतर्गत आने वाले अन्य पिछड़े वर्ग के सदस्य के बच्चों को आरक्षण का लाभ नहीं देने की बात कही गयी है.

क्रीमी लेयर के लिए आय सीमा 8 लाख

साल 1971 में गठित सत्तानाथन कमेटी ने क्रीमी लेयर के तहत अन्य पिछड़े परिवारों की सभी स्रोतों से माता-पिता की कुल वार्षिक आय एक लाख रुपये प्रति साल निर्धारित की थी. साल 2014 में इसमें संशोधन हुआ और यह राशि बढ़कर 2.5 लाख रुपये हो गई.

बाद में साल 2008 में यह राशि 4.5 लाख रुपए, साल 2013 में यह राशि 6 लाख रुपए और साल 2017 में यह राशि बढ़कर 8 लाख रुपये प्रतिवर्ष हो गई. डीओपीटी ने यह तय किया था कि यह आय सीमा हर तीन साल में संशोधित होगी, लेकिन संशोधन तीन साल से अधिक हो गये हैं, लेकिन इसमें संशोधन नहीं किया गया है.

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ओबीसी के तहत क्रीमी लेयर की सीमा 15 लाख रुपये प्रति वर्ष की सिफारिश की थी, लेकिन अभी तक यह लंबित है. केंद्र सरकार इसे 12 लाख करने पर सहमत हुई है, लेकिन गतिरोध बना हुआ है.

क्रीमी लेयर में कौन-कौन लोग आते हैं?

  1. अन्य पिछड़े वर्ग का वह व्यक्ति जो सरकारी कर्मचारी नहीं हैं. उसके माता-पिता की वार्षिक आय 8 लाख रुपये प्रति साल हैं.
  2. जिनके माता-पिता गवर्नमेंट जॉब में हैं और उनका पद व रैंक प्रथम श्रेणी के अफसर का हो.
  3. 14 अक्टूबर 2004 को जारी डीओपीटी में क्रीमी लेयर का निर्धारण करते समय वेतन या कृषि जमीन से होने वाली आमदनी को शामिल नहीं किया गया है, हालांकि अन्य मापदंडों को इसमें शामिल किया गया है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का क्या होगा असर?

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद राज्य सरकारें अब अनुसूचित जाति और जनजाति के कोटे के अंदर कोटा बना पाएंगी और यह पूरी तरह से वैधानिक होगा. इसके अलावा अनुसूचित जाति और जनजाति श्रेणी के तहत क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए एक कमेटी का गठन होगा, जो क्रीमी लेयर के तहत कुल वार्षिक आय का निर्धारण करेगी.

इससे अनुसूचित जाति और जनजाति के ऐसे लोगों को आरक्षण से वंचित किया जा सकेगा, जो आर्थिक रूप से समृद्ध हैं. इस फैसले से दलितों के अंदर महादलित का वर्गीकरण किया जा सकता है, जैसे पिछड़ों के अंदर अन्य पिछड़े वर्ग का वर्गीकरण किया गया है.

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