इंटरफेथ शादियों पर क्या है कानून? इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला- बिना धर्म परिवर्तन अंतर-धार्मिक शादी अवैध

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए बीते दिनों कहा कि बिना धर्म परिवर्तन के अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोगों के बीच की गई शादी अवैध मानी जाएगी. धर्मांतरण और लव जिहाद को लेकर चल रही बहस के बीच हाईकोर्ट का यह फैसला देशभर में चर्चा का विषय बन चुका है. मैरिज सर्टिफिकेट जारी करने वाले आर्य समाज जैसे संस्थानों को ध्यान में रखते हुए अदालत ने यह फैसला दिया है, क्योंकि ऐसे संस्थान फीस या दक्षिणा लेकर किसी को भी मैरिज सर्टिफिकेट जारी कर देते हैं.

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कोर्ट ने सरकार से मांगी रिपोर्ट

जस्टिस प्रशांत कुमार की सिंगल बेंच ने इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए उत्तर प्रदेश के होम सेक्रेटरी को आदेश दिया है कि उन आर्य समाज सोसायटियों की जांच डीसीपी स्तर के IPS अफसर से कराई जाए, जो अलग-अलग धर्मों के लोगों या नाबालिग जोड़ों को मैरिज सर्टिफिकेट जारी कर रही हैं. कोर्ट ने इस आदेश के पालन और इससे संबंधित रिपोर्ट 29 अगस्त तक हलफनामे के साथ पेश करने के भी निर्देश दिए हैं. ऐसे में जानते हैं कि देश में अंतर-धार्मिक विवाह को लेकर क्या कानून है.

देश में अंतर-धार्मिक या इंटरफेथ शादियां विशेष तौर पर स्पेशल मैरिज एक्ट-1954 और विभिन्न धार्मिक पर्लनल लॉ के अंतर्गत आती हैं. इस कानून के तहत अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोग बिना धर्म परिवर्तन किए शादी कर सकते हैं. इस एक्ट के तहत, अलग-अलग धर्मों के लोग अपनी धार्मिक पहचान को बनाए रखते हुए भी शादी कर सकते हैं. इसके लिए कपल को मैरिज नोटिस देना होता है, जो रजिस्ट्रार के पास 30 दिन के लिए सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित होता है.

क्या कहता है कानून?

इस दौरान अगर किसी भी पक्ष से कोई आपत्ति नहीं आती तो मैरिज रजिस्टर कर ली जाती है. दोनों पक्षों की सहमति और न्यूनतम उम्र, यानी पुरुष के लिए 21 साल और महिला के लिए 18 साल होना जरूरी है. यह एक्ट धर्मनिरपेक्ष है और इसके लिए किसी भी धार्मिक अनुष्ठान की जरूरत नहीं होती. यह कानून अंतर-धार्मिक जोड़ों को कानूनी मान्यता और सुरक्षा देता है, बशर्ते विवाह की प्रक्रिया का पालन किया गया हो.

अगर पर्सनल लॉ की बात करें तो हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी, सिख जैसे सभी धर्मों के अलग-अलग धार्मिक कानून हैं. हिंदुओं के लिए विवाह अधिनियम, 1955 बना है जो कि हिंदुओं के अलावा सिख, जैन, बौद्ध धर्म को मानने वाले के विवाह को मान्यता देता है. अगर एक गैर-हिंदू से विवाह करना है, तो गैर-हिंदू को हिंदू धर्म अपनाना पड़ सकता है, अन्यथा विवाह अवैध हो सकता है.

शादी में पर्सनल लॉ का पेच

इसी तरह मुस्लिम पर्सनल लॉ में मुस्लिम पुरुष किसी गैर-मुस्लिम महिला से विवाह कर सकता है, लेकिन गैर-मुस्लिम पुरुष का मुस्लिम महिला से विवाह आमतौर पर मान्य नहीं होता, जब तक कि पुरुष इस्लाम धर्म न अपनाए. ईसाई और पारसी कानून में शादी के अपने नियम हैं, जो आमतौर पर अंतर-धार्मिक विवाह को बिना धर्म परिवर्तन के मान्यता नहीं देते. इन कानूनों के तहत, इंटरफेथ मैरिज के लिए एक पक्ष को दूसरे के धर्म में परिवर्तन करना पड़ सकता है.

वहीं, उत्तर प्रदेश धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम 2021, धर्म परिवर्तन को सख्ती से नियंत्रित करता है और इसे विवाह के संदर्भ में भी लागू किया जाता है. इसके तहत, धर्म परिवर्तन के लिए जिला मजिस्ट्रेट से पहले से इजाजत लेना अनिवार्य है और गैर-कानूनी धर्म परिवर्तन को अपराध बनाया गया है. यूपी में यह कानून अंतरधार्मिक विवाहों और लिव-इन रिलेशनशिप पर भी लागू होता है.

स्पेशल मैरिज एक्ट में मान्यता

कोर्ट के फैसले से साफ है कि बिना धर्म परिवर्तन के शादी अवैध मानी जाएगी. कोर्ट ने कहा है कि विधिवत धर्म परिवर्तन के बिना अंतर-धार्मिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं दी जा सकती, खासकर अगर यह धार्मिक व्यक्तिगत कानूनों (जैसे हिंदू विवाह अधिनियम) के तहत किया गया हो.

हालांकि यह फैसला स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 के तहत रजिस्टर्ड विवाहों पर सीधे लागू नहीं होता, क्योंकि यह अधिनियम बिना धर्म परिवर्तन के शादी की इजाजत देता है. हालांकि, इस मामले में विवाह आर्य समाज मंदिर में हुआ था, जो हिंदू विवाह अधिनियम के दायरे में आता है. कोर्ट ने इस फैसले में कहा कि पीड़िता घटना के समय नाबालिग थी और इसलिए विवाह वैध नहीं हो सकता. इसके अलावा, विवाह उत्तर प्रदेश विवाह पंजीकरण नियम, 2017 के तहत रजिस्टर्ड नहीं था.

इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह फैसला उन अंतर-धार्मिक जोड़ों पर असर डाल सकता है जो धार्मिक रीति-रिवाजों, जैसे आर्य समाज मंदिर में विवाह करते हैं और वह भी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन के बिना. इस एक्ट के तहत होने वाली शादियां इस फैसले से बेअसर रहेंगी क्योंकि यह एक्ट साफ तौर पर बिना धर्म परिवर्तन के विवाह की इजाजत देता है.

साल 2024 में इलाहाबाद हाई कोर्ट की जस्टिस ज्योत्सना शर्मा की बेंच ने एक अन्य फैसले में कहा था कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत अंतर-धार्मिक जोड़े बिना धर्म परिवर्तन के विवाह कर सकते हैं. कोर्ट ने इस फैसले के जरिए एक लिव-इन कपल को सुरक्षा दी थी और उन्हें विशेष विवाह अधिनियम के तहत मैरिज रजिस्टर करने का निर्देश दिया था.

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