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जनगणना में ‘संप्रदाय’ के कॉलम का क्या मतलब है, जाति-धर्म से कैसे है अलग?

देश में जनगणना अब 2025 में शुरू हो सकती है. इसके आंकड़े 2026 तक आ सकते हैं. इस बार जनगणना में काफी कुछ नया देखने को मिलेगा. नए सवाल से लेकर ऑप्शन तक जोड़े जाने की तैयारी है. जनगणना में पहली बार संप्रदाय को लेकर भी सवाल पूछे जाने की संभावना है. लोगों से उनके संप्रदाय से जुड़ी जानकारी देने के लिए कहा जा सकता है. उदाहरण के तौर पर कर्नाटक में लिंगायत जैसे समूह है, जो सामान्य श्रेणी में आते हैं, लेकिन एक अलग संप्रदाय के रूप में पहचाने जाते हैं.

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अब तक जनगणना में धर्म और वर्ग पूछा जाता रहा है. साथ ही सामान्य, अनुसूचित जाति और जनजाति की गणना होती है, लेकिन इस बार लोगों से यह भी पूछा जा सकता है कि वे किस संप्रदाय के अनुयायी हैं. उदाहरण के तौर पर अनुसूचित जाति में वाल्मीकि, रविदासी जैसे अलग-अलग संप्रदाय हैं. इस्लाम में शिया और सुन्नी शामिल हैं, जबकि जातियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य जैसे समूह शामिल हैं. यानी धर्म, वर्ग के साथ संप्रदाय के आधार पर भी जनगणना की मांग पर सरकार विचार कर रही है.

डिजिटली जुटाए जाएंगे आंकड़े

देश में पहली बार जनगणना के आंकड़े डिजिटल तरीके से जुटाए और संकलित किए जाएंगे. इसके लिए विशेष पोर्टल तैयार किया गया है. इस पोर्टल में जातिवार जनगणना के आंकड़ों के लिए भी प्रावधान किए जा रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक जातिवार जनगणना होने की स्थिति में पहली बार देश में मुसलमानों और अन्य मतों के अनुयायियों की भी जातियां गिनी जाएंगी.

ज्यादा सटीक पॉलिसी बनाने में मिलेगी मदद

दरअसल, कई राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने धर्म और वर्ग के साथ-साथ संप्रदाय के आधार पर भी गणना कराए जाने की मांग उठाई थी. जानकारों का कहना है कि संप्रदाय और जाति पर जनगणना के आंकड़े ज्यादा सटीक पॉलिसी बनाने में मदद कर सकते हैं, क्योंकि संप्रदायों को धर्मों के भीतर उपसमूहों के रूप में मान्यता दी जाती है जो अक्सर अलग-अलग मान्यताओं और प्रथाओं को दर्शाते हैं. इसके विपरीत जाति पारंपरिक रूप से सामाजिक स्तरीकरण पर आधारित एक प्रणाली है.

संप्रदाय और जाति अलग-अलग अवधारणाएं

जनगणना के आंकड़ों से देश की धार्मिक जनसंख्या के बारे में भी डेटा जुटाया जा सकेगा. 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में सबसे ज्यादा 79.8% आबादी हिंदुओं की है. उसके बाद 14.2% मुस्लिम, 2.3% ईसाई और 1.7% सिख हैं. भारतीय सामाजिक व्यवस्था में संप्रदाय और जाति दो अलग-अलग अवधारणाएं हैं, जो अक्सर एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं लेकिन इनके उद्देश्य अलग-अलग होते हैं.

जनगणना में संप्रदाय के कॉलम का मतलब यह है कि व्यक्ति किस धार्मिक या सांस्कृतिक समूह से संबंधित है. इसे एक विशेष सांस्कृतिक या सामाजिक समूह के रूप में समझ सकते हैं जो अक्सर एक विशिष्ट पहचान या परंपरा के अनुसार खुद को परिभाषित करता है.

संप्रदाय का धर्म और जाति से अंतर…

धर्म: यह विश्वास प्रणाली या आध्यात्मिक सिद्धांतों का समूह होता है, जैसे हिंदू धर्म, इस्लाम, ईसाई धर्म, सिख धर्म, आदि. धर्म एक व्यापक पहचान है जो व्यक्ति के धार्मिक विश्वासों को दर्शाती है.

जाति: यह विशेषतः भारतीय समाज में सामाजिक स्तर पर व्यक्ति की वंशानुगत या पारंपरिक श्रेणी का निर्धारण करती है. जैसे – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र आदि.
संप्रदाय: धर्म से जुड़े हुए उप-समूह या अलग-अलग अनुयायी समुदायों को संप्रदाय कहा जा सकता है. उदाहरण के लिए हिंदू धर्म में शैव, वैष्णव, शाक्त आदि संप्रदाय होते हैं. इसी तरह इस्लाम में शिया और सुन्नी दो प्रमुख संप्रदाय हैं.

उदाहरण: यदि एक व्यक्ति हिंदू धर्म से है तो वो अपने धर्म के कॉलम में हिंदू लिखेगा, लेकिन हिंदू धर्म में वह किस संप्रदाय से है, जैसे शैव (भगवान शिव के उपासक), वैष्णव (भगवान विष्णु के उपासक), लिंगायत, रविदासी और वाल्मीकि… यह संप्रदाय के कॉलम में लिखा जाएगा. इसी तरह अगर कोई व्यक्ति इस्लाम धर्म से है तो वो अपने धर्म के कॉलम में मुस्लिम लिखेगा, लेकिन उसका संप्रदाय शिया या सुन्नी हो सकता है, जो संप्रदाय के कॉलम में आएगा. संप्रदाय की जानकारी जनगणना में धार्मिक विविधता और मान्यताओं की विस्तृत पहचान करने में सहायक होती है.

दो चरणों में हो सकती है जनगणना

देशव्यापी जनगणना 2025 में शुरू होगी और 2026 में समाप्त होगी. सरकारी सूत्रों का कहना है कि जनगणना दो चरणों में होने की संभावना है. पहले चरण में घरों, उनमें मौजूद पशुधन और अन्य भौतिक संसाधनों की गिनती की जाएगी. दूसरे चरण में नागरिकों की गणना की जाएगी. जनगणना का उद्देश्य देश की जनसंख्या से जुड़े आंकड़े एकत्र करना है, जिसमें धर्म, वर्ग और जाति श्रेणी (जैसे सामान्य, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति) की जानकारी शामिल है.

अब बदल जाएगा जनगणना का चक्र

अब तक हर दस साल में होने वाली जनगणना दशक के शुरुआत में होती आ रही थी- जैसे 1991, 2001, 2011. ऐसे में 2021 में जनगणना होनी थी, लेकिन कोरोना महामारी के कारण यह टालनी पड़ी. उसके बाद अब जनगणना का चक्र भी बदलने वाला है. अब 2025 के बाद 2035 और फिर 2045, 2055 में जनगणना होगी. हालांकि अभी यह निर्णय नहीं लिया गया है कि जातिगत जनगणना की जाएगी या नहीं. विभिन्न विपक्षी राजनीतिक दलों की ओर से भी राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना की मांग की जा रही है.

अब एक जनवरी से प्रशासनिक सीमाएं सील होंगी?

जनगणना महापंजीयक ने एक आदेश जारी कर राज्यों को अपने मंडलों, जिलों, तहसीलों और गांवों की सीमाएं 31 दिसंबर 2024 तक बदलने की छूट दे दी है. पहले यह सीमा 30 जून तक ही थी. यानी इस समय-सीमा को छह महीने और बढ़ा दिया गया है. जनगणना के लिए प्रशासनिक सीमाएं सील करना प्राथमिक शर्त होती है. सूत्र कहते हैं कि एक जनवरी 2025 के बाद जनगणना कभी भी हो सकती है.

जनगणना से जुड़े सवाल तैयार?

जनगणना के दौरान लोगों से पूछे जाने वाले सवाल तैयार कर लिए गए हैं. इनमें क्या परिवार का मुखिया या अन्य सदस्य अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति से संबंधित हैं. परिवार के सदस्यों की कुल संख्या, परिवार की मुखिया महिला है या नहीं? परिवार के पास कितने कमरे हैं? परिवार में कितने विवाहित जोडे़ हैं? क्या परिवार के पास टेलीफोन, इंटरनेट कनेक्शन, मोबाइल, दोपहिया, चारपहिया वाहन है या नहीं आदि सवाल शामिल किए गए हैं.

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