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PM Modi in Russia: ‘अमेरिका चाहे जो कर ले…’, पीएम मोदी के रूस दौरे पर क्या कह रहा यूएस का मीडिया?

PM Modi Russia Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार से दो दिवसीय रूस दौरे पर हैं जहां राजधानी मॉस्को में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने उनका जोरदार स्वागत किया. सोमवार को मॉस्को के नोवो ओगारियोवो में पुतिन के आधिकारिक आवास क्रेमलिन में दोनों नेताओं के बीच अनौपचारिक बैठक भी हुई और मंगलवार को मोदी 22वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया. फरवरी 2022 में यूक्रेन के साथ रूस का युद्ध शुरू होने के बाद पीएम मोदी का यह पहला रूस दौरा है जिस पर पूरी दुनिया की मीडिया में चर्चा है.

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अमेरिकी मीडिया भी मोदी के दौरे पर अपनी नजर बनाए हुए हैं और वहां कहा जा रहा है कि मोदी का दौरा दिखाता है कि रूस को अलग-थलग करने की व्हाइट हाउस की कोशिश काम नहीं आई है और भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर चल रहा है.

अमेरिकी अखबार ‘द वॉशिंगटन पोस्ट’ पीएम मोदी के रूस दौरे पर लिखता है कि यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद मोदी ने पहली बार रूस दौरे पर जाकर यह स्पष्ट संकेत दिया है अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत रूस के साथ अपने मजबूत संबंध बरकरार रखेगा.

अखबार लिखता है, ‘मॉस्को से रूसी राष्ट्रपति को गले लगाते हुए मोदी की तस्वीरें स्पष्ट संकेत दे रही हैं कि बाइडेन प्रशासन भारत को अपने पाले में लाने के लिए चाहे जितनी कोशिशें कर ले, वो रूस के साथ मजबूत संबंध बनाए रखेंगे.’

अखबार ने लिखा, ‘मोदी ने तीसरी बार पद ग्रहण करने के एक महीने से कम समय में ही रूस का दौरा किया है. जिसके जरिए वो पुतिन को दिखाना चाहते हैं कि भले ही भारत-अमेरिका सहयोग दशकों के अपने उच्चतम स्तर पर है, भारत पश्चिमी खेमे में नहीं फिसला है.’

रूस में भारत के पूर्व राजदूत और उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पंकज सरन के हवाले से वॉशिंगटन पोस्ट लिखता है, ‘कार्यकाल की शुरुआत में ही पीएम मोदी के रूस जाने का निर्णय एक संकेत है कि भारत रूस के साथ अपने संबंधों को पहले की तरह ही तवज्जो दे रहा है- जो कि पार्टी लाइनों से ऊपर उठकर भारत की विदेश नीति का अभिन्न अंग है.’

सरन कहते हैं कि भारत सरकार ने साथ ही अमेरिका के साथ भी अपने रिश्तों को तवज्जो दी है और अमेरिका को यह आश्वासन देने की कोशिश की है कि भारत रूस और पश्चिमी के बीच बातचीत का एक जरिया है.

सरन कहते हैं कि भारत सरकार अमेरिका के साथ अपने रिश्तों को उच्च प्राथमिकता दे रही है. भारत अमेरिकी चिंताओं को दूर करने के लिए ये तर्क दे सकता है कि भारत जो कि रूस का दोस्त है, पश्चिमी देशों और रूस के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है.

अखबार आगे लिखता है, ‘भारतीय अधिकारियों और पर्यवेक्षकों को उम्मीद है कि भारत के समर्थन के बदले में पुतिन मोदी को यह संकेत दे सकते हैं कि वो भारत के दुश्मन चीन से प्रभावित नहीं बल्कि स्वतंत्र हैं.’

मोदी-पुतिन की मुलाकात ऐसे वक्त में हो रही है जब मंगलवार से ही वाशिंगटन में नेटो की तीन दिवसीय बैठक की शुरुआत हो रही है. मोदी-पुतिन की बैठक को लेकर सवाल पर अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा, ‘हमने रूस के साथ रिश्तों को लेकर अपनी चिंताओं पर भारत से स्पष्ट रूप से बात की है.’

द न्यूयॉर्क टाइम्स

अमेरिकी अखबार ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने भी लिखा है कि पीएम मोदी का दौरा संकेत है कि रूस को अलग-थलग करने की पश्चिमी कोशिशों के बावजूद मोदी ने कूटनीतिक रास्ता नहीं बदला.

अखबार ने लिखा, ‘पुतिन के लिए मोदी का दौरा यह दिखाने का तरीका है कि अमेरिका से भारत के गहराते रिश्तों के बावजूद रूस और भारत के बीच मजबूत सहयोग बरकरार है. भारत ने रूस से भारी मात्रा में सस्ता तेल खरीदा है जिससे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध झेल रहे रूस को अपना राजस्व भरने में मदद मिली है. रूस चाहता है कि पश्चिमी प्रभुत्व वाली वैश्विक व्यवस्था को नया आकार देने में भारत उसका भागीदार बने.’

अखबार लिखता है कि भारत को चीन का मुकाबला करने के लिए अमेरिका और रूस दोनों की जरूरत है और वो दोनों ही देशों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है. भले ही भारत ने अमेरिका के साथ संबंधों को मजबूत किया है लेकिन इस दबाव के बावजूद भारत ने यूक्रेन युद्ध के लिए सार्वजनकि तौर पर रूस की निंदा करने से इनकार कर दिया है.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर और भारतीय विदेश नीति के विशेषज्ञ हैप्पीमोन जैकब ने अमेरिकी अखबार से बात करते हुए कहा कि चीन के साथ रूस की बढ़ती करीबी का मुकाबला करने के लिए भारत रूस के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है. वो कहते हैं कि भारत को शायद यह एहसास है कि अमेरिका रूस के साथ संबंध बढ़ाने के लिए उसपर कभी किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाएगा क्योंकि चीन अमेरिका के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभर रहा है. चीन को संतुलित करने के लिए अमेरिका को भारत की जरूरत है.

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में यूरेशिया स्टडी प्रोग्राम के नंदन उन्नीकृष्णन के हवाले से अमेरिका अखबार ने लिखा, ‘रूस के साथ भारत के रक्षा संबंध अमेरिका के लिए परेशानी का सबब हो सकते हैं, लेकिन ये संबंध भारत के साथ अमेरिका के सैन्य सहयोग को बेपटरी नहीं कर सकते.’

वॉयस ऑफ अमेरिका (वीओए)

अमेरिकी ब्राडकास्टर वीओए ने पीएम मोदी के रूस दौरे से संबंधित अपनी एक खबर को शीर्षक दिया है- रूस-चीन करीबी संबंधों को ध्यान में रखते हुए मोदी मॉस्को पहुंचे. खबर की शुरुआत में वीओए ने लिखा, ‘भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे वक्त में रिश्ते मजबूत करने के लिए दो दिवसीय दौरे पर सोमवार को रूस पहुंचे हैं जब रूस भारत के धुर विरोधी चीन के साथ अपने संबंध मजबूत कर रहा है. विश्लेषकों का कहना है कि पांच सालों में मोदी के पहले रूस दौरे का मुख्य फोकस रूस के साथ अपनी पारंपरिक दोस्ती की तस्दीक करना है.’

वीओए ने लिखा कि मोदी का रूस दौरा पुतिन के लिए भी अहम है और इसके जरिए वो पश्चिम को दिखा रहे हैं कि प्रतिबंधों से वो अलग-थलग नहीं पड़े हैं. लेख में लिखा गया, ‘कुछ विश्लेषकों ने मोदी के रूस दौरे की टाइमिंग की तरफ इशारा है है जो मंगलवार को शुरू हो रहे नेटो के शिखर सम्मेलन के साथ मेल खाता है. इस शिखर सम्मेलन में पश्चिमी देश यूक्रेन पर फोकस करेंगे.’

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