ओडिशा के मयूरभंज जिले से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है जहां एक आदिवासी परिवार को सिर्फ इसलिए गांव से बहिष्कृत कर दिया गया क्योंकि उन्होंने अपने बुजुर्ग सदस्य की मृत्यु के बाद आयोजित भोज में पारंपरिक शराब ‘हंडिया’ नहीं परोसी.
यह घटना सरात थाना क्षेत्र के केसापाड़ा गांव की है, जहां संथाल जनजाति से ताल्लुक रखने वाले 67 वर्षीय राम सोरेन की 27 मार्च को मृत्यु हो गई थी. एक माह बाद उनके बेटे संग्राम सोरेन ने परंपरा के अनुसार भोज आयोजित किया, लेकिन उन्होंने उसमें हंडिया नहीं परोसी. संग्राम का कहना है कि उनके पिता की मृत्यु शराब की लत के कारण हुई है इसलिए उन्होंने उनके भोज में हंडिया नहीं परोसी.
सामाजिक तौर पर किया बहिष्कृत
सिर्फ इस वजह से ग्रामीणों ने संग्राम, उनकी पत्नी लच्छा और तीन बच्चों को सामाजिक तौर पर बहिष्कृत कर दिया. परिवार को गांव के तालाब या ट्यूबवेल से पानी लेने नहीं दिया जा रहा है और दुकानों से सामान खरीदने तक पर रोक लगाई गई है. लच्छा ने बताया कि ग्रामीण न तो उनसे बात करते हैं और न ही किसी तरह का काम देते हैं. इससे परिवार का जीवन कठिन हो गया है.
पुलिस ने दिया दखल, 2 दिन का समय
संग्राम की शिकायत के बाद पुलिस की टीम गांव पहुंची. थाना प्रभारी रमाकांत पात्रा ने ग्रामीणों को स्पष्ट शब्दों में समझाया कि किसी को भी सामाजिक रूप से बहिष्कृत करना कानूनन अपराध है. उन्होंने गांव वालों को दो दिन का समय दिया है ताकि आपसी बातचीत से मामला सुलझाया जा सके. यदि बात नहीं बनी तो पुलिस कानूनी कार्रवाई करेगी.
दिलचस्प बात यह है कि संथाल समुदाय के एक पुजारी ने भी माना कि भोज में हंडिया परोसना कोई धार्मिक अनिवार्यता नहीं है, बल्कि यह परिवार की इच्छा और आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है. हंडिया ओडिशा, झारखंड और बंगाल के आदिवासी समाज में पारंपरिक पेय के रूप में जाना जाता है. अब इस परंपरा को लेकर सवाल उठने लगे हैं जब यह सामाजिक भेदभाव का कारण बन जाए.