‘जब दोस्त ऐसे हों तो दुश्मनों की क्या जरूरत’, पूर्व RAW चीफ एएस दुलत पर उमर अब्दुल्ला का तंज

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने गुरुवार को पूर्व रॉ प्रमुख अमरजीत सिंह दुलत द्वारा अपने पिता फारूक अब्दुल्ला की अनुच्छेद 370 को निरस्त करने में भूमिका के बारे में किए गए खुलासे पर पहली प्रतिक्रिया दी. उन्होंने दोनों के बीच घनिष्ठ मित्रता का जिक्र करते हुए कहा, ‘जब आपके पास ऐसे दोस्त हों तो दुश्मनों की क्या जरूरत.’

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पूर्व रॉ चीफ ए.एस दुलत अब्दुल्ला परिवार के बेहद करीबी रहे हैं. उन्होंने अपनी नई किताब ‘द चीफ मिनिस्टर एंड द स्पाई’ में दावा किया है कि जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को पता था कि मोदी सरकार धारा 370 हटाने वाली है और उन्होंने इसका समर्थन किया था, जिससे कश्मीर से उसका विशेष दर्जा छीन गया था. दुलत ने यह भी आरोप लगाया कि अब्दुल्ला ने केंद्र को मदद करने की पेशकश की थी, अगर उन्हें विश्वास में लिया जाता.

किताब बेचने के लिए दुलत ने लिखीं झूठी बातें: उमर

ए.एस दुलत के इन दावों पर प्रतिक्रिया देते हुए जम्मू-कश्मीर के वर्तमान मुख्यमंत्री और फारूक अब्दुल्ला के बेटे उमर ने कहा, ‘दुलत की आदत है कि अपनी किताब बेचने के लिए वह ऐसे बातें लिखते हैं. वह सच का साथ नहीं देते. अपनी पहली किताब में उन्होंने किसी को नहीं बख्शा और अपनी नई किताब में भी उन्होंने फारूक अब्दुल्ला को अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.’ उन्होंने जम्मू में एक कार्यक्रम से इतर मीडिया से बातचीत में कहा, ‘जब आपके पास ए.एस दुलत जैसे दोस्त हों तो आपको दुश्मनों की जरूरत नहीं होती.’

आखिर दुलत की असलियत पता चल ही गई: उमर

उन्होंने कहा, ‘आखिरकार फारूक साहब को दुलत की असलियत पता चल ही गई. अब दुलत को इस बात को लेकर भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि कल जब किताब रिलीज होगी तो फारूक अब्दुल्ला उनके साथ खड़े होंगे. फारूक अब्दुल्ला कभी झूठ का साथ नहीं देंगे.’ पीडीपी प्रमुख और पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती के बयान पर पलटवार करते हुए उमर ने कहा, ‘अगर महबूबा दुलत द्वारा लिखी गई हर बात को सच मानती हैं, तो क्या हमें दुलत द्वारा महबूबा के पिता पर अपनी पहली किताब में लिखी गई बातों को सच मान लेना चाहिए?’

ए.एस दुलत के खुलासे को लेकर फारूक अब्दुल्ला और नेशनल कॉन्फ्रेंस पर निशाना साधते हुए महबूबा मुफ्ती ने गुरुवार को कहा, ‘इसे पढ़कर मुझे आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि नेशनल कॉन्फ्रेंस सत्ता में रहने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है. वह 1947 से ऐसा कर रही है. अगर नेशनल कॉन्फ्रेंस को सत्ता मिलने का भरोसा दिया जाता तो वह भारत के साथ जाना चाहती और जब सत्ता में नहीं रहती तो जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता की वकालत करती. शेख अब्दुल्ला अन्य लोगों के साथ 22 साल तक जेल में रहे, लेकिन जब 22 साल बाद सत्ता में आए, तो उन्होंने जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता का मुद्दा छोड़ दिया.’

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