पुलिस ने पेश किए झूठे गवाह, तो कोर्ट ने लगाई लताड़, कहा- विज्ञान इतना विकसित नहीं हुआ है कि मृत व्यक्ति फोन पर बात कर सके

जबलपुर। हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल व न्यायमूर्ति अवनींद्र कुमार सिंह की युगलपीठ ने अपनी तल्ख टिप्पणी में कहा कि विज्ञान इतना विकसित नहीं हुआ है कि मृत व्यक्ति फोन पर बात कर सके। इसी के साथ हत्याकांड में सजायाफ्ता पिता-पुत्र को दोषमुक्त कर दिया।

सजायाफ्ता पिता-पुत्र ने सजा के विरुद्ध की थी अपील

दरअसल, मंडला निवासी नैन सिंह धुर्वे व उसके पुत्र संदीप धुर्वे ने सेशन कोर्ट द्वारा पारित उम्रकैद की सजा के विरुद्ध हाई कोर्ट में अपील की थी। मामला बेटी के प्रेमी की हत्या से संबंधित था। हाई कोर्ट ने मृत्यु के बाद युवक के आरोपित की बेटी के संपर्क में होने की जानकारी पर आश्चर्य जताया। जिस चश्मदीद गवाह के बयान पर सजा से दंडित किया गया, वह उसके घर में उपस्थित ही नहीं था। मृतक की मां ने अपने गवाही में स्वीकार किया है कि चश्मदीदी गवाह अपीलकर्ता नैन सिंह के घर नहीं बल्कि कुछ दूरी पर स्थित कवर सिंह के घर रुका था।

अभियोजन के अनुसार नैन सिंह की बेटी और राजेन्द्र के बीच प्रेम संबंध थे। राजेन्द्र 19 सितम्बर, 2021 की रात को अपने घर से निकला था। उसके वापस नहीं लौटने पर स्वजनों ने उसके संबंध में खोजबीन प्रारंभ की। उसके संबंध में कोई जानकारी नहीं मिलने पर 23 सितम्बर, 2021 को उसके पिता ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी। इसके दो दिन बाद युवक का निर्वस्त्र शव जंगल में पाया गया। युवक का गुप्तांग कटा हुआ था और उसके शरीर में चोट के निशान थे।

चश्मदीदी गवाह चैतसिंह का कहना है कि 19 सितम्बर को मोटर साइकिल खराब होने के कारण वह नैन सिंह के घर रुक गया था। रात में उसने देखा कि नैन सिंह व उसका बेटा एक युवक के साथ मारपीट कर रहे है। युवक नैन सिंह की बेटी को परेशान करता था। इसके तीन चार दिन बाद वह काम की तलाश में केरल गया था। फरवरी माह में पुलिस उसे लेकर आई और उसने घटना के संबंध में लोगों से जानकारी प्राप्त की।

अपीलकर्ता पिता-पुत्र को रिहा करने का आदेश जारी

हाई कोर्ट ने पाया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार शव मिलने से चार से छह दिन पहले युवक की मृत्यु हो गयी थी। सार्टिफिकेट 65 के साथ पेश की सीडीआर रिपोर्ट के अनुसार मृतक व उसकी प्रेमिका 19 से 25 सितम्बर तक संपर्क में थे। पुलिस ने मृतक की प्रेमिका से जांच के दौरान किसी प्रकार की पूछताछ नहीं की। बहरहाल, हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए अपीलकर्ता पिता-पुत्र को रिहा करने का राहतकारी आदेश पारित कर दिया।

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