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जहां पहले आदिवासी जनसंख्या थी, वहां तेजी से बढ़ी मुस्लिम आबादी, कितनी बदली झारखंड की डेमोग्राफी?

झारखंड में पहले चरण का चुनाव हो गया है. दूसरे चरण की वोटिंग 20 नवंबर को होगी. इस बीच बीजेपी ने सोरेन सरकार पर अवैध घुसपैठ और संथाल में बदलती डेमोग्राफी को लेकर हमला तेज कर दिया है. बीजेपी का आरोप है कि झारखंड के आदिवासी इलाके संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठियों ने पूरी डेमोग्राफी बदल दी है. हालांकि प्रदेश के सीएम हेमंत सोरेन और कांग्रेस ने बीजेपी के इन आरोपों को बेबुनिया करार दिया है.

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12 सितंबर को झारखंड हाई कोर्ट की सुनवाई में केंद्र की तरफ से दायर हलफनामे में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. केंद्र सरकार के मुताबिक, संथाल परगना के छह जिलों में बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी घुसपैठ आए हैं. केंद्र सरकार ने हाई कोर्ट में दाखिल हलफनामे के मुताबिक, आदिवासी इलाके में बड़े पैमाने पर बांग्लादेशियों की घुसपैठ हुई है और घुसपैठियों के टारगेट पर सबसे ज्यादा दो साहिबगंज और पाकुड़ जिले हैं. इसी वजह से बीते कुछ सालों में इन जिलों में मदरसों की संख्या भी काफी बढ़ी है.

साहिबगंज और पाकुड़ में बदली डेमोग्रॉफी

केंद्र सरकार के मुताबिक, 1961 में साहिबगंज की आबादी 4 लाख 14 हजार थी. इनमें मुस्लिम आबादी 82 हजार थी, जो कुल आबादी का करीब 20 फीसदी था. 2011 में साहिबगंज की ही कुल आबादी साढ़े 11.5 लाख हो गई. इसमें मुस्लिम आबादी करीब करीब 4 लाख तक पहुंच गई. जो कि कुल आबादी का 35 फीसदी है. मतलब यह कि महज 50 सालों में मुसलमानों की आबादी प्रतिशत के हिसाब से 15 फीसदी बढ़ गई. 1961 में जो महज 20 फीसदी थी, 2011 में वह 35 फीसदी हो गए. 1961 में पाकुड़ जिले की आबादी करीब 35 लाख थी. इसमें 76000 मुस्लिम थे लेकिन 2011 में मुस्लिम आबादी 22 फीसदी से बढ़कर 36 फीसदी यानी साढ़े 3 लाख 22 हजार हो गई . यहां पर 50 साल में 14 फीसदी की बढ़त हुई है.

केंद्र सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक, 1951 में संथाल परगना में हिंदू आबादी कुल आबादी का 90 फीसदी था यानी अगर एक इलाके में 100 लोग रहते हैं तो उनमें से 90 हिंदू होते थे. इसमें भी आदिवासी 45%, मुस्लिम 9% और ईसाई आबादी 1% से भी कम थी लेकिन 2011 में हिंदू आबादी 68%, आदिवासी 28% और मुस्लिम 23% तो ईसाई 4% तक पहुंच गई. इस तरह से संथाल परगना इलाके में 1951 और 2011 के बीच हिंदुओं की संख्या 22 प्रतिशत कम हुई है जबकि आदिवासी 17 प्रतिशत कम हो गए तो मुस्लिम आबादी 14 प्रतिशत बढ़ गई. इतना ही नहीं ईसाई भी करीब 4 प्रतिशत तक बढ़ गए.

संथाल परगना की आबादी का बदलता अंकगणित गंभीर इशारे कर रहा है, इसे देखकर कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि यहां हिंदू आदिवासी तेजी से कम हो रहे हैं और दूसरे धर्मों के लोग बढ़ रहे हैं. अवैध बांग्लादेशी सिर्फ दुल्हन बनाओ और जमाई बनो वाली स्ट्रेटेजी पर काम नहीं कर रहे हैं, डेमोग्राफी बदलने के लिए वह लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट करते हैं. वो वोटर आईडी कार्ड से लेकर अपना आधार कार्ड तक बनवाते हैं. साहिबगंज जिले में 7900 से अधिक बांग्लादेशी घुसपैठियों का नाम प्रशासन ने वोटर लिस्ट से काटने का काम किया था. ऐसे प्रखंडों में तो 200 गुना से 300 गुना तक की डेमोग्राफी बदली है.

कौन-कौन से जिले शामिल?

साहिबगंज, गोड्डा, पाकुड़, दुमका, देवघर और जामताड़ा से बांग्लादेश का बॉर्डर 50 किमी से लेकर 200 किमी की दूरी पर है. बांग्लादेश से इन इलाकों में घुसना इनके लिए महज दो से तीन घंटे का ही मामला है. सीमावर्ती राज्य होने के कारण लोगों की बोलचाल और वेशभूषा में भी बहुत फर्क नहीं है. इसकी वजह से इन इलाकों में यह लोग बहुत आसानी से बस जाते हैं. वैसे तो हाई कोर्ट में सिर्फ संथाल परगना इलाके में ही बांग्लादेशी घुसपैठ का मामला चल रहा है लेकिन प्रधानमंत्री ने जमशेदपुर की रैली में कोल्हान इलाके का भी जिक्र किया था. कोल्हान में सराय केला, खरसावां, पश्चिमी सिंहभू और पूर्वी सिंहभू जिले आते हैं. संथाल परगना और कोल्हान बेल्ट में आदिवासी वोट सबसे अहम है.

कोल्हान-संथाल का सियासी गणित

ऐसे में इन इलाकों में विधानसभा सीटों का अंकगणित भी देखना जरूरी है. संथाल परगना के छह जिलों में लोकसभा की तीन और विधानसभा की 18 सीटें हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में दुमका, गोड्डा और राजमहल इन सीटों में बीजेपी को दो और जेएमएम को एक सीट मिली थी लेकिन 2024 में बड़ा उलटफेर हुआ और इनमें से बीजेपी को सिर्फ एक ही सीट यानी कि गोड्डा मिली और जेएमएम दुमका राजमहल की सीट पर कब्जा जमा सकी. 2019 के विधानसभा चुनाव में संथाल परगना की 18 सीटों में से सभी सात एसटी सुरक्षित सीट समेत नौ सीटों की सीटों पर जेएमएम को जीत मिली थी तो पांच सीटों पर उसकी सहयोगी कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, जबकि बीजेपी को चार सीटें मिली थी.

कोल्हान में लोकसभा की दो और विधानसभा की 14 सीटें हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में इन इलाकों की सिंहभूम सीट पर कांग्रेस और जमशेदपुर में बीजेपी को जीत मिली थी. 2024 में सिंहभूम की कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा के बीजेपी में शामिल होने के बावजूद उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा और यह सीट जेएमएम के खाते में चली गई. इस बार भी जमशेदपुर सीट से बीजेपी को जीत मिली. 2019 के विधानसभा चुनाव की अगर बात करें तो वहां कोल्हान की सभी 14 विधानसभा सीटों पर बीजेपी को हार मिली थी. इन सीटों में जेएमएम ने 11 सीटें जीती, कांग्रेस ने दो और एक सीट पर निर्दलीय को जीत मिली थी.

क्यों उठ रहा है घुसपैठ का मुद्दा?

झारखंड में आदिवासी वोट बैंक जीत का सबसे बड़ा फैक्टर है. हमेशा से झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ यह वोट खड़ा रहा है लेकिन इस बार बीजेपी ने इस वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए ही विधानसभा चुनाव में वापसी के लिए आदिवासी नेता बाबूलाल मरांडी को राज्य में पार्टी की कमान सौंपी है तो कोल्हान के सबसे बड़े नेता और कोल्हान टाइगर कहे जाने वाले चंपई सोरेन को बीजेपी में शामिल किया है. लोकसभा चुनाव के समय बीजेपी ने सोरेन परिवार की बड़ी बहू सीता सोरेन और पूर्व सीएम मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा को भी अपने साथ कर लिया. बीजेपी ने दोनों को लोकसभा चुनाव में टिकट भी दिया लेकिन दोनों ही जीत नहीं सकी.

विधानसभा चुनाव में फिर बीजेपी की कोशिश है कि आदिवासियों को अपने पाले में कर ले ताकि एक बार फिर झारखंड की सत्ता में भगवा परचम लहरा सके. यही वजह है कि पार्टी ने चुनावी माहौल में संथाल परगना और कोल्हान जैसे आदिवासी इलाकों में बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठ को जोर-शोर से उठाना शुरू किया है.

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