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धरती पर कहां आने वाला है भूकंप? ये सैटेलाइट पहले ही बता देगा, जानिए कैसे काम करेगा NISAR

नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर राडार (NISAR) लॉन्च होने के बाद पूरी दुनिया को आने वाले भूकंपों के बारे में पहले सूचना देगा. क्योंकि यह टेक्टोनिक प्लेट्स के मूवमेंट पर भी नजर रखेगा. यह खुलासा इसरो प्रमुख डॉ. एस. सोमनाथ ने किया. उन्होंने बताया कि कैसे यह मिशन पूरी दुनिया के लिए जरूरी है.

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डॉ. सोमनाथ ने बताया कि निसार टेक्टोनिक प्लेट्स के मूवमेंट को सेंटीमीटर के स्तर तक रिकॉर्ड कर पाएगा. ज्यादा या कम मूवमेंट से पता चलेगा कि कहां और कब भूकंप आ सकता है. यह पूरी धरती को 14 से 15 दिन में कवर करेगा. इतने ही दिन बाद उसका दूसरा चक्कर लगेगा. यह दुनिया के जलस्रोतों को सटीकता से नाप पाएगा. यह भी पता चलेगा कि जलस्तर कितना कम या ज्यादा हो रहा है.

निसार धरती पर पड़ने वाले पानी के दबाव, पानी के फैलान, हरियाली और बर्फ पर नजर रखेगा. हम जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले बदलावों को देख पाएंगे. उनकी स्टडी कर सकेंगे. प्राकृतिक आपदाओं की समय से पहले भविष्यवाणी कर पाएंगे.

इसरो चीफ ने बताया कि पहले इस सैटेलाइट को जुलाई में लॉन्च करने का प्लान था लेकिन इसमें देरी होगी. इसकी लॉन्चिंग साल के अंत तक होगी. लॉन्चिंग में देरी की वजह अमेरिका से हो रही है. उन्हें स्पेसक्राफ्ट में कुछ करेक्शन करने हैं. इसलिए उन्होंने उसे वापस बुला लिया है.

क्या काम करेगा NISAR सैटेलाइट?

– यह सैटेलाइट दुनिया को प्राकृतिक आपदाओं से बचाएगा. ये दुनिया का सबसे महंगा अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट है. इसे बनाने में 10 हजार करोड़ रुपए की लागत आई है.

– किसी शहर के धंसने की घटना ही नहीं. यह बवंडर, तूफान, ज्वालामुखी, भूकंप, ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्री तूफान, जंगली आग, समुद्रों के जलस्तर में बढ़ोतरी, समेत कई आपदाओं का अलर्ट देगा.

– निसार स्पेस में धरती के चारों तरफ जमा हो रहे कचरे और धरती की ओर अंतरिक्ष से आने वाले खतरों की सूचना भी देता रहेगा.

इस सैटेलाइट को GSLV-MK2 रॉकेट से लॉन्च किया जाए. लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के दूसरे लॉन्च पैड से होगी. सैटेलाइट्स और पेलोंड की कई बार टेस्टिंग हो चुकी है.

NISAR में दो प्रकार के बैंड होंगे एल और एस. ये दोनों धरती पर पेड़-पौधों की घटती-बढ़ती संख्या पर नजर रखेंगे साथ ही प्रकाश की कमी और ज्यादा होने के असर की भी स्टडी करेंगे. एस बैंड ट्रांसमीटर को भारत ने बनाया है और एल बैंड ट्रांसपोंडर को नासा ने.

निसार का रडार 240 km तक के क्षेत्रफल की एकदम साफ तस्वीरें ले सकेगा. यह धरती के एक स्थान की फोटो 14-15 दिन के बाद फिर लेगा. क्योंकि इसे धरती का पूरा एक चक्कर लगाने में 14-15 दिन लगेंगे. इस दौरान यह धरती के अलग-अलग हिस्सों की रैपिड सैंपलिंग करते हुए तस्वीरें और आंकडे वैज्ञानिकों को मुहैया कराता रहेगा.

इस मिशन की लाइफ पांच साल मानी जा रही है. इस दौरान निसार ज्वालामुखी, भूकंप, भूस्खलन, जंगल, खेती, गीली धरती, पर्माफ्रॉस्ट, बर्फ का कम ज्यादा होना आदि विषयों की स्टडी करेगा.

निसार सैटेलाइट में एक बड़ा मेन बस होगा, जिसमें कई इंस्ट्रूमेंट्स लगे होंगे. साथ ही कई ट्रांसपोंडर्स, टेलीस्कोप और रडार सिस्टम होगा. इसके अलावा इसमें से एक आर्म निकलेगा, जिसके ऊपर एक सिलेंडर होगा. यह सिलेंडर लॉन्च होने के कुछ घंटों बाद खुलेगा तो इसमें डिश एंटीना जैसी एक बड़ी छतरी निकलेगी. यह छतरी ही सिंथेटिक अपर्चर रडार है.

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