रायबरेली: सुप्रीम कोर्ट की ओर से देश भर की हाईकोर्ट्स और ट्रायल कोर्ट्स को निर्देश दिया है कि वह जमानत और अग्रिम जमानत से जुड़ी याचिकाओं को तीन से छह महीने के भीतर निपटाएं. जिसका जिले के अधिवक्ताओं ने स्वागत किया है. अधिवक्ताओं का कहना है कि इससे न्याय प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी और लोगों को जल्दी न्याय मिल सकेगा.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने कहा कि जमानत और अग्रिम जमानत की याचिकाएं सीधे तौर पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ी होती हैं. इसलिए इन्हें वर्षों तक लंबित नहीं छोड़ा जा सकता. ऐसी याचिकाओं को हर हाल में तीन से छह महीने तक निपटारा होना चाहिए. ऐसा निर्देश उन्होंने सभी हाईकोर्ट व ट्रायल कोर्ट को दिया है. जिसका अधिवक्ताओं ने गर्मजोशी से स्वागत किया है. सेंट्रल बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश तिवारी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से वादकारियों को न्याय मिलने में आसानी होगी. यह फैसला न्यायपालिका की गरिमा को शीर्षता प्रदान करेगा और लोगों को जल्दी न्याय मिलेगा. सभी न्यायालयों में इसे जल्दी ही लागू करना चाहिए.
सेंट्रल बार एसोसिएशन के महामंत्री योगेंद्र कुमार दीक्षित ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के इस फैसले से लोगों को न्याय मिलने में सुगमता होगी और लोगों का न्यायपालिका पर भरोसा बढ़ने से त्वरित न्याय भी मिलेगा. इसके साथ ही न्यायालयों में लंबित मामलों में भी तेजी से कमी आएगी. वरिष्ठ अधिवक्ता सुरेंद्र सिंह भदौरिया ने कहा कि माननीय उच्चतम न्यायालय का दिया गया फैसला जनहित में है. जिसका स्वागत किया जाना चाहिए. लोग वर्षों तक जमानत के लिए परेशान रहते हैं. वरिष्ठ अधिवक्ता शशिकांत शुक्ला ने कहा कि अग्रिम जमानत के सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सराहनीय है. इससे व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा होगी एवं न्यायिक प्रक्रिया पर आम जनमानस का भरोसा बढ़ेगा.
वरिष्ठ अधिवक्ता हितेंद्र बहादुर सिंह ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के द्वारा पारित आदेश एंटीसिपेटरी बेल 3 से 6 महीने के अंदर निपटाएं स्वागत योग्य है. इससे जो मुलजिमान जेल में हैं उनको राहत मिलेगी. न्यायिक प्रक्रिया तेज होगी और कानून मजबूत होगा. न्यायालय को आदेश करने में भी स्वतंत्रता रहेगी. इस आदेश से जनता को राहत मिलेगी अधिवक्ताओं को न्याय दिलाने में सुविधा मिलेगी. वरिष्ठ अधिवक्ता विकास त्रिपाठी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय का यह निर्देश स्वागत योग्य एवं सराहनीय है.
न्यायालय की हर दीवार पर यह लिखा होता है की वादकारी का हित ही सर्वोच्च है. उस दिशा में माननीय उच्चतम न्यायालय का यह आदेश वादकारियों के लिए वरदान साबित होगा.अधिवक्ता गोविंद सिंह ने कहा कि जमानत प्रार्थनापत्रों के लंबे समय तक लंबित रहने से सामान्य नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होता है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्वागत है.