अयोध्या से विशेष रिपोर्ट
“जहां चाह होती है, वहां राह होती है”—इस कहावत को लखनऊ के एक सामान्य से दिखने वाले लेकिन असाधारण हुनर वाले सब्जी विक्रेता अनिल कुमार साहू ने बिल्कुल सच कर दिखाया है.सब्जी की टोकरी उठाते-उठाते उन्होंने एक ऐसी घड़ी बना डाली जो न सिर्फ भारत, बल्कि छह देशों का समय एक साथ बताती है.इस घड़ी को उन्होंने राम मंदिर में दूसरी बार भेंट कर यह सिद्ध कर दिया कि हुनर न तो डिग्री का मोहताज होता है और न ही पैसे का.
अनोखी घड़ी, अनोखी कहानी
लखनऊ के निवासी और पेशे से सब्जी विक्रेता अनिल कुमार साहू ने करीब 25 साल की मेहनत के बाद एक ऐसी घड़ी बनाई है जो भारत के अलावा दुबई, टोक्यो, बीजिंग, मास्को सिटी और मास्को का समय भी दिखाती है.इस घड़ी को उन्होंने अपने नाम से पेटेंट भी कराया है और इसे ‘वर्ल्ड क्लॉक’ नाम दिया है.
रामलला को दूसरी बार भेंट
राम मंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारी जब हाल ही में अयोध्या में प्रतिष्ठा समारोह की तैयारियों के लिए घूम रहे थे, तब उन्होंने एक बार फिर इस अनोखी घड़ी की मांग की.ट्रस्ट ने इसे खरीदने की पेशकश की, लेकिन अनिल साहू ने इसे दूसरी बार निःशुल्क भेंट करते हुए कहा:
“ये मेरा सौभाग्य है कि मेरी बनाई चीज प्रभु के दरबार में सज रही है। ये मेरे लिए नहीं, मेरी आने वाली पीढ़ियों के लिए गर्व की बात है.”
मात्र ₹5000 में तैयार होती है ‘वर्ल्ड क्लॉक’
जहां बड़ी-बड़ी कंपनियां लाखों रुपये की घड़ियां बनाती हैं, वहीं अनिल साहू की यह वर्ल्ड क्लॉक मात्र 5000 रुपये में तैयार होती है.इसके बावजूद इसका डिज़ाइन और टाइमज़ोन मैकेनिज्म इतना बेहतरीन है कि विशेषज्ञ भी हैरान हैं.
संघर्ष भरी जिंदगी, लेकिन बड़ा सपना
अनिल साहू के पास बड़ी दुकान नहीं है, कोई कारखाना नहीं है। वो आज भी लखनऊ की गलियों में ठेला लगाकर सब्जियां बेचते हैं.तीन बेटियों के पिता अनिल चाहते हैं कि उनकी बेटियां अच्छी शिक्षा पाएँ और आत्मनिर्भर बनें.दो बेटियां बैंकिंग की तैयारी कर रही हैं और एक बीटीसी (शिक्षक प्रशिक्षण) कर रही है.
गरीबी और संघर्ष के बीच, उन्होंने अपने हुनर को दबने नहीं दिया। घर चलाने की चिंता, बेटियों की पढ़ाई का खर्च और ऊपर से दिनभर की मेहनत—इन सबसे लड़ते हुए भी उन्होंने तकनीकी दुनिया में अपना नाम रोशन किया.
राम दरबार में पहुंचा आम आदमी का असाधारण सपना
राम मंदिर जैसा ऐतिहासिक और आध्यात्मिक स्थल अब केवल बड़ी हस्तियों और दानदाताओं की भेंटों का गवाह नहीं, बल्कि एक सब्जी विक्रेता की मेहनत और आत्मा की आवाज़ का भी साक्षी बन चुका है.जहां करोड़ों की मूर्तियां और शिल्प दिखाई देते हैं, वहीं एक ₹5000 की वर्ल्ड क्लॉक यह सिद्ध करती है कि भावनाएं और समर्पण ही सबसे बड़ी भेंट होती हैं.
मिसाल बन गया अनिल का नाम
राम मंदिर में प्रतिष्ठित ‘वर्ल्ड क्लॉक’ न सिर्फ समय बताती है, बल्कि समय के साथ कदम मिलाकर चलने की सीख भी देती है। अनिल साहू जैसे अनसुने नायकों की कहानियां हमें यह याद दिलाती हैं कि भारत की असली ताकत उसके छोटे-छोटे कस्बों और गली-मोहल्लों में छिपे गुमनाम प्रतिभाओं में है.
अंत में बस इतना कहा जा सकता है:
“हुनर अगर दिल से निकले, तो ठेले से राम दरबार तक पहुंचने में वक्त नहीं लगता.”