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‘धर्माचार्यों को निर्देश देने वाले वो कौन होते हैं’, मोहन भागवत के बयान पर बोले रामभद्राचार्य

हिंदू समाज को लेकर दिया आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का बयान लगातार चर्चाओं में बना हुआ है. तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने उनके बयान पर आपत्ति जताई है. आजतक से बात करते हुए उन्होंने कहा कि ‘मोहन भागवत एक संगठन के प्रमुख हो सकते हैं, वो हिंदू समाज के प्रमुख नहीं हैं.’ उन्होंने कहा कि भागवत हिंदू धर्म के प्रमुख नहीं हैं और उन्हें संतों को निर्देश देने का कोई अधिकार नहीं है. रामभद्राचार्य ने कहा, ‘जहां-जहां हमारे मंदिरों की प्रामाणिकता है, वो हमें चाहिए ही चाहिए.’

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‘वो कौन होते हैं हमें धर्म की व्याख्या समझाने वाले’

रामभद्राचार्य ने कहा, ‘मुझे सर्वाधिक आपत्ति ये है, पहले तो उन्हें यह कहने का अधिकार नहीं है कि अब मंदिर-मस्जिद सब छोड़ दिया जाए. हम ढूंढ़ नहीं रहे हैं. जहां-जहां हमारे मंदिरों की प्रामाणिकता है, हम वही चाह रहे हैं. दूसरी आपत्ति ये है कि उन्होंने ये कहा कि राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोग ऐसे मुद्दे उठाकर नेता बनना चाहते हैं. कौन नेता बनना चाहता है?’

उन्होंने कहा, ‘तीसरी आपत्ति ये है, उन्होंने जो नासिक में बयान दिया कि धर्म की गलत व्याख्या की जा रही है, सही व्याख्या नहीं की जा रही. वो कौन होते हैं हमें धर्म की व्याख्या समझाने वाले. धर्माचार्य हम हैं, जगतगुरु हम हैं, हमसे अधिक धर्म वो थोड़ी जानते हैं. उनको ऐसे बयान नहीं देने चाहिए. वो एक संगठन के प्रमुख हैं, हिंदू धर्म के प्रमुख नहीं हैं. उनके आधार पर हिंदू धर्म थोड़ी चलेगा.’

‘धर्माचार्यों को बुलाकर चर्चा करनी चाहिए थी’

रामभद्राचार्य ने कहा, ‘उन्हें पहले संतों, धर्माचार्यों को बुलाना चाहिए था, वो अपनी चिंताएं प्रकट करते और हम धर्माचार्य उनको समाधान देते. वो कौन होते हैं हमको निर्देश देने वाले.’ उन्होंने कहा, ‘हम उनकी मस्जिदें नहीं चाह रहे हैं. जहां-जहां हमारे मंदिरों की प्रामाणिकता है वो हमें चाहिए ही चाहिए. अतीत को हम थोड़ी छोड़ देंगे. अधिकार खोकर बैठे रहना यह महा दुष्कर्म है, न्यायार्थ अपने बंधु को भी दंड देना धर्म है.’

‘उन्होंने हमारे तीस हजार मंदिर तोड़े’

उन्होंने कहा, ‘सर्वे में जहां-जहां भी हमारे मंदिर हैं, वहां-वहां हम अपना अधिकार लेना चाहते हैं. हमने उनकी मस्जिदें कभी नहीं तोड़ी. उन्होंने हमारे तीस हजार मंदिर तोड़े तो कम से कम जहां सर्वे में हमारे मुख्य मंदिर मिले हैं वो तो हमें चाहिए ही चाहिए. हम और कुछ नहीं चाह रहे हैं. भागवत जी को ये कहने का कोई अधिकार नहीं है कि लोग हिंदू नेता बन रहे हैं. हम नेता नहीं बन रहे, हम केवल अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं. वो हिंदू धर्म के किसी आचार्य को कोई निर्देश नहीं दे सकते, ना हम उनका अनुशासन मानेंगे.’

रामभद्राचार्य ने कहा, ‘हम देश के सभी हिंदुओं को कहेंगे कि अपने अधिकार के लिए क्रांति करो और वैचारिक क्रांति करो. यदि उच्चतम न्यायालय कुछ करता है तो हम पुनर्विचार के लिए याचिका दायर करेंगे. जब संविधान में एक सौ उनतीस संशोधन हो ही चुके हैं, एक संशोधन ये भी हो. जो 1991 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था उसमें संशोधन हो.’

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