तेलंगाना के आदिलाबाद निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस नेता कंडी श्रीनिवास रेड्डी अमेरिका में H-1B वीजा लॉटरी सिस्टम में कथित रूप से हेरफेर करने पर जांच के दायरे में आ गए हैं. रेड्डी ने 2013 में क्लाउड बिग डेटा टेक्नोलॉजीज एलसीसी की स्थापना की थी, जिसके जरिए उन्होंने कथित तौर पर 300 से ज्यादा H-1B वीजा हासिल करने के लिए अमेरिका के लॉटरी सिस्टम में हेरफेर किया था.
खुद को साधारण किसान का बच्चा कहने वाले रेड्डी ने अमेरिका में मास्टर डिग्री हासिल की और एक तकनीकी सलाहकार के रूप में काम करने लगे. इस दौरान वह अमेरिका के डलास में बस गए. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार रेड्डी की फर्म ने अमेरिका में रहने या जाने के लिए H-1B वीजा की जरूरत वाले तकनीकी कर्मचारियों को खोजना शुरू किया, इस काम को करने के लिए उन्होंने लोगों की भर्ती की. इतना ही नहीं, भर्ती करने वालों को प्रति व्यक्ति 8,000 डॉलर तक की पेशकश की थी. रिपोर्ट के मुताबिक H-1B वीजा हासिल करने के बाद रेड्डी की कंपनी इन कर्मचारियों को मेटा प्लेटफॉर्म Inc और HSBC होल्डिंग्स पीएलसी जैसी कंपनियों के साथ कॉन्ट्रैक्ट पर रखती थी.
रेड्डी ऐसे करते थे लॉटरी सिस्टम में हेरफेर
जनरल काउंसिल जोनाथन वासडेन ने कहा कि स्टाफ़िंग कंपनियां वास्तव में IT उद्योग की ऐसी फ्लेक्सिबल पावर हैं, जिसकी इंडस्ट्री को जरूरत है. इसके बिना आप अमेरिकी व्यापार और तकनीकी उद्योग में आसानी से काम नहीं कर सकते. वासडेन ने बताया कि ट्रंप प्रशासन के दौरान H-1B लॉटरी सिस्टम में बदलाव का प्रस्ताव रखा गया था, इसके जरिए आवश्यक जानकारी को महज एक छोटे से ऑनलाइन फॉर्म में भरने और 10 डॉलर की फीस का भुगतान कर आसान बनाया गया था. इससे रेड्डी समेत विभिन्न कंपनियों ने एक ही व्यक्ति के लिए अलग-अलग कंपनी के नाम से कई आवेदन किए थे. जिससे उनके चयन की संभावना काफी बढ़ गई.
2020 के लॉटरी सिस्टम में रेड्डीज क्लाउड बिग डेटा ने 288 कर्मचारियों के नाम पेश किए, जबकि उसके नियंत्रण वाली अन्य कंपनियों ने भी एक जैसे नाम वाली कई प्रविष्टियां पेश कीं. कुल मिलाकर 3000 से ज्यादा प्रविष्टियां पेश की गईं, इसके जरिए साल 2020 से 300 से ज्यादा एच-1बी वीजा हासिल किए गए. जिसमें अकेले साल 2020 में 54 वीजा दिए गए थे. जो किसी भी पिछले वर्ष की तुलना में कहीं अधिक हैं.
रेड्डी ने किया ये दावा
ब्लूमबर्ग के मुताबिक रेड्डी ने दावा किया कि वह कंपनियों के लिए केवल एक रजिस्टर्ड एजेंट थे और उनमें कोई बड़ी भूमिका नहीं निभाते थे. हालांकि, उन्होंने अन्य जगहों पर अलग-अलग दावे किए हैं. उन्होंने टेक्सास के अधिकारियों को बताया कि वे क्लाउड बिग डेटा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) हैं. लेकिन रिपोर्ट के अनुसार भारत में चुनाव आयोग में दाखिल दस्तावेजों और अमेरिका में व्यावसायिक रिकॉर्ड से पता चलता है कि रेड्डी या उनकी पत्नी सभी कंपनियों के मालिक हैं या उन पर उनका नियंत्रण है. इसके अलावा पिछले साल रेड्डी ने चुनाव प्रचार के दौरान खुद को कई स्टाफिंग कंपनियों का संस्थापक और सीईओ बताया था. साथ ही सैकड़ों लोगों को रोजगार देने की जिम्मेदारी ली थी.
क्या कहते हैं रेड्डी के वकील?
रेड्डी के वकील लुकास गैरिट्सन ने कहा कि अमेरिकी नागरिकता और आव्रजन सेवा (USCIS) ने इस गतिविधि को प्रतिबंधित करने के लिए उचित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया और उनके पास इस बात का सबूत नहीं है कि रेड्डी की कंपनियों ने नियम तोड़े हैं.
रेड्डी ने लड़ा था इस सीट से चुनाव
इन आरोपों के बावजूद रेड्डी ने भारत में किसानों की मदद के लिए एक फाउंडेशन की स्थापना की और अपना खुद का मीडिया आउटलेट शुरू किया. इतना ही नहीं, रेड्डी ने तेलंगाना के आदिलाबाद निर्वाचन सीट से चुनाव भी लड़ा, लेकिन वह हार गए. बता दें कि अमेरिकी नागरिकता और आव्रजन सेवा ने अब लॉटरी सिस्टम को बदल दिया है. इससे डुप्लीकेट आवेदनों में कमी आई.
स्टाफिंग फ़र्म करती हैं धोखाधड़ी
ब्लूमबर्ग के मुताबिक स्टाफिंग फ़र्म H-1B वीज़ा के लिए धोखाधड़ी करती हैं. दरअसल, स्टाफिंग फ़र्म को “बॉडी शॉप” के रूप में भी जाना जाता है. जो कि वीज़ा ब्रोकर्स की तरह काम करती हैं. ब्लूमबर्ग को स्टाफिंग फ़र्म के वर्तमान और पूर्व कर्मचारियों ने बताया कि वे वीज़ा आवेदनों के लिए कर्मचारियों से फीस लेते हैं, गलत जानकारी देते हैं और श्रम कानूनों का उल्लंघन करते हैं. लेकिन इस बारे में शिकायत करने से कर्मचारियों के वीज़ा को ख़तरा हो सकता है.
कैसे होता है इन कंपनियों का बचाव?
पिछले दशक में H-1B धोखाधड़ी के लिए अधिकांश आपराधिक आरोप स्टाफिंग फ़र्म पर लगाए गए थे, लेकिन इसमें रेड्डी की कंपनियां शामिल नहीं थीं. रिपोर्ट में कहा गया है कि स्टाफिंग फ़र्म का प्रतिनिधित्व करने वाला ITServe Alliance इन कंपनियों का बचाव अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी बताते हुए करता है.