भारत में सालों तक परिवार नियोजन के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जाते रहे, जो आज भी चल तो रहे हैं पर प्रचार-प्रसार उतना नहीं है. आपातकाल के दौर में तो बाकायदा परिवार नियोजन को अभियान बना दिया गया था. हालांकि, 1990 के दशक में उदारीकरण के साथ नीति निर्धारकों के सोच में बदलाव आया और देश के युवाओं की फौज को जनसांख्यिकी लाभांश माना जाने लगा, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में मदद करेगी. इसके चलते चीन को पीछे छोड़कर आज भारत दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन गया है.
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2025 तक 142.86 करोड़ के आंकड़े पर पहुंचने के साथ ही भारत की आबादी चीन की 142.57 करोड़ की आबादी को पीछे छोड़ देगी. विशेषज्ञ अधिक आबादी के फायदे तो बताते ही हैं, इसके नुकसान भी कम नहीं हैं.
मैन्युफैक्चरिंग हब बन सकता भारत
हाल के वर्षों में भारत में जन्म दर में गिरावट आई है. इसके बावजूद इसके पास सबसे ज्यादा कामकाजी उम्र के लोग हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि किसी भी देश की ज्यादा आबादी से वहां की अर्थव्यवस्था को फायदा हो सकता है. वास्तव में जिस देश में जनसंख्या ज्यादा होती है, वहां पर काम करने वालों की संख्या भी अधिक होती है. इससे अर्थव्यवस्था को लाभ मिलता है.
एक अनुमान है कि भारत में लगभग 1.1 बिलियन लोग कामकाजी हैं. यानी कुल संख्या का 75 फीसदी लोग कामकाजी हैं. यह आंकड़ा दुनिया के किसी भी देश में कामकाजी लोगों के आंकड़े के मुकाबले अधिक है. कामकाजी लोगों की संख्या सबसे ज्यादा होने के कारण भारत भविष्य में मैन्युफैक्चरिंग हब बन सकता है, क्योंकि श्रम आसानी से उपलब्ध होगा. इससे यहां निवेश भी बढ़ेगा. ऐसा चीन के साथ हो चुका है. वहीं, जिन देशों की आबादी घट रही है, उन्हें दूसरे देशों से कामगारों की जरूरत होगी. इससे उनके फायदे में कमी आएगी.
बड़ा स्थानीय बाजार
ज्यादा आबादी का मतलब है ज्यादा उपभोक्ता. लोग होंगे तो उनकी जरूरतें होंगी और जरूरतों को पूरा करने के लिए सामान चाहिए. भारत अब जब सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन गया है तो यहां सबसे ज्यादा स्थानीय उपभोक्ता भी हैं. इससे देश को एक बड़ा बाजार मिल गया है और बाहरी कारणों का यहां की अर्थव्यवस्था पर अधिक असर नहीं पड़ेगा.
नुकसान भी कम नहीं
भले ही भारत की आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा हो गई है और यह दुनिया की कुल आबादी का 18 फीसदी है पर देश के पास जमीन कम है. इसके पास दुनिया का केवल 2.5 क्षेत्रफल है. ऐसे में बढ़ती आबादी के कारण देश में सुविधाओं की लगातार कमी हो रही है. इतनी बढ़ी आबादी को रोगजार मुहैया कराना सबसे बड़ी समस्या है, वह भी तब जब कामकाजी लोगों की भारी भरकम फौज सामने खड़ी है. भोजन और रहने के लिए घर मुहैया कराना भी मुश्किल है. बड़ी आबादी को शुद्ध पेयजल और स्वास्थ्य सेवाएं जैसी मूलभूत सुविधाएं देना इतना आसान नहीं है.
फिर इतनी बड़ी आबादी को एक साथ शिक्षित करना और कुशल बनाना सबसे चुनौतीपूर्ण काम है. जितने लोगों को आज शिक्षित और कुशल बनाने की आवश्यकता है, शिक्षा संस्थानों के पास उतनी क्षमता ही नहीं है. ऐसे में या तो निजी क्षेत्र अंधाधुंध कमाई कर सक्षम लोगों को लूट रहे हैं या फिर बहुत से काबिल और मेधावी लोग अच्छी शिक्षा से ही वंचित रह जा रहे हैं. फिर बहुत से लोग ऐसा कौशल हासिल कर रहे हैं जो बाजार में उपलब्ध अवसर से मेल ही नहीं खा रहा.
बाजार और कौशल में मेल नहीं होने का नतीजा है बेरोजगारी. ऐसे में जनसंख्या बढ़ने के साथ बेरोजगारी भी बढ़ेगी और धन की कमी के कारण गरीबी रेखा के नीचे वाली आबादी भी बढ़ सकती है. इससे आमदनी की असमानता बड़े खतरे के रूप में सामने दिखाई दे रही है.
प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन
एक तो कम जमीन ऊपर से बड़ी आबादी. ऐसे में प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन हो रहा है, जबकि हमारे पास ये संसाधन सीमित हैं. आबादी बढ़ने के साथ इन संसाधनों में कमी आती जाएगी और लोगों के बीच इनको लेकर भी लड़ाई छिड़ सकती है. रहने और अन्न उत्पादन के लिए जमीन की कमी हो सकती है. पीने के पानी के लिए हम भूजल का भरपूर दोहन कर ही रहे हैं. ऊर्जा की जरूरतें पूरी करने के लिए इतना कोयला निकाल रहे हैं कि धरती खोखली होती जा रही है.
फिर आबादी बढ़ने का सीधा असर पर्यावरण पर दिखने लगा है. वनों की अंधाधुंध कटाई कर लोग रहने के लिए घर या अन्न उगाने के लिए खेत बना रहे. इससे पर्यावरण असंतुलित हो रहा है. तालाब आदि पाटकर उनका भी इस्तेमाल इन्हीं कार्यों के लिए किया जा रहा है. रोजगार की लालच में बड़ी संख्या में युवा आबादी शहरों की ओर भाग रही है. ये सब कारण वायु प्रदूषण को बढ़ावा दे रहे हैं तो जल प्रदूषण की रक्षा के लिए भी बड़ी चुनौती बन रहे हैं.