Navratri: नवरात्रि के नौ दिन साधना, शुद्धि और आत्मसंयम के पर्व माने जाते हैं. इस दौरान मां दुर्गा की उपासना केवल मंत्र-जप या व्रत तक सीमित नहीं रहती, बल्कि आचार-विचार और आहार पर भी सीधा असर डालती है. यही कारण है कि शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि नवरात्रि में नॉनवेज और शराब का सेवन वर्जित है. लेकिन सवाल उठता है कि क्यों? क्या केवल धार्मिक मान्यता है या इसके पीछे गहरी तर्कशक्ति भी छिपी है?
आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः
छांदोग्य उपनिषद का वचन है कि आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः सत्त्वशुद्धौ ध्रुवा स्मृतिः. अर्थात, जैसा आहार होगा, वैसा ही मन बनेगा. नवरात्रि साधना का समय है, जब मन को सात्त्विक, स्थिर और निर्मल बनाना आवश्यक होता है.
नॉनवेज और शराब को तामसिक आहार कहा गया है, जो क्रोध, आलस्य और असंयम को जन्म देते हैं. इसी कारण देवी भागवत और गरुड़ पुराण दोनों में माता की उपासना के समय इनका त्याग अनिवार्य बताया गया है
मद्यं मांसं च मातृव्रतेषु न सेवनम्
देवी भागवत में साफ कहा गया है कि मद्यं मांसं च मातृव्रतेषु न सेवनम्. अर्थात, मां दुर्गा के व्रत और पर्वों में मांस व मदिरा का सेवन पापफल को आमंत्रित करता है. इसे न केवल देवी का अपमान माना गया है, बल्कि पितरों और देवताओं की कृपा भी इससे बाधित होती है.
शरीर और मन का डिटॉक्स
धार्मिक दृष्टि से अलग देखें तो नवरात्रि का यह अनुशासन शरीर के लिए एक प्राकृतिक डिटॉक्स है. नौ दिन सात्त्विक भोजन, फलाहार और उपवास पाचन तंत्र को विराम देते हैं.
शराब और नॉनवेज शरीर में टॉक्सिन्स बढ़ाते हैं, वहीं उपवास और हल्का भोजन इम्युनिटी को दुरुस्त करता है. इसीलिए आयुर्वेदाचार्यों ने भी उपवास को स्वास्थ्य के लिए अमृत समान माना है.
तासिक प्रवृत्ति बनाम साधना की एकाग्रता
नवरात्रि का असली लक्ष्य है कि मन को देवी की साधना में केंद्रित करना. शराब और नॉनवेज तामसिक प्रवृत्ति को बढ़ाकर मन को भटकाते हैं. इससे साधना की गहराई टूटती है. वहीं फलाहार और सात्त्विक भोजन से मानसिक शांति आती है और ध्यान की स्थिति सहज बनती है.