उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के सपनों पर पानी फेरने का सबसे बड़ा काम समाजवादी पार्टी ने किया है. काउंटिंग अभी चल रही है. फाइनल रिजल्ट आने में अभी भी कई घंटे लगेंगे पर अभी तक जो स्थिति दिख रही है उससे यही लगता है कि बीजेपी को बहुत बड़ा नुकसान होता दिख रहा है. न केवल 400 का सपना टूटता दिख रहा है बल्कि सरकार बनाने के लिए लड़ाई लड़ती हुई नजर आ रही एनडीए. चुनाव आयोग की वेबसाइट के अनुसार अभी तक ( एक बजे ) यूपी में बीजेपी 33 सीटों पर तो समाजवादी पार्टी 36 सीटों पर आगे दिख रही है.जबकि कांग्रेंस भी सात सीटों पर आगे दिख रही है. इस तरह स्पष्ट है कि अभी एनडीए से आगे इंडिया गुट दिख रहा है. जाहिर है कि यूपी में मिल रही सफलता का बहुत बड़ा श्रेय समाजवादी पार्टी के मुखिया और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को जाएगा. समाजवादी पार्टी ने यूपी में जिस तरह की लड़ाई लड़ी है उसी का नतीजा है कि कांग्रेस को भी उत्तर प्रदेश में लाभ होता दिख रहा है. आइये देखते हैं कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी के काम खराब होने के क्या कारण रहे?
1- मायावती के कैंडिडेट ने बिगाड़ा खेल
आम तौर पर बीएसपी को विपक्ष भाजपा की बी टीम कहकर टार्गेट करता रहा है पर कहानी कुछ और ही चल रही थी. पश्चिम से पूरब तक मायावती ने ऐसे कैंडिडेट खड़े किए जो एनडीए कैंडिडेट्स को ही नुकसान पहुंचा रहे थे. पश्चिमी यूपी में मेरठ में देवव्रत त्यागी, मुजफ्फरनगर से दारा सिंह प्रजापति, खीरी सीट से बीएसपी का पंजाबी प्रत्याशी आदि बीजेपी को सीधे नुकसान पहुंचा रहे थे. इसी तरह पूर्वी यूपी में घोसी में बीएसपी ने जो कैंडिडेट दिया वह सीधा इशारा था कि पार्टी ने एनडीए का काम खराब करने का ठेका ले लिया है. घोसी सीट पर बालकृष्ण चौहान ने एनडीए की 2 साल पुरानी तैयारी को ही पलीता लगा दिया. यहां पर बीजेपी ने स्थानीय नोनिया नेता दारा सिंह चौहान को समाजवादी पार्टी से इसलिए ही लाए गए थे कि उनका लाभ घोसी और आसपास की सीटों पर लिया जा सके. पर जब बीएसपी ने एक नोनिया जाति के कैडिडेट बालकृष्ण चौहान का खड़ा कर दिया तो जाहिर है कि एनडीए का काम खराब होना ही था.
इसी तरह चंदौली में बीएसपी उम्मीदवार सतेंद्र कुमार मौर्या बीजेपी उम्मीदवार महेंद्रनाथ पांडेय के लिए खतरा बन गए.. इसी तरह बहुजन समाज पार्टी के मनीष त्रिपाठी मिर्जापुर में अनुप्रिया पटेल को त्रिकोणीय मुकाबले में फंसा दिए. यहां भी बीजेपी का कोर वोटर ब्राह्मण बीएसपी के साथ गया है . इन तीनों ही सीटों पर बीएसपी के प्रत्याशी को स्टोरी लिखे जाने तक 40 से 60 हजार वोट मिलते दिख रहे हैं जबकि बीजेपी के कैंडिडेट मात्र कुछ वोट से अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी से मात्र कुछ हजार वोट से आगे पीछे हो रहे हैं.पूरे प्रदेश में 2 दर्जन ऐसी सीटें हैं जहां बीजेपी कैंडिडेट के वोट बीएसपी कैंडिडेट के चलते कम हो रहे हैं.
2- अखिलेश ने कैंडिडेट देनें में सूझबूझ दिखाई
चुनावों के दौरान अखिलेश यादव की इस बात के लिए बहुत आलोचना हुई कि वो बार-बार अपने कैंडिडेट बदल रहे हैं. पर इस बात की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने जो कैंडिडेट खड़े किए वो स्थानीय गणित के हिसाब से बेहतर थे. यही कारण है धरातल पर वो बीजेपी कैंडिडेट को जबरदस्त टक्कर देते दिख रहे हैं.
फैजाबाद (अयोध्या) में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी अवधेश प्रसाद अभी तक लीड लिए हुए हैं. एक एससी कैंडिडेट को फैजाबाद में खड़ा करने का साहस दिखाना ही अखिलेश की सूझबूझ को दिखाता है. इसी तरह मेरठ संसदीय सीट से जहां टीवी के राम अरुण गोविल चुनाव लड़ रहे थे वहां से भी एक एससी कैंडिडेट को खड़ा करना अखिलेश की चुनावी समझ को बताता है. अखिलेश पर बहुत दबाव था कि मेरठ जैसी सीट से किसी मुस्लिम प्रत्याशी को खड़ा करें.मेरठ में कई बार मुस्लिम कैंडिडेट सांसद बन चुके हैं. पर अखिलेश का यह दांव अभी तक के हिसाब से तो काम कर गया दिखता है. खबर लिखे जाने तक दोनों ही कैंडिडेट अपनी सीटों से आगे चल रहे हैं.
घोसी लोकसभा से भी समाजवादी पार्टी ने पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और प्रवक्ता राजीव राय को टिकट दिया. जो पार्टी का मीडिया चेहरा होने के साथ तमाम सामाजिक कार्यं जैसे एजुकेशनल इंस्टिट्यूट आदि भी चलाते हैं. और सबसे बढ़कर स्थानीय जातीय समीकरण के हिसाब से बिल्कुल फिट बैठते हैं. घोसी लोकसभा से इसके अतुल राय, कल्पनाथ राय,राजकुमार राय, झारखंडे राय जैसे तमाम भूमिहार नेता प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. जाहिर है कि भूमिहार जाति के लोग चाहेंगे कि यह परंपरा बनी रहे.भूमिहार बीजेपी के कोर वोटर्स बन चुके हैं पर जब अपनी जाति का प्रत्याशी होगा जाहिर है उसे ही वोट जाएंगे.
इसी तरह मिर्जापुर से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार राजेंद्र एस बिंद हैं.राजेंद्र एस बिंद का मुंबई में कारोबार है. बिंद समाज कल्याण संघ के माध्यम से उन्होंने पहले भूमिका तैयार की, जिसके बाद समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. मिर्जापुर जिले में पिछड़ों में कुर्मी के बाद सबसे ज्यादा बिंद मतदाता हैं. एक अनुमान के मुताबिक करीब एक लाख 40 हजार बिंद मतदाता हैं.
चंदौली से भी समाजवादी पार्टी ने टक्कर देने वाला प्रत्याशी दिया है. वीरेंद्र सिंह समाजवादी पार्टी से पहले कांग्रेस, बसपा और समाजवादी पार्टी में रह चुके हैं. वीरेंद्र सिंह ने चिरईगांव विधानसभा सीट से 1996 में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की थी. 2003 में चिरईगांव विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में उन्होंने बसपा के टिकट पर जीत हासिल की और दोबारा विधानसभा में पहुंचे.इसके बाद उनकी राजनीतिक यात्रा में एक बार फिर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी शामिल रही. 2017 में फिर से बसपा का दामन थामने के बाद वह फिर से समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. बीते नगर निकाय चुनाव के पहले सपा ने वीरेंद्र सिंह को राष्ट्रीय प्रवक्ता की जिम्मेदारी भी सौंपी थी. बलिया से सनातन पांडेय ने पिछली बार बहुत कम वोटों से अपनी सीट गंवाई थी. उन्हें फिर से टिकट दिया गया है. संयोग से बीजेपी ने इस बार फिर राजपूत कैंडिडेट के रूप नीरज शेखर को टिकट दिया. इन सभी सीटों पर समाजवादी पार्टी के कैंडिडेट अभी तक आगे चल रहे हैं.
3-राजपूतों की नाराजगी, यूपी सीएम को हटाने की अफवाह से नुकसान
उत्तर प्रदेश में क्षत्रियों की नाराजगी की भी बीजेपी को कीमत चुकानी पड़ गई.पहले गुजरात में परषोत्तम रुपाला का क्षत्रियों पर कमेंट मुद्दा बना. जिसका आंच यूपी तक महसूस की जा रही थी. इस बीच गाजियाबाद से जनरल वीके सिंह का टिकट कटना भी मुद्दा बन गया. मतलब साफ था किसी न किसी बहाने बीजेपी को टार्गेट करना. इस बीच चुपचाप तरीके से एक अफवाह यह भी फैलाई गई कि अगर बीजेपी को 400 सीटें मिलती हैं तो उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ को बीजेपी हटा देगी. इस बात को लेकर आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी पर जमकर हमला भी बोला. पश्चिमी यूपी में लगातार कई जिलों में राजपूतों ने सम्मेलन करके कसम दिलाई गई कि किसी भी हालत में बीजेपी को वोट नहीं देना है. अगर ठीक से कोशिश की गई होती तो ये सम्मेलन रोके जा सकते थे.
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव से लेकर बसपा प्रमुख मायावती तक ने क्षत्रियों से नाराजगी के मुद्दे को चुनावी मैदान में उछाला. मुजफ्फरनगर में क्षत्रियों के नाराजगी का मुद्दा खूब गरमाया गया. मुजफ्फरनगर से केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान चुनावी मैदान में थे उनका पीछे चलना बताता है कि राजपूतों की नाराजगी उन्हें भारी पड़ गई. भारतीय जनता पार्टी के ही संगीत सोम ने उनको चूना लगा दिया. प्रतापगढ़ में राजा भैया राज्यसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी के साथ दिखे थे. पर बाद में उनकी नाराजगी से भी पार्टी को नुकसान पहुंचा.
5-पेपर्स लीक और परीक्षाओं में देरी के चलते युवा पीढी ने माहौल बदला
गांव के लोगों के लिए जो बात सभी जातियों के लिए समान है वह है सरकारी नौकरियों की तैयारी.चाहे ऊंची जाति का घर हो या पिछड़ी या अनुसूचित जाति के परिवार हों, सभी घरों में सरकारी नौकरियों की परीक्षा की तैयारी करने वाले युवा हैं. इसमें लड़के और लड़कियां दोनों ही शामिल हैं. उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों में इसी मुद्दे पर युवाओं ने पहली बार बीजेपी को इसलिए ही वोट दिया था. पर बीजेपी की दूसरी सरकार के आते-आते परीक्षा माफिया एक बार फिर सरकार पर भारी पड़ने लगा है.यही कारण रहा कि उत्तर प्रदेश में इस समय राज्य में पेपर लीक और बेरोज़गारी के चलते युवाओं का गुस्सा सातवें आसमान पर है. भर्ती पेपर में गड़बड़ी और धांधली को लेकर अक्सर ही प्रदेश के युवा सड़कों पर संघर्ष करते नज़र आते हैं, तो वहीं भर्तियों का लंबा इंतज़ार भी वर्तमान सरकार के प्रति असंतोष का प्रमुख कारण है.
पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा सहित करीब दर्जन भर परीक्षाएं पेपर लीक के चलते कैंसल हो चुकी हैं. 69 हजार शिक्षक भर्ती घोटाले को यूपी का ‘व्यापमं घोटाला’ भी कहा जाता है. युवा परेशान हैं.उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग ने पिछले साल प्रतियोगी और शैक्षणिक परीक्षाओं से जुड़े प्रश्न पत्रों को लीक होने से रोकने और पेपर सॉल्वर गैंग पर लगाम लगाने के लिए एक कानूनी मसौदा तैयार किया था. इस प्रस्तावित कानून में 14 साल जेल और 25 लाख रुपये तक के ज़ुर्माने का प्रावधान है. पर कानून बनाने से जनता की समस्या का हल नहीं होता है. यही कारण रहा कि यूथ का वोट बीजेपी को नहीं मिला है.