बारिश के बीच भूकंप के झटके क्यों ज्यादा खतरनाक साबित हो सकते हैं? लोग बरतें ये सावधानियां

10 जुलाई 2025 को दिल्ली-NCR में बारिश के बीच भूकंप के झटके महसूस किए गए. यह भूकंप 4.4 तीव्रता का था, जिसका केंद्र रोहतक के पास बताया जा रहा है. बारिश और भूकंप का एक साथ आना लोगों के लिए डरावना रहा, क्योंकि दोनों प्राकृतिक आपदाएं मिलकर खतरे को बढ़ा सकती हैं.

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क्या हुआ दिल्ली-NCR में?

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10 जुलाई 2025 की सुबह करीब 9 बजे, दिल्ली-NCR में भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए. नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी (NCS) के अनुसार, भूकंप की तीव्रता 4.4 थी. इसका केंद्र रोहतक के पास था. झटके दिल्ली, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद और गुरुग्राम में महसूस किए गए. बारिश के कारण सड़कें पहले ही गीली थीं. लोग दहशत में घरों से बाहर निकल आए. कोई बड़ा नुकसान या हताहत होने की खबर नहीं है, लेकिन बारिश और भूकंप का संयोजन चिंता का विषय है.

दिल्ली में भूकंप क्यों आते हैं?

दिल्ली-NCR सिस्मिक जोन IV में आता है, जो मध्यम से उच्च जोखिम वाला क्षेत्र है. यह हिमालय की टकराव क्षेत्र से सिर्फ 250 किलोमीटर दूर है, जहां भारतीय और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट्स टकराती हैं. इस टकराव से ऊर्जा जमा होती है, जो भूकंप के रूप में निकलती है. दिल्ली के पास कई फॉल्ट लाइन्स (भ्रंश) हैं, जैसे…

  • दिल्ली-हरिद्वार रिज
  • महेंद्रगढ़-देहरादून फॉल्ट
  • सोहना फॉल्ट
  • यमुना रिवर लाइनमेंट

ये फॉल्ट लाइन्स दिल्ली को भूकंप के लिए संवेदनशील बनाती हैं. इसके अलावा, धौला कुआं जैसे क्षेत्र जहां झीलें हैं, हर 2-3 साल में छोटे भूकंप देखते हैं. उदाहरण के लिए, 2015 में वहां 3.3 तीव्रता का भूकंप आया था.

earthquake in rain

बारिश के बीच भूकंप: कितना खतरनाक?

बारिश और भूकंप का एक साथ आना कई कारणों से खतरनाक हो सकता है. दिल्ली-NCR में मॉनसून के दौरान बारिश ने सड़कों, इमारतों और मिट्टी को पहले ही कमजोर कर रखा है. भूकंप के झटके इस स्थिति को और बिगाड़ सकते हैं. संभावित खतरे इस प्रकार हैं…

इमारतों को नुकसान

दिल्ली-NCR में कई ऊंची इमारतें और पुराने ढांचे हैं, जैसे कनॉट प्लेस, ट्रांस-यमुना क्षेत्र और अनियोजित बस्तियां. ये भूकंप प्रतिरोधी नहीं हो सकतीं. बारिश से मिट्टी और नींव कमजोर होने पर इमारतों के ढहने का खतरा बढ़ जाता है.

4.4 तीव्रता का भूकंप आमतौर पर बड़ा नुकसान नहीं करता, लेकिन उथली गहराई (5 किमी) के कारण झटके तेज महसूस हुए. अगर तीव्रता 6.0 से ज्यादा होती, तो नुकसान ज्यादा हो सकता था.

भूस्खलन और मिट्टी का कटाव

बारिश से मिट्टी गीली और अस्थिर हो जाती है. भूकंप के झटके भूस्खलन या मिट्टी के कटाव को ट्रिगर कर सकते हैं, खासकर नोएडा और गुरुग्राम जैसे क्षेत्रों में जहां निर्माण कार्य चल रहे हैं.

सड़कों और परिवहन पर असर

बारिश से सड़कें पहले ही कीचड़ और पानी से भरी होती हैं. भूकंप के झटकों से सड़कों में दरारें पड़ सकती हैं, जिससे यातायात और बचाव कार्य मुश्किल हो सकते हैं.

आफ्टरशॉक का खतरा

नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के निदेशक डॉ. ओ.पी. मिश्रा के अनुसार, 4.4 तीव्रता के भूकंप के बाद 1.2 तीव्रता तक के आफ्टरशॉक आ सकते हैं. बारिश के कारण मिट्टी की अस्थिरता इन आफ्टरशॉक्स को और खतरनाक बना सकती है.

earthquake in rain

हिमालय में बड़े भूकंप का डर

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि हिमालय क्षेत्र में टेक्टोनिक तनाव के कारण ‘ग्रेट हिमालयन भूकंप’ (8.0+ तीव्रता) आ सकता है. दिल्ली, जो हिमालय से करीब है, को इसका असर झेलना पड़ सकता है. बारिश इस खतरे को और बढ़ा सकती है, क्योंकि गीली मिट्टी और कमजोर ढांचे बड़े भूकंप में ज्यादा नुकसान झेल सकते हैं.

खतरे का स्तर

4.4 तीव्रता का भूकंप आमतौर पर कम खतरनाक होता है. इसे ‘हल्का’ (लाइट) भूकंप माना जाता है. लेकिन दिल्ली में यह ज्यादा डरावना क्यों लगा? इसके कारण हैं…

  • उथली गहराई: भूकंप का केंद्र सिर्फ 5 किमी नीचे था, जिससे झटके तेज महसूस हुए. गहरे भूकंप (100 किमी+) कम तीव्रता देते हैं.
  • केंद्र का स्थान: भूकंप का केंद्र रोहतक के पास था. ज्यादातर दिल्ली में हिमालय, नेपाल या अफगानिस्तान से आने वाले झटके महसूस होते हैं. केंद्र का नजदीक होना झटकों को और तेज करता है.
  • घनी आबादी और ऊंची इमारतें: दिल्ली-NCR में ऊंची इमारतें और घनी बस्तियां हैं, जो भूकंप के झटकों को और बढ़ा देती हैं. ऊंची इमारतें हिलने से लोग ज्यादा डर गए.
  • बारिश का असर: गीली मिट्टी और कमजोर नींव ने इमारतों को और संवेदनशील बना दिया.

हालांकि इस भूकंप से कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ, लेकिन अगर तीव्रता 6.0 से ज्यादा होती, तो बारिश के साथ मिलकर यह इमारतों, सड़कों और बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा सकता था.

सावधानियां: भूकंप और बारिश में क्या करें?

भूकंप और बारिश का संयोजन होने पर सावधानी बरतना बहुत जरूरी है. नीचे कुछ आसान सावधानियां दी गई हैं…

भूकंप के दौरान

ड्रॉप, कवर, होल्ड ऑन: अगर आप घर के अंदर हैं, तो मजबूत मेज या टेबल के नीचे छिपें. सिर को हाथों से ढकें और तब तक रुकें, जब तक झटके बंद न हों.

खुली जगह में जाएं: अगर बाहर निकलना संभव हो, तो खुली जगह पर जाएं, जहां इमारतें, पेड़ या बिजली के तार न हों. लेकिन बारिश में गीली सड़कों पर सावधानी बरतें.

लिफ्ट का इस्तेमाल न करें: सीढ़ियों का उपयोग करें, क्योंकि लिफ्ट में फंसने का खतरा हो सकता है.

खतरनाक चीजों से बचें: खिड़कियों, शीशे और भारी सामान (जैसे अलमारी) से दूर रहें, जो गिर सकते हैं.

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बारिश के साथ सावधानी

  • गीली सड़कों पर सावधानी: बारिश के कारण सड़कें फिसलन भरी हो सकती हैं. भूकंप के दौरान बाहर भागते समय सावधान रहें, ताकि फिसलने से चोट न लगे.
  • बाढ़ वाले क्षेत्रों से बचें: दिल्ली-NCR में मॉनसून के दौरान निचले इलाकों में पानी भर जाता है. भूकंप के बाद इन क्षेत्रों में जाने से बचें.
  • इमारतों की जांच: अगर आपकी इमारत पुरानी है, तो भूकंप के बाद उसमें दरारें या नुकसान की जांच करें. बारिश से कमजोर नींव और खतरनाक हो सकती है.
  • आफ्टरशॉक के लिए तैयार रहें: भूकंप के बाद छोटे झटके (आफ्टरशॉक) आ सकते हैं. इसके लिए हमेशा अलर्ट रहें.
  • अपने फोन में BhooKamp ऐप डाउनलोड करें, जो भूकंप की ताजा जानकारी देता है.

आपातकालीन तैयारी

  • इमरजेंसी किट: घर में एक किट रखें, जिसमें पानी, टॉर्च, प्राथमिक चिकित्सा सामग्री और जरूरी दवाइयां हों.
  • हेल्पलाइन नंबर: दिल्ली पुलिस ने आपातकाल के लिए 112 नंबर का इस्तेमाल करने को कहा है. इसे अपने फोन में सेव करें.
  • परिवार का प्लान: अपने परिवार के साथ एक आपातकालीन योजना बनाएं, ताकि भूकंप या बाढ़ में सभी सुरक्षित जगह पर मिल सकें.
  • जागरूकता और प्रशिक्षण: भूकंप और बाढ़ से बचाव के लिए समय-समय पर ड्रिल करें. स्कूलों और ऑफिस में भी ऐसी ट्रेनिंग जरूरी है.
  • पुरानी इमारतों को भूकंप प्रतिरोधी बनाने के लिए स्थानीय प्रशासन से संपर्क करें.

नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के निदेशक डॉ. ओ.पी. मिश्रा ने कहा कि दिल्ली में छोटे भूकंप सामान्य हैं. इसमें घबराने की जरूरत नहीं है, लेकिन सावधानी जरूरी है. वैज्ञानिकों ने यह भी चेतावनी दी है कि हिमालय क्षेत्र में बड़ा भूकंप (8.0+ तीव्रता) आ सकता है, जो दिल्ली-NCR को प्रभावित कर सकता है. बारिश इस खतरे को और बढ़ा सकती है, क्योंकि गीली मिट्टी और कमजोर ढांचे ज्यादा नुकसान झेल सकते हैं.

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