हिंदू धर्म में माघ माह का विशेष महत्व है. इस माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म अष्टमी यानी इस दिन को भीष्म पितामह की पुण्यतिथि के रूप में जाना जाता है. भीष्म पितामह ने आजीवन ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा ली तथा जीवन पर्यन्त उसका पालन किया.अपने पिता के प्रति उनकी निष्ठा एवं समर्पण के कारण, भीष्म पितामह को अपनी इच्छानुसार मृत्यु का समय चुनने का वरदान प्राप्त हुआ था.
पितामाह ने क्यों चुनी यह तिथि?
महाभारत युद्ध में गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी अपने वरदान के कारण भीष्म पितामाह ने अपना देह त्याग नहीं किया था. उन्होंने शरीर त्याग ने के लिए उन्होंने एक शुभ मुहूर्त की प्रतीक्षा की. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, सूर्यदेव जब दक्षिण दिशा में चले जाते हैं, तब शुभ और मंगल कार्यों को करने की मनाही होती है. इस अवधि को अशुभ माना जाता है. वहीं जब सूर्य देव उत्तर दिशा यानी उत्तरायण में वापस आने लगते हैं, तब से शुभ कार्यों का अयोजन किया जाता है. इसलिए भीष्म पितामाह ने अपना देह त्यागने के लिए माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को चुना, क्योंकि इस समय तक सूर्यदेव उत्तर दिशा अथवा उत्तरायण में वापस जाने लगे थे. मान्यता है कि जो लोग उत्तरायण में अपने प्राण त्यागते हैं, उनको जीवन-मृत्यु के चक्र से छुटकारा मिल जाता है, वह मोक्ष को प्राप्त करते हैं.
भीष्म अष्टमी शुभ मुहूर्त |
हिंदू वैदिक पंचांग के अनसुार, भीष्म अष्टमी के दिन श्राद्ध के लिए समय सुबह 11 बजकर 30 मिनट से लेकर दोपहर 01 बजकर 41 मिनट तक है. इस दिन पितृ तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है. यदि किसी व्यक्ति का पिंडदान नहीं किया गया हो, तो भीष्म अष्टमी पर तर्पण करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है. यह दिन विशेष रूप से ब्राह्मणों और पितरों की सेवा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है.
भीष्म अष्टमी पूजा विधि |
भीष्म अष्टमी के दिन पूजा करने के लिए प्रातःकाल जल्दी उठें और किसी पवित्र नदी या तालाब में स्नान करें. यदि यह संभव न हो, तो घर के नहाने के पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान करें. स्नान के बाद, अपने हाथ में जल लेकर तर्पण करें. तर्पण करते समय अपना मुख दक्षिण दिशा की ओर रखें. यदि आप यज्ञोपवीत यानी जनेऊ धारण करते हैं, तो इसे अपने दाहिने कंधे पर धारण करें और इस प्रकार तर्पण करें. तर्पण के समय इस मंत्र का उच्चारण करें-
ॐ भीष्माय स्वधा नमः.पितृपितामहे स्वधा नमः.
विधि विधान से तर्पण पूर्ण होने के बाद, जनेऊ को पुनः बाएं कंधे पर धारण करें. इसके बाद गंगापुत्र भीष्म को अर्घ्य अर्पित करें. इस प्रकार, पूर्ण श्रद्धा और विधि-विधान से भीष्म अष्टमी के दिन पूजा और तर्पण करने से सभी पापों का नाश होता है और जीवन में पवित्रता और शांति का वास होता है.