आज के समय में शॉपिंग, बिल पेमेंट और लोन लेने तक हर चीज के लिए लोग कैश से ज्यादा क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करने लगे हैं। खासकर युवा पीढ़ी के बीच इसका उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। क्रेडिट कार्ड की सबसे बड़ी खासियत यह है कि अगर आपके पास उस वक्त पैसे नहीं हैं, तब भी आप खरीदारी कर सकते हैं और बाद में भुगतान कर सकते हैं। इसके साथ ही बैंक और कार्ड कंपनियां आकर्षक कैशबैक और डिस्काउंट ऑफर्स भी देती हैं। लेकिन सवाल यह है कि आखिर बैंक इस सबके बावजूद कमाई कैसे करते हैं?
मर्चेंट फीस से कमाई
जब भी कोई ग्राहक क्रेडिट कार्ड से पेमेंट करता है तो बैंक व्यापारी (मर्चेंट) से एक तय फीस वसूलता है। इसे मर्चेंट फीस कहा जाता है। यह फीस सामान्यत: 2 से 3 प्रतिशत के बीच होती है। व्यापारी को अपने प्रोडक्ट या सर्विस के दाम तय करते समय इस खर्च को ध्यान में रखना पड़ता है। यह बैंक की लगातार आय का एक बड़ा स्रोत है।
ब्याज दर और लेट फीस
क्रेडिट कार्ड कंपनियां ग्राहकों को आमतौर पर 45 दिनों का ब्याज-मुक्त समय देती हैं। अगर इस अवधि में भुगतान नहीं किया गया तो बैंक सालाना 30 से 38 प्रतिशत तक की ब्याज दर वसूलते हैं। यही नहीं, अगर ग्राहक ईएमआई का विकल्प चुनता है तो उस पर भी अतिरिक्त ब्याज देना पड़ता है। इसी ब्याज और लेट फीस से बैंकों को बड़ा मुनाफा होता है।
मार्केटिंग टाई-अप और डिस्काउंट
अक्सर ब्रांड्स और बैंक आपस में समझौता करते हैं ताकि ग्राहकों को खास ऑफर्स दिए जा सकें। उदाहरण के लिए, किसी शॉपिंग साइट या मॉल में विशेष बैंक के क्रेडिट कार्ड पर 10 से 20 प्रतिशत तक की छूट मिलती है। ऐसे में ग्राहक उसी कार्ड से भुगतान करने के लिए प्रेरित होता है। इसके बदले कंपनियां बैंक को मार्केटिंग टाई-अप चार्ज देती हैं। इस रणनीति से ब्रांड्स को ज्यादा ग्राहक मिलते हैं और बैंक को अतिरिक्त आय।
ग्राहकों की आदत पर निर्भर कमाई
क्रेडिट कार्ड डिस्काउंट्स का असली मकसद ग्राहकों को लगातार कार्ड इस्तेमाल करने की आदत डालना होता है। जैसे-जैसे लोग डिस्काउंट और कैशबैक के लालच में क्रेडिट कार्ड ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, बैंक की कमाई भी बढ़ती चली जाती है।