डॉलर बचाने के लिए ट्रंप को आक्रामक होने की जरूरत क्यों महसूस हो रही? किन देशों की करेंसी बन रही चुनौती

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में डॉलर की वैश्विक बादशाहत को बचाए रखने के लिए आक्रामक रुख अपनाया है. इसकी सबसे बड़ी वजह है दुनिया के कई देशों द्वारा अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने की कोशिशें. ट्रंप ने BRICS देशों (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) और उनके नए सहयोगियों को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर वे डॉलर की जगह कोई वैकल्पिक करेंसी लाने की कोशिश करेंगे, तो अमेरिका 10% से 100% तक टैरिफ लगा सकता है और ऐसे देशों को अमेरिकी बाजार से बाहर कर देगा. डॉलर को लेकर ट्रंप का आग्रह उनके बयानों से दिखता है. उन्होंने मंगलवार को कैबिनेट की मीटिंग में कहा कि डॉलर करेंसी की दुनिया का किंग है और हम इसको ऐसा ही रखने जा रहे हैं.

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ट्रंप यह आक्रामक रुख इसलिए है क्योंकि डॉलर की वैश्विक स्थिति कमजोर होती दिख रही है. 2025 के शुरुआती महीनों में डॉलर की वैल्यू 1973 के बाद सबसे ज्यादा गिरी है. ट्रंप की टैरिफ और संरक्षणवादी नीतियों ने भी वैश्विक व्यापार और डॉलर की स्थिरता पर सवाल खड़े किए हैं.

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ट्रंप ने मंगलवार को अपनी आक्रामक व्यापार नीति में डॉलर को सबसे आगे रखने की बात कही. उन्होंने कहा, “डॉलर स्टैंडर्ड को खोना एक युद्ध, एक बड़े विश्व युद्ध को हारने जैसा होगा. ऐसी स्थिति में हम अब पहले जैसे देश नहीं रहेंगे और हम ऐसा नहीं होने देंगे.”

किन देशों की करेंसी बन रही चुनौती?

1. BRICS देश और नए सदस्य

ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका: ये देश मिलकर डॉलर की जगह एक नई साझा करेंसी लाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसे “BRICS यूनिट” या डिजिटल करेंसी के रूप में देखा जा रहा है. ट्रंप ने इसको लेकर कड़ी प्रतिक्रिया दी है. ट्रंप आज ब्रिक्स के अहम मेंबर ब्राजील पर 50 फीसदी का टैरिफ लगा चुके हैं. इसके अलावा उन्होंने बाकी देशों को चेतावनी दे दी है.

नए सदस्य: इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, अल्जीरिया, बेलारूस, कजाकिस्तान, नाइजीरिया, तुर्की, उज्बेकिस्तान, आदि भी BRICS के साथ जुड़कर डी-डॉलराइजेशन की दिशा में बढ़ रहे हैं. हालांकि नई ब्रिक्स करेंसी को लेकर अभी कुछ स्पष्ट नहीं हुआ है. भारत इस मुद्दे पर संभलकर चल रहा है. क्योंकि भारत के लिए ब्रिक्स के सबसे बड़े देश चीन की नीति पर भरोसा करना मुश्किल है.

बता दें कि BRICS+ (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका और नए सदस्य) देश अब वैश्विक अर्थव्यवस्था में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं. 2023 में BRICS+ देशों का वैश्विक GDP में हिस्सा लगभग 28% और वैश्विक व्यापार में 23-26% तक पहुंच गया है. ये देश ग्लोबल साउथ के 63% GDP का प्रतिनिधित्व करते हैं. अगर ये देश डॉलर को छोड़ देते हैं तो अमेरिकी मुद्रा पर तगड़ा असर पड़ सकता है.

2. CIS (कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स) देश
रूस के नेतृत्व में आर्मेनिया, अज़रबैजान, बेलारूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, मोल्डोवा, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान, यूक्रेन आदि देशों ने भविष्य में भुगतान के रूप में डॉलर का कम से कम इस्तेमाल करने का फैसला किया है. ये देश अब आपसी व्यापार में अपनी लोकल करेंसी या अन्य विकल्पों का इस्तेमाल कर रहे हैं.

3. चीन और रूस
चीन ने अपने युआन को अंतरराष्ट्रीय ट्रेड में प्रमोट किया है और रूस के साथ मिलकर डॉलर की जगह लोकल करेंसी में व्यापार बढ़ाया है. दोनों देशों ने अपने-अपने डिजिटल करेंसी प्लेटफॉर्म भी विकसित किए हैं. रूस, ब्राजील, और सऊदी अरब के साथ युआन में व्यापार बढ़ा रहा है. इधर रूस ने रूबल और युआन में व्यापार पर जोर दिया और SWIFT से अलग सिस्टम विकसित कर रहा है.

4.भारत
भारत ने रूस और अन्य देशों के साथ रुपये में व्यापार शुरू किया, हालांकि इसका 86% व्यापार अभी भी डॉलर में है. हालांकि भारत धीरे-धीरे रुपये की अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं. जुलाई 2022 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार में रुपये में भुगतान और निपटान की अनुमति दी, जिसके तहत 22 देशों के बैंकों ने 92 विशेष रुपये वोस्ट्रो खाते (SRVA) खोले.

भारत ने UAE, सिंगापुर, और बांग्लादेश जैसे देशों के साथ रुपये में द्विपक्षीय व्यापार समझौते किए. जैसे UAE को कच्चे तेल के लिए रुपये में भुगतान. RBI ने FEMA नियमों को उदार बनाया, जिससे विदेशी निवेशकों को रुपये में खातों और लेनदेन की सुविधा मिली.

भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर UPI जैसे डिजिटल भुगतान तंत्र को बढ़ावा दे रही है. पीएम नरेंद्र मोदी सिंगापुर, फ्रांस, नामिबिया और श्रीलंका जैसे देशों में UPI की स्वाकार्यता बढ़ा रहे हैं. ये कदम रुपये की वैश्विक मांग बढ़ाने, डॉलर पर निर्भरता कम करने, और भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए हैं.

5. अफ्रीका और अन्य क्षेत्र
अफ्रीकी देशों ने भी डॉलर की जगह लोकल करेंसी में पेमेंट सिस्टम विकसित करना शुरू कर दिया है, जिससे ट्रेडिंग सस्ती और स्वतंत्र हो सके. रूस, ईरान, उत्तर कोरिया जैसे देशों पर अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते डॉलर की जगह नए विकल्प की तलाश कर रहे हैं.

कई देश अपनी अर्थव्यवस्था को अमेरिकी नीतियों और डॉलर की अस्थिरता से बचाना चाहते हैं. इसलिए वे आर्थिक संप्रभुता की तलाश कर रहे हैं ताकि अमेरिका पर निर्भर न होना पड़े. डॉलर की वैश्विक बादशाहत को चुनौती देने के लिए BRICS, CIS, अफ्रीका और कई अन्य देश मिलकर नई करेंसी, डिजिटल प्लेटफॉर्म और लोकल ट्रेडिंग सिस्टम अपना रहे हैं. ट्रंप का आक्रामक रुख इसी खतरे को भांपकर सामने आया है. विशेषज्ञों का मानना है कि डॉलर की बादशाहत अभी पूरी तरह खत्म नहीं होगी.लेकिन उसकी पकड़ कमजोर जरूर हो रही है.

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