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फर्जी नियुक्ति के आरोप में घिरी महिला को आखिर क्यों दिया जा रहा अभयदान! 11 महीने बाद भी शिक्षक नेता की पत्नी पर नहीं हुई कार्रवाई

प्रदेश के चर्चित नेता संजय शर्मा की धर्मपत्नी चंद्ररेखा शर्मा की फर्जी नियुक्ति के मामले में तमाम दस्तावेज उनके खिलाफ आने के बाद भी विभाग के अधिकारियों के हाथ पैर हिल नहीं रहे हैं. ऐसा लग रहा है फर्जीवाड़े के रैकेट को बचाने की पूरी कोशिश हो रही है. छोटे-छोटे मामलों में कार्रवाई कर अपनी पीठ थपथपाने वाले अधिकारियों कि इतने बड़े मामले में चुप्पी यह साफ बता रही है कि अधिकारी इस मामले में कोई कार्रवाई करना ही नहीं चाहते हैं.

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*दस्तावेज फर्जी नियुक्ति की साफ कर रहे चुगली*

शिकायतकर्ता हरेश बंजारे ने RTI के जरिए जो दस्तावेज जुटाए हैं उससे यह साफ है कि नीलम टोप्पो के आदेश क्रमांक 229 का प्रयोग कर चंद्ररेखा शर्मा का कूटरचित नियुक्ति आदेश तैयार किया गया है जो उनके सर्विस बुक में भी इंद्राज है. 12वीं में 44% वाली चंद्ररेखा शर्मा ने कूट रचना कर शासकीय नौकरी हथिया ली और विगत 17 सालों से विभाग को धोखा देकर नौकरी कर रही हैं, जिसकी पुष्टि शासकीय प्राथमिक शाला दर्रापारा की प्रधान पाठक ने शपथ पूर्वक बयान देकर भी कर दिया है. जिसमें उन्होंने बताया है कि चंद्ररेखा शर्मा ने उनके विद्यालय में कभी कार्यभार ग्रहण किया ही नहीं है और नीलम टोप्पो ही उनके यहां वास्तविक रूप से नियुक्त है. अब कुछ देर के लिए यदि यह मान लें कि चंद्ररेखा शर्मा के नियुक्ति में संशोधन हुआ है तो उनके स्थानांतरण आदेश में उस संशोधित स्कूल का ही जिक्र होना था, जबकि उनके कूटरचित ट्रांसफर आदेश और सेवा पुस्तिका आदेश में शासकीय प्राथमिक शाला दर्रापारा का ही जिक्र है, जहां उन्होंने नौकरी की ही नहीं है. यही नहीं विभाग ने जब उनके वेतन भुगतान की जानकारी जुटाई तो वह भी उनके द्वारा उपलब्ध नहीं कराया गया. जबकि हर कर्मचारी को यह साफ पता होता है कि उन्हें उनके किस बैंक अकाउंट में वेतन दिया जा रहा है. लेकिन 6 माह का वेतन अकाउंट उनके द्वारा सार्वजनिक किया ही नहीं जा रहा और न ही पत्थलगांव कार्यालय के पास इसकी जानकारी है. दरअसल, इसके पीछे की वजह यह है कि न तो वह नौकरी पर थी और न ही उन्हें वेतन भुगतान हुआ है.

विभाग को महिला कर्मचारी से शपथ के तौर पर केवल इस बात की जानकारी लेना है कि उन्होंने 6 महीना अपनी सेवाएं किस संस्था को दी है और उन्हें किस खाते में वेतन भुगतान हुआ है और केवल उसकी जांच कर आपराधिक मामला दर्ज कराया जा सकता है. लेकिन जांचकर्ता कार्यालय की मंशा ऐसा करने की है ही नहीं. इधर शिकायतकर्ता ने एक बार फिर जेडी बिलासपुर को पत्र लिखकर मामले में गंभीरता पूर्वक जांच करने का निवेदन किया है. साथ ही, यह भी कहा है कि यदि आपके द्वारा मामले में न्याय नहीं किया जाता है तो मैं न्यायालय की शरण लेने को बाध्य होऊंगा. बताया जा रहा है कि यह केवल एक मात्र मामला नहीं है बल्कि एक बड़े रैकेट के तहत दर्जनों ऐसी नियुक्तियां है जो फर्जी आदेश क्रमांक के आधार पर अलग-अलग जिलों में तैनात है. विभाग चाहे तो ऐसे मामलों का खुलासा कर सरकार को आर्थिक नुकसान से बचा सकता है, बशर्ते, इसके लिए विभाग की नियत भी ऐसी होनी चाहिए.

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