युद्ध रोकने की कोशिश में क्यों सक्रिय दिख रहे हैं डोनाल्ड ट्रंप? चीन की रणनीति पर एक नज़र..

“युद्ध वह विनाशकारी हवा है जो राष्ट्रों की समृद्धि को नष्ट कर देती है.” ये कथन स्कॉटिश अर्थशास्त्री जेम्स मिल है. उन्होंने 1808 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘कॉमर्स डिफेंडेड’ये कथन लिखा है. इस कथन का जिक्र हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस थ्योरी पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं.

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निश्चित रूप से अमेरिका अभी कोई जंग प्रत्यक्ष रूप से नहीं लड़ रहा है. लेकिन इस विश्व में चल रहे दो जंगों को अमेरिका फंड जरूर कर रहा है.

राष्ट्रपति बनते ही ट्रंप ने अपने फोकस में जिस एजेंडे को रखा है वो है इस वक्त दुनिया में लंबे समय से चल रहे युद्ध की समाप्ति. ये युद्ध है यूक्रेन और रूस की लड़ाई और दूसरी जंग है इजरायल और हमास की. ट्रंप का दृष्टिकोण यह है कि लंबे समय तक चलने वाले संघर्ष अमेरिका और विश्व के हित में नहीं हैं। इसलिए, इन युद्धों को समाप्त करना उनकी विदेश नीति का हिस्सा बन गया है.

दरअसल ट्रंप युद्ध के अर्थशास्त्र को साफ-साफ समझते हैं. ट्रंप और उनके पॉलिसी मेकर्स जानते हैं कि अगर अमेरिका दूसरों की लड़ाई लड़ता रहा या फिर उसका खर्चा उठाता रहा तो दुनिया का बिग बॉस बने रहने की उसकी महात्वाकांक्षा को चीन बहुत कम समय में ध्वस्त कर देगा.

ट्रंप के पास ज्यादा समय नहीं है इसलिए वे साफ साफ तौर पर यूरोप की सुरक्षा की जिम्मेदारी उठाने वाली पुरानी अमेरिकी मानसिकता से बाहर निकलना चाहते हैं. ट्रंप पश्चिम एशिया में जारी संघर्षों का समाधान करने से ऊर्जा सुरक्षा सहित कई मुद्दों पर अमेरिका का हित सुरक्षित हो सकता है. ट्रंप का दृष्टिकोण है कि स्थिर पश्चिम एशिया अमेरिका के आर्थिक और रणनीतिक हितों के लिए फायदेमंद होगा.

युद्ध का अर्थशास्त्र

टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखे एक लेख में सामरिक विश्लेषक अर्जुन सुब्रह्मण्यम ने युद्ध के अर्थ शास्त्र को विस्तार से समझाया है. उन्होंने लिखा है कि हाल ही में अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार रूस द्वारा यूक्रेन पर 2014 में किए गए आक्रमण से अबतक 69.2बिलियन डॉलर की सैन्य सहायता दे चुका है. इसमें से 65.9 बिलियन डॉलर तो फरवरी 2022 में शुरू हुई लड़ाई के बाद दिया गया है.

वहीं ब्राउन यूनिवर्सिटी के हाल के अध्ययन में कहा गया है कि 7 अक्टूबर 2023 के हमास के हमले के बाद अमेरिका इजरायल पर 17.9 अरब डॉलर खर्च कर चुका है.

अमेरिका अब इस फंड को मिलिट्री वॉर की बजाय ट्रेड वॉर में चैनलाइज करना चाहते हैं.

अमेरिका के पूर्व NSA जॉन बॉल्टन के अनुसार ट्रंप इन दोनों ही जंगों को ‘बाइडेन वॉर’ बताते हैं. एएनआई से बात करते हुए उन्होंने कहा, “जहां तक यूक्रेन और मध्य पूर्व की लड़ाई है, ये स्पष्ट है कि ट्रंप से निजात चाहते हैं, वे इसे बाइडेन की लड़ाई मानते हैं. वह एक तरह से जल्दबाजी में हैं कि कैसे इस जंग को खत्म किया जाए.इसका मतलब ये है कि उन्हें इस बात की ज्यादा चिंता नहीं है कि जंग की स्थिति अभी क्या है और इसका नतीजा क्या हो सकता है.ये यूक्रेन के लिए बुरी खबर हो सकती है लेकिन इजरायल के लिए अच्छी कहानी है.”

अमेरिका अपनी लड़ाई चुननी पड़ेगी

सामरिक विश्लेषक अर्जुन सुब्रह्मण्यम बताते हैं कि यूक्रेन और मध्य एशिया में सुरक्षा हालात बदलने से अमेरिका चीन के साथ प्रतिद्वंदिता की रेस में आगे कायम रह सकेगा जिसे वो अपना मुख्य प्रतिद्वंदी मानता है. उन्होंने कहा है कि कई सालों से पेंटागन, कांग्रेस और सीनेट के बीच एक अप्रत्यक्ष सी जंग चल रही है. जहां इस पर बहस हो रही है कि एक वाइब्रेंट रूस अमेरिका के लिए बड़ा खतरा है या फिर विकास के रास्ते पर तेजी से कदम बढ़ा रहा चीन अमेरिकी वर्चस्व को गंभीर चुनौती देने की हैसियत रखता है.

अमेरिका की फॉरेन पॉलिसी में इस पर अब गंभीर चर्चा हो रही है. ट्रम्प ने अक्सर वित्तीय उत्तरदायित्व और सरकारी खर्च में कटौती की आवश्यकता पर बल दिया है, जो चल रहे संघर्षों को समाप्त करने की उनकी इच्छा का एक कारण है.

पुतिन या जिनपिंग, अमेरिका को कौन देगा टक्कर?

ट्रम्प अक्सर अमेरिकी सैन्य और रणनीतिक फोकस को अनावश्यक या लंबे समय तक चलने वाले लड़ाइयों से हटाकर उन पर केंद्रित करने की बात करते हैं, जिन्हें वे चीन जैसे अधिक गंभीर भू-राजनीतिक खतरे मानते हैं. यूक्रेन जैसे क्षेत्रों में संघर्षों को समाप्त करने से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर फोकस करने के लिए ट्रंप को ज्यादा समय मिल सकता है.जहां चीन का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है.
ट्रम्प की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण पहलू चीन के साथ आर्थिक प्रतिस्पर्धा है. इन संघर्षों को समाप्त करने से रक्षा खर्च में कमी आ सकती है, जिससे चीन की बढ़ती ताकत का मुकाबला करने के उद्देश्य से आर्थिक रणनीतियों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा सकेगा.

गौरतलब है कि ट्रंप ने राष्ट्रपति बनते ही ऐलान किया है कि अमेरिका का ‘स्वर्ण युग’ आ गया है. इस ‘स्वर्ण युग’को अमेरिकी धरती पर उतारने के लिए उनके पास चार साल हैं.

हाल ही में ‘द इकोनॉमिस्ट’ में छपी एक रिपोर्ट पर तवज्जो गौरतलब है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की सेना PLA का असाधारण गति से आधुनिकीकरण हो रहा है. इसमें कहा गया है कि रूस भले ही यूरोप में अव्यवस्था फैला रहा है लेकिन ये चीन ही है जो अमेरिका के सामने वैश्विक चुनौती पेश कर सकता है.

अर्जुन सुब्रह्मण्यम के अनुसार इसलिए ऐसी स्थिति में ट्रंप के लिए अब जरूरी है कि वे अपने दूसरे कार्यकाल का बजट वहां खर्च करें जहां चीन तेजी से आगे बढ़ रहा है. जैसे AI ड्रिवेन लड़ाइयां, हाइपरसोनिक हथियार, सिक्स और सेवेंथ जेनेरेशन बॉम्बर और एयरक्राफ्ट. ये ऐसे क्षेत्र हैं जहां अरबों डॉलर निवेश की जरूरत है.

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