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“प्रतिबंधित कफ सिरप का प्रॉडक्शन क्यों नहीं रुका”, MP हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

जबलपुर। मध्य प्रदेश में बीते कुछ दिनों में अवैध कफ सिरप के 60 केस दर्ज किए गए हैं. इन सभी मामलों में आरोपियों के पास प्रतिबंधित दवा कोडिंग फास्फेट पाई गई. इन सभी के खिलाफ एनडीपीएस की धाराओं के आधार पर मुकदमे दर्ज किए गए. जबलपुर के अधिवक्ता अमिताभ गुप्ता ने इन्हीं 60 मामलों को आधार बनाते हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की. जिसमें उन्होंने कहा “मध्य प्रदेश के ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट के तहत कोडिंग फास्फेट का उत्पादन और विक्रय नहीं किया जा सकता लेकिन इसके बाद भी यह दवा कफ सिरप के नाम से बेची जा रही है.”

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मध्यप्रदेश के डीजीपी को भी नोटिस

याचिका में कहा गया “जब इस दवा का उत्पादन ही प्रतिबंधित है तो फिर यह बाजार में कैसे आ रही है. बेशक ड्रग इंस्पेक्टर्स ने इसे बेचने वालों के खिलाफ मुकदमे बनवाए हैं लेकिन यदि इसका उत्पादन हो रहा है तो क्या इसे रोक पाना ड्रग इंस्पेक्टर्स के बस की बात नहीं है.” मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय शराब की खंडपीठ ने इस तर्क को सही मानते हुए सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल आर्गेनाइजेशन नारकोटिक कंट्रोल ब्यूरो नई दिल्ली के डायरेक्टर जनरल खाद्य एवं औषधि प्रधान भोपाल और मध्य प्रदेश के डीजीपी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. हाईकोर्ट ने पूछा “आखिर इस दवाई का उत्पादन कहां हो रहा है और उसे रोका क्यों नहीं जा रहा.” इस मामले में इन सभी को 22 अक्टूबर तक जवाब देना है.

कफ सिरप का ज्यादा इस्तेमाल सेहत के लिए घातक

बता दें कि कफ सिरप का इस्तेमाल नशे के रूप में किया जाता है और जरूरत से ज्यादा लेने पर इसके कई गंभीर साइड इफैक्ट होते हैं. इससे कई किस्म की मानसिक बीमारियां हो जाती हैं और ज्यादा मात्रा में सेवन करने पर दवा लेने वाला पूरी तरह से पागल भी हो सकता है. इसके पहले भी पुलिस ने कफ सिरप बेचने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की थी लेकिन इसके बाद भी दोबारा यह काला धंधा फिर से शुरू हो गया है. दरअसल, यह एक सस्ता नशा है लेकिन यह घातक है और इस पर कड़ाई से प्रतिबंध जरूरी है.

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