टाइफाइड एक संक्रामक बीमारी है जो Salmonella Typhi नाम के बैक्टीरिया से होती है. यह बैक्टीरिया दूषित पानी, गंदा खाना, या संक्रमित व्यक्ति के संपर्क से बच्चों के शरीर में प्रवेश करता है. बच्चों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता (इम्यून सिस्टम) बड़ों की तुलना में कमजोर होती है, इसीलिए वे जल्दी संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं. छोटे बच्चे सफाई का पूरा ध्यान नहीं रखते- जैसे बिना हाथ धोए खाना खा लेना, नाखून चबाना, सड़क किनारे की चीजें खाना या कहीं से भी पानी पी लेना. यह सब टाइफाइड होने की आशंका को कई गुना बढ़ा देता है.
भारत में टाइफाइड के सबसे ज़्यादा मामले 5 से 15 साल के बच्चों में देखे गए हैं, खासकर उन इलाकों में जहां स्वच्छ पानी और शौचालय की सुविधा पर्याप्त नहीं है. WHO के अनुसार, हर साल दुनियाभर में करीब 1.1 करोड़ लोग टाइफाइड से संक्रमित होते हैं, जिनमें बड़ी संख्या बच्चों की होती है. टाइफाइड एक गंभीर लेकिन पूरी तरह से रोके जा सकने वाली बीमारी है. बच्चों को इससे बचाने के लिए साफ पानी, साफ खाना और बेहतर हाइजीन सबसे जरूरी है. वैक्सीन समय पर लगवाएं और अगर कोई भी लक्षण दिखे, तो देरी न करते हुए डॉक्टर से सलाह लें.
टाइफाइड को हल्के में लेना बड़ी गलती हो सकती है, खासकर बच्चों के मामले में, जहां इसका असर लंबे समय तक उनकी सेहत पर रह सकता है. सही जानकारी, सावधानी और जागरूकता ही इस बीमारी से बच्चों को बचाने का सबसे अच्छा तरीका है.
गाजियाबाद के जिला अस्पताल में पीडियाट्रिक विभाग में डॉ विपिनचंद्र उपाध्याय बताते हैं किमानसून का मौसम टाइफाइड जैसी बीमारियों के लिए आदर्श समय बन जाता है क्योंकि इस दौरान नमी, गंदगी और जलभराव के चलते बैक्टीरिया तेजी से पनपते हैं. बारिश के पानी में सीवर मिल जाने से पीने का पानी संक्रमित हो सकता है. कई बार लोग बरसात में खुले में बिकने वाला कट फ्रूट, चाट, गोलगप्पे, कुल्फी, जूस जैसी चीज़ें बच्चों को खिला देते हैं जो अक्सर गंदे पानी से बने होते हैं.
स्कूलों या आंगनबाड़ी केंद्रों की लापरवाही
यही नहीं, स्कूलों या आंगनबाड़ी केंद्रों में भी अगर पानी या खाना ढंग से साफ न हो, तो वहां से भी संक्रमण फैल सकता है. यह मौसम पाचन तंत्र को भी थोड़ा कमजोर करता है, जिससे शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता और कम हो जाती है. यही वजह है कि जुलाई से सितंबर के बीच टाइफाइड के मामलों में तेज़ी से वृद्धि देखी जाती है.
टाइफाइड से बच्चों को कैसे बचाएं?
– साफ-सफाई और बचपन में टीकाकरण. बच्चे को हमेशा उबला हुआ या अच्छे फिल्टर वाला पानी ही दें.
– खाने से पहले साबुन से हाथ धोने की आदत बनाएं, खासकर बाहर से आने या शौच के बाद.
– खुले में बिकने वाले खाने और कटे हुए फलों से बच्चों को दूर रखें.
– बच्चों के खाने के बर्तन, पानी की बोतल और टिफिन भी समय-समय पर अच्छी तरह धोते रहें.
क्या टाइफाइड की वैक्सीन उपलब्ध है?
भारत में टाइफाइड के दो प्रकार के वैक्सीन उपलब्ध हैं — Typhoid Conjugate Vaccine (TCV) जो 2 साल की उम्र में लगाया जाता है और करीब 3 साल तक सुरक्षा देता है. इसके अलावा पुराने वैक्सीन जैसे Vi polysaccharide भी मिलते हैं. WHO भी अब TCV को ज़्यादा प्रभावी मानता है और इसकी एक खुराक से 80 से 90% तक सुरक्षा मिल सकती है.
टाइफाइड की जांच और इलाज कब कराएं?
अगर बच्चा कई दिनों से तेज बुखार में है, बार-बार थकान या सुस्ती महसूस कर रहा है, पेट दर्द, सिरदर्द, दस्त या कब्ज की समस्या हो रही है, या भूख नहीं लग रही, तो टाइफाइड की जांच जरूरी है. कई बार बच्चों में जीभ पर सफेद परत, हल्का गुलाबी रैश और मुँह सूखने की शिकायत भी होती है. ऐसे लक्षण नजर आएं तो तुरंत डॉक्टर से मिलें.
टाइफाइड की पुष्टि के लिए कौनसे टेस्ट
टाइफाइड की पुष्टि के लिए Widal Test, Typhi Dot Test या ब्लड टेस्ट जैसी जांच की जाती है. सही समय पर इलाज न किया जाए, तो टाइफाइड आंतों को नुकसान पहुंचा सकता है और आंत फटने का खतरा भी हो सकता है, जो जानलेवा हो सकता है. इलाज में आमतौर पर एंटीबायोटिक दवाओं की एक पूरी कोर्स दी जाती है, जिसे बीच में नहीं छोड़ना चाहिए.