छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि गोपनीयता संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकार है, जो मुख्य रूप से संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी से देता है। इस टिप्पणी के साथ ही जस्टिस राकेश मोहन पांडेय ने विवाद होने पर पति के पत्नी की मोबाइल कॉल डिटेल और सीडीआर की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दी है।
दरअसल, याचिकाकर्ता दुर्ग जिले के युवक की शादी राजनांदगांव जिले के युवती से 4 जुलाई 2022 को हिंदू रीति-रिवाज के साथ हुई थी। विवाह के कुछ समय बाद ही पति ने डिवोर्स के लिए हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1) (1) के तहत एक याचिका दायर की। इसमें आरोप लगाया गया कि पत्नी विवाह के 15 दिन बाद अपने माता-पिता के घर गई, जिसके बाद उसका व्यवहार काफी बदल गया।
आरोप है कि पत्नी ने याचिकाकर्ता की मां और भाई के साथ दुर्व्यवहार किया। इस बीच सितंबर और अक्टूबर के महीने में पत्नी फिर से अपने माता-पिता के घर गई और जब याचिकाकर्ता ने उससे संपर्क किया, तो उसने उसके साथ जाने से साफ इनकार कर दिया। पत्नी के साथ न जाने पर पति 7 अक्टूबर 2022 को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के अंतर्गत वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए फैमिली कोर्ट में केस दाखिल किया।
पति ने पुलिस से मांगी पत्नी का मोबाइल कॉल डिटेल
इस दौरान पत्नी ने धारा 125 के तहत एक आवेदन पेश किया। साथ ही पति की मां, पिता और भाई के खिलाफ घरेलू हिंसा के तहत शिकायत की। इस पर पति ने 24 जनवरी 2024 को दुर्ग के एसएसपी को आवेदन देकर पत्नी की कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) की डिटेल की मांग की। लेकिन, पुलिस ने कॉल डिटेल देने से इनकार कर दिया। इस पर पति ने कॉल डिटेल के लिए फैमिली कोर्ट में आवेदन दिया, जिसे खारिज कर दी गई। इसके बाद वह हाईकोर्ट पहुंचा।
हाईकोर्ट बोला- यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है
अपनी याचिका में पति ने पत्नी की चरित्र पर लांछन लगाते हुए मोबाइल पर दूसरे से बातचीत करने के सबूत होने का दावा किया। जिसके लिए उसने कॉल डिटेल की मांग की। लेकिन, फैमिली कोर्ट में दाखिल किए गए केस में पति ने तलाक के लिए लगाई गई अर्जी में उल्लेख ही नहीं किया। उन्होंने पत्नी के व्यवहार में बदलाव और साथ रहने से इनकार करने का जिक्र किया है।
सुनवाई के दौरान पत्नी की ओर से कहा गया कि वैवाहिक जीवन साझेदारी का संबंध होता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि किसी की व्यक्तिगत गोपनीयता खत्म हो जाती है। पति पत्नी को अपने मोबाइल या बैंक पासवर्ड देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता और ऐसा करना गोपनीयता का हनन और घरेलू हिंसा माना जा सकता है।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस राकेश मोहन पांडेय की सिंगल बेंच ने कहा कि पति ने अपनी तलाक की अर्जी में कहीं भी चरित्रहीनता का आरोप नहीं लगाया है। ऐसे आरोप लिखित बहस में पहली बार लगाए गए हैं। इसके अलावा, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है, जिसमें गोपनीयता भी शामिल है। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को सही मानते हुए पति की याचिका को खारिज कर दिया।