MUDA घोटाले में आलोचनाओं का सामना कर रहे कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने AHINDA पॉलिटिक्स पर फोकस करना शुरू कर दिया है. उन्होंने अगले महीने कैबिनेट में जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश किए जाने का दावा किया है. मैसूर में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सिद्धारमैया ने कहा कि पिछड़े और वंचित समुदायों की पहचान के लिए जाति जनगणना आवश्यक थी. सिद्धारमैया ने कहा कि जिस व्यवस्था से हम आते हैं, उसे बदला जाना चाहिए. हम उस बदलाव को लाने की कोशिश कर रहे हैं. हमारी सरकार ने समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों को पहचानने और उनके उत्थान के लिए सामाजिक जनगणना की.
सिद्धारमैया ने कहा कि हमारे समाज में पिछड़े वर्ग के लोग अभी भी अवसरों से वंचित हैं, हमें उनकी पहचान करनी चाहिए और उन्हें समान अवसर प्रदान करने चाहिए. इसीलिए मैंने जाति सर्वेक्षण शुरू किया था. हालांकि इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है, हाल ही में इसकी रिपोर्ट आई है. अब अगले महीने हम इस रिपोर्ट को कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत करेंगे. हम ऐसा इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि यह हमारी पार्टी की विचारधारा से मेल खाती है.
पीटीआई के मुताबिक सीएम सिद्धारमैया ने कहा कि मैंने (2018 में) सत्ता खो दी थी और इसे लागू नहीं किया गया. मुख्यमंत्री ने कहा कि हाल ही में हमें रिपोर्ट मिली है. मैं इसे कैबिनेट के सामने रखूंगा और इसे लागू करवाऊंगा. उन्होंने कहा कि जाति जनगणना लंबे समय से कांग्रेस पार्टी का “सिद्धांत” रहा है. 1930 से राष्ट्रीय जनसंख्या जनगणना के हिस्से के रूप में जाति-आधारित डेटा एकत्र नहीं किया गया है. सिद्धारमैया ने कहा कि अब कई राज्यों में जाति जनगणना कराने पर चर्चा जोर पकड़ रही है.
शिक्षा के महत्व पर चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि सच्ची शिक्षा को वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना चाहिए और जिम्मेदार व्यक्तियों को बढ़ावा देना चाहिए. सिद्धारमैया ने सरकारी कार्यक्रमों से लाभान्वित होने वाले लोगों, विशेष रूप से छात्रावासों के पूर्व छात्रों से समाज को कुछ वापस देने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि आप में से कई लोगों ने अपने क्षेत्रों में सफलता हासिल की है, अब जरूरतमंद लोगों की मदद करने का समय आ गया है. समाज के कमजोर वर्गों की मदद करना समाज के प्रति हमारे ऋण को चुकाने का सही तरीका है.
रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस के भीतर भी आपत्ति
बता दें कि बहुप्रतीक्षित सामाजिक-आर्थिक और शिक्षा सर्वेक्षण रिपोर्ट, जिसे “जाति जनगणना” रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है, ये रिपोर्ट 29 फरवरी को कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष के जयप्रकाश हेगड़े ने सिद्धारमैया को सौंपी थी. इस रिपोर्ट पर समाज के कुछ वर्गों और यहां तक कि सत्तारूढ़ कांग्रेस के भीतर भी आपत्ति जताई गई है.
क्या है AHINDA पॉलिटिक्स?
कर्नाटक में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता आरएल जलप्पा ने दलितों, मुस्लिमों और पिछड़ों के हितों के लिए एक मुहिम चलाई थी, जिसे कन्नड़ में अहिंदा नाम दिया गया था. जेडीएस से कांग्रेस में आए सिद्धारमैया इससे काफी प्रभावित हुए और उन्होंने इसे आगे बढ़ाने का काम किया. दरअसल, अहिंदा पॉलिटिक्स एक राजनीतिक अवधारणा है, जो सामाजिक और राजनीतिक रूप से पिछड़े समुदायों को संगठित करने पर फोकस करती है. इसमें “अ” का अर्थ अल्पसंख्यक “हि” का अर्थ हिन्दू पिछड़ी जातियां और “दा” का अर्थ दलित है. एक समय में सिद्धारमैया की राजनीति को उनकी अहिंदा पॉलिटिक्स ने ही धार दी थी. और अहिंदा राजनीति की वजह से निचले तबकों में सिद्धारमैया एक हीरो की तरह उभरे. इसका नतीजा ये हुआ कि जब 2013 में कांग्रेस ने कर्नाटक में जीत दर्ज की तो उन्होंने मल्लिकार्जुन खड़गे और डीके शिवकुमार जैसे नेताओं को पीछे छोड़ दिया और मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की.