उत्तर प्रदेश के आगरा में स्थित ताजमहल की त्वचा (सतह) पीली पड़ती जा रही है. ऐसे उसके सतह में समा रहे धूल के छोटे-छोटे कणों के कारण हो रहा है. सरकार के सर्वे की एक रिपोर्ट ने लोगों की चिंता बढ़ा दी है. रिपोर्ट में ताजमहल के भविष्य में रंग बदलने की संभावना जताई गई है. पिछले कई सालों से ताजमहल पर निलंबित कणों की एक मोटी परत बनी हुई है, जो फिलहाल नंगी आंखों से दिखाई नहीं देती है.
ताजमहल का पत्थर लगातार पीला पड़ता जा रहा है. इसका कारण उसकी त्वचा यानी सतह में धूल के कणों का समाना है. यह ऐसे धूल के कण होते है, जिन्हें पानी या फिर हवा के प्रेशर हटाया नहीं जा सकता है. इन कणों के आकर बात करें तो यह कण 100 नैनोमीटर से बड़ा होता है. बिना माइक्रोस्कोप के हम इन्हें अपनी नंगी आंखों से नहीं देख सकते हैं. साइंटिफिक लैंग्वेज में इन कणों को निलंबित कण यानी एसपीएम कहा जाता है.
ताजमहल पर जमी निलंबित कणों की परत
पिछले 25 सालों से निलंबित कणों की 200 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर परत ताजमहल की सतह पर बनी हुई है. यह निर्धारित मानक से चार गुणा ज्यादा है. हैरान करने वाली बात यह है कि ताजमहल की यह स्थिति तब है, जब इसके समीप ग्रीन बेल्ट क्षेत्र को विकसित किया है. साथ ही बाहरी वाहनों पर प्रतिबंध है. सुप्रीम कोर्ट ने ताजमहल को वायु प्रदूषण से बचाने के 30 दिसंबर 1996 को एक आदेश पारित किया था.
साल 1996 में बना था ताज ट्रेपेजियम क्षेत्र
इस आदेश के बाद स्मारक के 50 किलोमीटर के दायरे को ताज ट्रेपेजियम जोन बनाया गया था. प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर रोक लगा दी गई थी. इन सबके बावजूद ताजमहल पर धूल के कणों की मोटी परत चढ़ी हुई है.एएसआइबी रसायन शाखा ने एक आरटीआई के जवाब में एसपीएम को ताजमहल के पीले पड़ने के पीछे का मुख्य कारण बताया है. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के मानक के अनुसार हवा में घुले धूल कण 24 घंटे में 100 और एक साल में 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए.
मुल्तानी मिट्टी से कर रहे सफाई
धूल कणों का मानक एक साल में 50 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है. एएसआई की रसायन शाखा ताजमहल के सतह पर जमे धूल के कणों को हटाने के लिए मुल्तानी मिट्टी इस्तेमाल करती है. सफाई करने के लिए रसायन शाखा ताजमहल के सतह पर मुल्तानी मिट्टी का लेप देती है और बाद में इसे डिस्टल वाटर से धो दिया जाता है. यह लेप ताजमहल की सतह पर जम्मा प्रदूषक तत्वों को सोख लेता है. हालांकि, स्मारक की संगमरमरी सतह पर मुल्तानी मिट्टी का बार-बार लेप इसके लिए बेहतर नहीं है ऐसा रसायन शाखा पहले ही कह चुका है.