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क्या ईरान-इजराइल तनाव से बढे़ंगे पेट्रोल-डीजल के दाम, दुनिया के 20% तेल सप्लाई रूट पर ईरानी मिसाइलें तैनात

1 अप्रैल को इजराइल ने सीरिया में ईरानी दूतावास पर हमला हमला किया. ईरान ने 12 दिन बाद यानी 13 अप्रैल को इसके जवाब में इजराइल पर 300 मिसाइलों और ड्रोन से अटैक कर दिया.

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मिडिल ईस्ट में तनाव के चलते इंटरनेशनल ऑयल मार्केट में क्रूड ऑयल की कीमतें बढ़ सकती हैं. अगर ऐसा हुआ तो इसका सीधा असर भारतीयों की जेब पर पड़ सकता है.

ईरान ने इजराइल पर सीधा हमला करने से एक दिन पहले ओमान की खाड़ी में होर्मुज पास से गुजर रहे एक जहाज पर कब्जा कर दिया था. दुनिया के 20% तेल की सप्लाई इसी होर्मुज पास से होती है. यहां ईरान की कई सौ बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलें तैनात हैं.

दोनों देशों में विवाद बढ़ा तो इजराइल इस इलाके से जहाजों की आवाजाही रोक देगा. ईरान स्वेज नहर को भी ब्लॉक करने की धमकी दे चुका है. द इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक स्वेज नहर से हर दिन 5.5 मिलियन बैरल से ज्यादा क्रूड ऑयल की सप्लाई होती है. वित्त वर्ष 2023 में भारत का 65% क्रूड ऑयल स्वेज नहर के रास्ते से आया था.

स्वेज नहर और होर्मुज पास में किसी भी तरह की रुकावट तेल की सप्लाई को ठप कर देगी. इन सब अटकलों के बीच तेल के बाजार पर इसका असर दिखाई देने लगा है. ईरान और इजराइल में तनाव की शुरुआत 1 अप्रैल को हुई थी. तब से अब तक क्रूड ऑयल के दाम 80 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 90 डॉलर प्रति बैरल हो चुके हैं.

अमेरिकी थिंक टैंक ‘सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज’ के मुताबिक अगर तनाव कम नहीं हुआ तो तेल के दाम 100 डॉलर प्रति बैरल भी जा सकते हैं. एनर्जी पॉलिसी और जियोपॉलिटिक्स एक्पसपर्ट नरेंद्र तनेता बताते हैं कि ऑयल पूरी दुनिया में एक राजनीतिक कमोडिटी है. सारा तेल मध्य पूर्व (मिडिल ईस्ट) से आता है. यहां बड़े-बड़े तेल उत्पादक देश जैसे सऊदी अरब, कुवैत, ओमान और UAE है.

एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर क्रूड ऑयल की कीमत बढ़ती है तो खुदरा पेट्रोल-डीजल की कीमत पर असर पड़ना तय है. हालांकि, चुनाव की वजह से सरकार तेल की कीमत बढ़ने पर कुछ समय तक रोक लगा सकती है.

पिछले 2 सालों में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बहुत ज्यादा अंतर नहीं आया है. मार्च 2024 में ही लोकसभा चुनाव के चलते सरकारी तेल कंपनियों ने तेल की कीमत घटाई हैं. इस बात की संभावना थी कि तेल की कीमतें और घटेंगी. लेकिन, मार्च खत्म होते-होते इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड ऑयल की कीमत पिछले 4 महीनों की हाई पर पहुंच गई. जो तनाव के चलते और बढ़ सकती हैं.

ऐसे मे यह संभावना है कि कीमतों में और कटौती नहीं होगी.

नवंबर 2011 की बात है. अमेरिका में चुनावी माहौल था. इसी दौरान ओबामा प्रशासन ने ईरान के खिलाफ आर्थिक पाबंदियों की घोषणा कर दी. इसकी वजह ईरान का परमाणु प्रोग्राम बताया गया. जनवरी में चुनाव पूरे होने के बाद अमेरिका की सत्ता एक बार फिर बराक ओबामा के हाथ आई. लगातार दूसरी बार अमेरिका का राष्ट्रपति बनते ही बराक ने एक फिर ईरान पर आर्थिक पाबंदियां लगाने का फैसला किया.

इस बार की पाबंदियां और कड़ी थी. अमेरिका ने दुनिया के सभी देशों के बैंकों को आदेश दिए की वो ईरान की तेल के बदले होने वाली पेमेंट्स को रोक दें. इस बीच सिर्फ 7 देशों को छूट दी गई थी. इनमें भारत, साउथ कोरिया, मलेशिया, साउथ अफ्रीका, श्रीलंका, ताइवान और तुर्किये शामिल थे. छूट के बावजूद इन सातों देशों पर दबाव डाला गया कि ये ईरान से तेल खरीदना कम करें.

इसी बीच 10 जनवरी को ईरान का न्यूक्लियर साइंटिस्ट तेहरान में एक बम धमाके में मारा जाता है. ईरान ने इसका आरोप इजराइल पर लगाया और बदला लेने की धमकी दी. धमकी के 33 दिन के भीतर भारत में 13 अप्रैल को करीब 3 बजे इजराइली डिप्लोमेट की गाड़ी पर हमला हुआ. हमले में भारत में इजराइली राजदूत की पत्नी समेत 4 लोग घायल हुए.

भारत पर और दबाव बढ़ने लगा कि वो ईरान से तेल खरीदना बंद करे. इसके बावजूद जब फरवरी में ईरान से तेल खरीदने के आंकड़े सामने आए तो दुनिया हैरान थी. भारत ने ईरान से तेल खरीदने के मामले में चीन को भी पछाड़ दिया था.

एक के बाद एक हुई इन तीन घटनाओं पर अमेरिकी अखबार द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने एक लेख छापा. इसमें भारत और ईरान के रिश्तों पर लिखा, “दुनिया का सबसे कुख्यात धार्मिक देश तेजी से एक ऐसे दोस्त की तलाश कर रहा है जिसकी जेब बड़ी हो. इसे दोस्ती के लिए दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र मिला है. अंत में दिल्ली ही मुल्लाह की सबसे अच्छी दोस्त बनती नजर आ रही है.”

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