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जीत लगातार, फिर भी मंत्रिमंडल से बाहर; केंद्र में नहीं मिल रहा राजधानी को नेतृत्व

भोपाल: लगातार जीत का दंभ लिए बैठी भाजपा मप्र की राजधानी भोपाल को बरसों से बिसराए हुए है. आखिरी बार मोरार जी देसाई की सरकार में यहां से आरिफ बेग केंद्रीय मंत्री बनाए गए थे. 1984 के चुनाव के बाद यहां से लगातार भाजपा के सांसद लोकसभा में पहुंच रहे हैं, लेकिन यह विडंबना बन गई है कि इन 5 दशकों के करीब पहुंच रहे कार्यकाल में यहां से मंत्रिमंडल में किसी को जगह नहीं मिल पाई है.

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भोपाल संसदीय सीट पर शुरुआती दौर में कांग्रेस का दबदबा रहा.  कांग्रेस को यहां 1957, 1962, 1971, 1980 और 1984 में जीत मिली लेकिन उसके बाद से कांग्रेस कभी भी यह सीट जीत नहीं पाई. 1989 से लेकर 2019 तक भोपाल को बीजेपी को जीत मिली है. 1989 से लेकर 1998 तक में सुशील चंद्र वर्मा जीतते रहे तो 1999 में यहां उमा भारती को जीत मिली थी. इसके बाद दो बार 2004 और 2009 में कैलाश जोशी जीते थे। 2014 में आलोक संजर और 2019 में प्रज्ञा सिंह ठाकुर जीत मिली. इसकी अगली कड़ी में अब 2024 के चुनाव में भोपाल ने आलोक शर्मा को अपना सांसद चुनकर लोकसभा में भेजा है.

नहीं मिला मौका
भोपाल संसदीय क्षेत्र की यह अजीब विडंबना है कि कई चुनावों में सत्ताधारी दल का सांसद रहने के बाद भी भोपाल को पिछले 47 सालों से केन्द्रीय मंत्रीमंडल में जगह नहीं मिल पाई है. पिछले चार दशक से ज्यादा समय से भोपाल से कोई भी सांसद केंद्रीय मंत्री नहीं बन पाया जबकि इस हॉट सीट से कई नामी नेता और दो पूर्व सीएम सांसद रह चुके हैं. 1977 में इमरजेंसी के बाद हुए लोकसभा चुनावों में जनता पार्टी के टिकट पर जीते आरिफ बेग तब मोरारजी देसाई की सरकार में केंद्रीय मंत्री बने थे.

कद बरकरार, पद से इंकार
सियासी लिहाज से अहम और देशभर में चर्चित भोपाल सीट पर भाजपा ने पूर्व सीएम उमा भारती और उनके बाद कैलाश जोशी को मैदान में उतारा. जो बड़े अंतर से चुनाव भी जीते, लेकिन केंद्रीय मंत्री मंडल में उन्हें जगह नहीं मिल पाई.

इन्हें भी रहा मलाल
भाजपा के टिकट पर सुशीलचंद्र वर्मा, आलोक संजर और प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने भी भोपाल लोकसभा सीट से चुनाव जीता, लेकिन केंद्र में लगातार भाजपा की सरकार होने के बाद भी इन नेताओं का भी मंत्री पद पर नंबर नहीं लगा. नामी से लेकर नए चेहरों तक भाजपा ने जिस को भी इस सीट से टिकट दिया, वह जीतकर दिल्ली पहुंचा. लेकिन हर बार भाजपा की झोली में जीत डालनी वाली राजधानी की जनता को पिछले 47 साल से सिर्फ सांसद से ही संतोष करना पड़ रहा है.

वाजपेई से मोदी तक
अटल विहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री का पद तीन बार संभाला है। वे पहले 13 दिन के लिए 16 मई 1996 से 1 जून 1996 तक. फिर लगातार 2 सेशन यानि 8 महीने के लिए 19 मार्च 1998 से 13 अक्टूबर 1999 और फिर तीसरी बार 13 अक्टूबर से 22 मई 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे. लेकिन अटल सरकार के पूरे कार्यकाल में भी भोपाल लोकसभा सीट से कोई सांसद मंत्रीमंडल में अपनी जगह नहीं ले पाया. मोदी सरकार के 2014 और 2019 के दोनों कार्यकाल में भी यही हाल बरकरार रहे.

इस बार भी उम्मीद नहीं
केंद्रीय मंत्रिमंडल शामिल किए जाने के लिए प्रदेश के दिग्गज नेताओं की कतार लगी हुई है. पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और फग्गन सिंह कुलस्ते, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा के नाम इनमें शामिल हैं. भोपाल संसदीय सीट से इस बार आलोक शर्मा ने जीत दर्ज की है. लेकिन वे पहली बार सांसद बने हैं. इसके चलते उनकी दावेदारी कमजोर मानी जा रही है. बड़े नेताओं की मौजूदगी भी आलोक के लिए मंत्रिमंडल में शामिल होने की राह का रोड़ा बनने वाली है. इस बात की उम्मीद जरूर की जा सकती है कि उन्हें किसी केंद्रीय समिति में जगह देकर प्रदेश की राजधानी को नेतृत्व दे दिया जाए.

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