NDA के साथ भी, एनडीए के खिलाफ भी… आखिर चिराग पासवान बिहार में चाहते क्या हैं?

चिराग पासवान ने आरा से यह ऐलान किया कि वह बिहार चुनाव लड़ेंगे और सारण में सभी सीटों पर लड़ने की बात दोहराई. बीजेपी का मजबूत गढ़ माने जाने वाली जगहों पर जाकर बयानबाजी कर रहे चिराग पासवान आखिर चाहते क्या हैं?

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बिहार में अक्टूबर-नवंबर तक होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और महागठबंधन, दोनों ही गठबंधनों में एकजुटता का संदेश देने की होड़ लगी हुई है. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की अगुवाई वाले विपक्षी महागठबंधन में शामिल कांग्रेस, विकासशील इंसान पार्टी और लेफ्ट के नेताओं ने वोटर लिस्ट के गहन पुनरीक्षण के विरोध में बिहार बंद कर, सड़कों पर उतर एकजुटता दिखाई. वहीं, एनडीए में चिराग पासवान के तेवर नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) की टेंशन बढ़ा रहे हैं.

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केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान बार-बार बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कह रहे हैं. चिराग ने पिछले दिनों आरा में नव संकल्प महासभा को संबोधित करते हुए कहा था कि हमारा गठबंधन सिर्फ बिहार की जनता के साथ है. हम सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. अब सारण पहुंचकर भी चिराग ने अपनी यही बात दोहराई है.

उन्होंने यह भी कहा कि सारण की धरती से ऐलान करता हूं कि चुनाव लड़ूंगा. चिराग ने व्यावसायी गोपाल खेमका हत्याकांड को लेकर प्रशासन को भी कठघरे में खड़ा किया. चिराग एक तरफ खुद के चुनाव लड़ने का ऐलान कर रहे हैं, यह कह रहे हैं कि 243 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे और कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर प्रशासन को भी कठघरे में खड़ा कर रहे हैं.

यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि चिराग यह सब उन जगहों पर जाकर कह रहे हैं, जो बीजेपी का मजबूत गढ़ माने जाते हैं और उनकी अपनी पार्टी जीरो है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि चिराग पासवान आखिर चाहते क्या हैं? इसके पीछे सीट शेयरिंग की मेज पर बार्गेनिंग पावर एक वजह है ही, भविष्य का सियासी प्लान भी है.

दरअसल, चिराग पासवान और उनकी पार्टी बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से कभी 60 तो कभी 40 सीटों पर दावा ठोक रही है. कहा यह भी जा रहा है कि 33 से 35 सीटें भी मिलीं तो एलजेपीआर मान जाएगी. अब मुश्किल यह है कि चिराग की पार्टी को 30 सीट भी किस बेस पर मिलेंगी?

पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में एलजेपीआर को अपने कोटे की सभी पांच सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन विधानसभा में पार्टी का प्रतिनिधित्व जीरो है. ऐसे में चिराग भी शायद यह समझ रहे हैं कि सम्मानजनक संख्या में सीटें पानी हैं, तो प्रेशर पॉलिटिक्स के अलावा उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है.

जेडीयू पर दबाव बनाने की रणनीति

चिराग पासवान बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार में खुद मंत्री हैं. 2020 के चुनाव में जब वह एनडीए से किनारा कर अकेले चुनाव मैदान में उतरे, तब भी बीजेपी के खिलाफ कुछ भी बोलने से परहेज किया और खुद को पीएम मोदी का हनुमान बताते रहे. उनके लिए आसान टार्गेट जेडीयू है.

चिराग बार-बार 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात दोहरा रहे हैं, तो उसके पीछे भी जेडीयू पर दबाव बनाने की रणनीति को प्रमुख वजह माना जा रहा है. पिछले चुनाव में चिराग की पार्टी ने जेडीयू को 33 सीटों पर नुकसान पहुंचाया था. एक वजह यह भी है कि एलजेपीआर कई ऐसी सीटों पर भी दावेदारी कर रही है, जहां पिछली बार उसके उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे थे और जीत जेडीयू के हिस्से आई थी.

बीजेपी के गढ़ में सक्रियता क्यों

चिराग पासवान बीजेपी का गढ़ माने जाने वाले बिहार के भोजपुरी बेल्ट में एक्टिव हैं. पहले आरा, फिर सारण में चिराग की महासभा के बाद सवाल बीजेपी के गढ़ में उनकी सक्रियता पर भी उठ रहे हैं. दरअसल, इन दोनों ही जिलों में चिराग की पार्टी जीरो है. चिराग की कोशिश अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाने की है.

इस सक्रियता में वर्तमान की तैयारी तो है ही, भविष्य की रणनीति भी है. इन दोनों ही जिलों में बीजेपी का प्रदर्शन पिछले चुनाव में कमजोर रहा था. भोजपुर जिले की सात में से दो सीटों पर बीजेपी और एक पर जेडीयू उम्मीदवार को जीत मिली थी. बाकी चार सीटों पर महागठबंधन जीता था.

सारण की बात करें तो जिले में 10 विधानसभा सीटें हैं. 2020 के चुनाव में बीजेपी तीन सीटें जीती थी और सात सीटों पर महागठबंधन विजयी रहा था. चिराग इस बेल्ट में सक्रिय हैं जहां उनकी पार्टी का बेस नहीं रहा है, तो इसके पीछे भी बीजेपी का पिछले चुनाव में प्रदर्शन वजह बताया जा रहा है. चिराग की सक्रियता के पीछे बीजेपी को यह संदेश देने की रणनीति है ही कि हम आपके लिए मैदान में हैं, नजर भविष्य में एलजेपीआर के लिए सियासी जमीन तैयार करने पर भी है.

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