अजमेर: पूर्व पार्षद को जमानत याचिका वापस लेना पड़ा महंगा: हाईकोर्ट ने कहा- सभी पीड़िताओं के बयान के बाद जमानत अर्जी पेश की जाए

अजमेर: बिजयनगर ब्लैकमेल कांड के मास्टरमाइंड पूर्व पार्षद की ओर से हाईकोर्ट में जमानत याचिका के लिए अर्जी लगाई गई. इस जमानत याचिका को वापस लेना पूर्व पार्षद को भारी पड़ गया. मास्टरमाइंड के अधिवक्ता ने हाईकोर्ट में जमानत प्रार्थना पत्र को विड्रो करने और पुनः जमानत की अर्जी बाद में लगाने का अवसर मांगा था. इस पर न्यायालय ने सुनवाई करते हुए जमानत प्रार्थना पत्र को विड्रॉ के आधार पर खारिज कर दिया.

न्यायालय ने आदेश दिए कि इस मामले में सभी पीड़िताओं के बयान होने के बाद ही सक्षम न्यायालय में जमानत अर्जी पेश की जाए. हाई कोर्ट में पीड़िताओं की तरफ से अधिवक्ता जेपी गुप्ता ने पैरवी की थी. सरकारी वकील प्रशांत यादव ने बताया कि बिजयनगर थाने में नाबालिग पीड़िताओं से ब्लैकमेल से संबंधित प्रकरण दर्ज हुआ था. इस मामले में पूर्व पार्षद हकीम कुरैशी मास्टरमाइंड था. पूर्व में उसकी जमानत का प्रार्थना पत्र अजमेर पॉक्सो कोर्ट में चार जून को निरस्त कर दिया गया था.

पूर्व पार्षद के द्वारा जमानत पत्र खारिज होने के बाद उसके विरुद्ध हाई कोर्ट में जमानत याचिका लगाई थी. पूर्व पार्षद के अधिवक्ता की ओर से न्यायालय में विड्रॉ करने की स्वीकृति मांगी. साथ ही प्रार्थना पत्र को दोबारा पेश करने का भी अवसर मांगा था. जिस पर हाई कोर्ट ने प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया और आदेश दिए की सभी पीड़िताओं के बयान होने के बाद ही आरोपी के द्वारा जमानत प्रार्थना पत्र लगा सकेगा.

पूर्व निर्दलीय पार्षद हकीम कुरैशी पर कई गंभीर आरोप लगे हैं। हकीम कुरैशी धर्म परिवर्तन के लिए दबाव बनाता था और आरोपियों से दोस्ती करने के लिए मजबूर करता था. इतना ही नहीं, लड़कियों को आरोपियों की पसंद के कपड़े पहनने के लिए भी मजबूर किया जाता था.

कुरैशी पीड़िताओं पर फिजिकल रिलेशन बनाने का दबाव भी बनाता था. वह पीड़िताओं को उनकी अन्य सहेलियों से भी मिलवाने के लिए प्रेरित करता था, ताकि और लड़कियों को भी इस गिरोह में शामिल किया जा सके. कुरैशी पीड़िताओं को अन्य आरोपियों के साथ कैफे में भेजता था और इसके लिए आरोपियों को पैसों से भी मदद करता था.

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