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‘उनके विजन के बिना US-इंडिया में इतना सहयोग संभव नहीं था…’ मनमोहन सिंह को बाइडेन ने ऐसे दी श्रद्धांजलि

दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को अमेरिका के निवर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) ने श्रद्धांजलि अर्पित की है. उन्होंने पूर्व पीएम को ‘सच्चा राजनेता’ और ‘समर्पित लोक सेवक’ बताया है. जो बाइडेन ने बयान जारी करते हुए कहा, “आज संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच सहयोग का अभूतपूर्व स्तर प्रधानमंत्री के रणनीतिक नजरिए और सियासी हिम्मत के बिना मुमकिन नहीं होता.”

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उन्होंने आगे कहा, “यूएस-इंडिया सिविल न्यूक्लियर डील को आगे बढ़ाने से लेकर इंडो-पैसिफिक भागीदारों के बीच पहले क्वाड को लॉन्च करने में मदद करने तक, मनमोहन सिंह ने ‘असाधारण प्रगति’ की रूपरेखा तैयार की, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए दोनों देशों और दुनिया को मजबूत बनाती रहेगी.”

बाइडेन को याद आई मुलाकातें

जो बाइडेन ने यह भी याद किया कि उन्हें 2008 में सीनेट की विदेश संबंध समिति के अध्यक्ष के रूप में और 2009 में अमेरिका की आधिकारिक राजकीय यात्रा के दौरान अमेरिकी उपराष्ट्रपति के रूप में मनमोहन सिंह से मिलने का मौका मिला था.

जो बाइडेन ने कहा, “डॉ. मनमोहन सिंह ने 2013 में नई दिल्ली में भी मेरी मेजबानी की थी. जैसा कि हमने तब चर्चा की थी, अमेरिका-भारत संबंध दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण संबंधों में से एक है. साथ मिलकर, साझेदारों और दोस्तों के रूप में, हमारे देश अपने लोगों के लिए डिग्निटी और बड़ी ताकत का रास्ता तय करते हैं.”

न्यूक्लियर डील को मुकाम तक पहुंचाए थे डॉ. मनमोहन

साल 2008 में भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता हुआ. उस वक्त देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे. राजनीतिक दलों के कड़े विरोध के बावजूद उन्होंने अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौते के लिए बातचीत को आगे बढ़ाया. तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की मदद से डॉ. मनमोहन सिंह कुछ दलों को मनाने में सफल रहे और उन पार्टियों ने परमाणु समझौते का विरोध करना छोड़ दिया.

हालांकि, वामपंथी दलों ने इस डील का पुरजोर विरोध किया और सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. समाजवादी पार्टी ने पहले वाम मोर्चे का समर्थन किया, लेकिन बाद में अपना रुख बदल लिया. मनमोहन सरकार को विश्वास की परीक्षा से गुजरना पड़ा.

मनमोहन सिंह और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने 18 जुलाई, 2005 को समझौते की रूपरेखा पर एक संयुक्त घोषणा की और यह औपचारिक रूप से अक्टूबर 2008 में लागू हुआ. यह भारत के लिए एक बड़ी जीत थी. परमाणु समझौते पर सिंह ने जो सख्त रुख अपनाया, इसने भारत और अमेरिका को एक-दूसरे के करीब लाने में भी मदद की और जिस तरह से उन्होंने 2008 की आर्थिक मंदी के दौरान देश को आगे बढ़ाया, इसका फायदा उन्हें 2009 के लोकसभा चुनाव में मिला और एक बार फिर UPA की सरकार आ गई. यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए ऐतिहासिक कदम माना गया.

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