ओडिशा में 14 जून से रजोत्सव (Raja Parv) की शुरुआत हो गई है. यह त्योहार तीन दिन तक चलेगा. यानि 14 जून से शुरू होकर 16 जून तक ओडिशा में रजोत्सव (Rajotsava) मनाया जाएगा. इन दिनों तक महिलाएं कोई काम नहीं करेंगी. खाना भी पुरुष ही बनाएंगे. महिलाओं के लिए खास इंतजाम किए जाएंगे. वो तीन दिन तक नए-नए पारंपरिक कपड़े पहनेंगी. झूला झूलेंगी और नाच-गाना करेंगी. इसके मनाये जाने की सुदीर्घ परम्परा ओडिशा में रही है.
कहा जाता है कि इसकी शुरुआत दक्षिण ओडिशा से हुई जो अब पूरे ओडिशा (Odisha Festival) का लोकपर्व बन चुका है. कहते हैं कि जिस प्रकार महिलाओं के प्रतिमास मासिक धर्म होता है, जो उसके शरीर-विकास का प्रतीक होता है. ठीक उसी प्रकार कुमारी कन्याओं के रजोत्सव का यह महापर्व लगभग चार दिनों तक बड़े ही आन्नद-मौज के साथ ओडिशा में मनाया जाता है. उस दिन भगवान सूर्यदेव की पूजा का विशेष महत्त्व है. ऐसी मान्यता है कि उससे भावी लोकजीवन में शांति तथा अमन-चैन आता है. रजोत्सव का अपना सामाजिक महत्व भी है.
World War 3 will be for language, not land! pic.twitter.com/0LYWoI3K0r
— India 2047 (@India2047in) July 4, 2025
क्या-क्या करती हैं महिलाएं?
यूं तो ये पर्व कुंवारी कन्याओं के लिए होता है. लेकिन इसे सभी उम्र की महिलाएं (Festival For Women) धूम-धाम से मनाती हैं. पहली रज को घर की बालिकाएं, युवतियां, महिलाएं तथा बुजुर्ग महिलाएं पूरे दिनभर आपस में मिलकर मौज-मस्ती करतीं हैं. नाच-गाना करती हैं. लूडो खेलती हैं. रज पर पान खाती हैं. झूला झूलती हैं. परम्परागत साड़ी और पहनावा पहनती हैं. अपने हाथों मेंहदी रचाती हैं.
भगवान जगन्नाथ की पूजा
मान्यता है कि जिस प्रकार धरती वर्षा के आगमन के लिए अपने आपको तैयार करती है, ठीक उसी प्रकार पहली रज को कुमारी कन्याएं अपने आपको तैयार करतीं हैं. सुबह उठकर वे अपने शरीर पर हल्दी-चंदन का लेप लगातीं हैं. पवित्र स्नान करतीं हैं. महाप्रभु श्री जगन्नाथ भगवान की पूजा करतीं हैं. अपने भावी सुखमय जीवन हेतु भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना करतीं हैं.
क्या खाती हैं महिलाएं?
तीन दिन तक महिलाएं बिना पका हुआ भोजन करतीं हैं. खाने में नमक तक नहीं लेतीं हैं. रजोत्सव में महिलाएं मौसमी फल कटहल का कोवा, आम, केला, लीची और अन्नानास आदि खातीं हैं. वे ओडिशा का परम्परागत भोजन पूड़-पीठा खाती हैं. पैरों में चप्पल तक नहीं पहनतीं. लगातार तीन दिनों तक घर के काम में किसी प्रकार काट-छिल भी नहीं करतीं हैं. सबसे रोचक बात यह है कि इन तीन दिन तक ओडिशा में धरती में कोई खुदाई भी नहीं होती है.