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रायपुर में 1000 साल पुराने शस्त्रों की पूजा:विजयादशमी के ही दिन खुलता कंकाली मठ, बड़ी संख्या में देवी दर्शन करने पहुंचे श्रद्धालु

रायपुर के ब्राम्हणपारा इलाके में स्थित कंकाली मठ का दरवाजा साल में सिर्फ एक बार दशहरे के दिन खुलता है। मठ के अंदर 1000 साल पुराने नागा साधुओं के कमंडल, कपड़े, चिमटा, त्रिशूल, ढाल और कुल्हाड़ी रखे हुए हैं। इनकी पूजा की जाती है। इन्हें देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचे।

दरअसल, विजयादशमी पर 18 घंटे के लिए मठ के कपाट खोला गया है। लोग सुबह 6 बजे से मठ में दर्शन करने पहुंचे। आज रात 12 बजे मंदिर का पट बंद कर दिया जाएगा। ऐसी मान्यता है कि आज के दिन कंकाली देवी अपने अस्त्र शस्त्र के साथ मठ में विराजमान होती हैं।

इसलिए साल में एक दिन खुलता है मठ

महंत कृपाल गिरी महाराज के बारहवीं पीढ़ी मठ की देखरेख कर रही है। कंकाली मठ के विजित गिरी ने बताया कि एक दिन माता ने स्वप्न में कृपाल गिरी महाराज को निर्देश दिया कि तालाब किनारे मंदिर निर्माण के बाद प्रतिमा को वहां स्थापित किया जाए।

लेकिन मठ से मंदिर में माता को स्थापित करने के बाद से महंत कृपाल गिरी दुखी रहते थे। तब माता जी ने उन्हें दर्शन दिया और कहा कि विजय दशमी के दिन वे अपने पुराने घर में विराजमान होगी। इसलिए दशहरा के दिन मठ खोला जाता है और वहां पूजा होती है।

तांत्रिक साधना केंद्र के रूप में मठ ख्याति

बताया जाता है कि कंकाली मठ का निर्माण श्मशान घाट पर किया गया है। नागा साधुओं के तांत्रिक साधना केंद्र के रूप में इसकी ख्याति थी। नागा साधुओं की समाधि इसी के आसपास है। वहीं, इसके आसपास भी अन्य मंदिर है।

कंकाली मंदिर और तालाब का आध्यात्मिक महत्व

कंकाली तालाब का इतिहास 650 साल पुराना है। इस तालाब को पहले कंकाली कुंड के नाम से पहचाना जाता था। महंत कृपाल गिरी महाराज ने मंदिर और तालाब का निर्माण कराया था। बताया जाता है कि देवी मां की प्रतिमा पहले मठ में स्थापित थी।​​​​​ इसलिए माता के भक्त अपनी मुराद लेकर यहां पहुंचते है।

तालाब में ज्योत जवारा का होता है विसर्जन

रायपुर का कंकाली तालाब और कंकाली मंदिर संन्यासियों की साधना का केंद्र रहा है। इसलिए इस मंदिर की मान्यता अधिक है। हर साल चैत्र और शारदीय नवरात्र में नवमी और दशमी को तालाब में ज्योत और जवारा का विसर्जन किया जाता है।

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