बैलों की चाहे जितनी भी नस्लें हों, लेकिन लोगों की ओंगोले नस्ल के प्रति दीवानगी अनोखी ही है. ऐसा कहा जाता है कि आंध्र प्रदेश के गुंडलाकम्मा के पालेरू नदी के मध्य में स्थित एक छोटा सा गांव ओंगोल नस्ल के बैलों और गायों का घर है. स्थानीय लोगों का कहना है कि मजबूत ओंगोल नस्ल का जन्म इस क्षेत्र की जलवायु, मिट्टी में लवणता और वहां उगने वाली घास से हुआ है. ओंगोल नस्ल के बैलों और गायों का वजन एक हजार किलोग्राम से अधिक होता है.
बैलों की यह नस्ल एक बार में बिना थके पांच या छह एकड़ जमीन जोत सकती है. फरवरी में ब्राजील में हुई एक नीलामी में ओंगोले नस्ल की एक गाय की कीमत 41 करोड़ रुपये रही. इसने दुनिया की सबसे महंगी गाय का रिकार्ड बनाया है. मर्सिडीज बेंज कार की क़ीमत Rs. 46.05 लाख से शुरू होती है. ऐसे में आप इस गाय की कीमत में 80 मर्सिडीज कार खरीद सकते हैं.
ओंगोल नस्ल की आबादी
ओंगोल बैल अमेरिका , नीदरलैंड , मलेशिया , ब्राजील , अर्जेंटीना , कोलंबिया , मैक्सिको , पैराग्वे , इंडोनेशिया , वेस्ट इंडीज , ऑस्ट्रेलिया , फिजी , मॉरीशस , इंडो-चीन और फिलीपींस तक जा चुके हैं. ब्राजील में ओंगोल की अलग नस्ल की आबादी को नेलोर कहा जाता है और कहा जाता है कि इसकी संख्या कई मिलियन है. ओंगोले को ब्राजील में डंप किये जाने के पीछे एक बड़ी कहानी है. 1868 में, महारानी विक्टोरिया के लिए कुछ उपहार लेकर एक जहाज इंग्लैंड के लिए रवाना हुआ था.
कैसे ब्रााजील पहुंची ओंगोल नस्ल?
उपहार में दो ओंगोल नस्ल के मवेशी भी शामिल थे. हालांकि, जब जहाज ब्राजील के तट पर पहुंचा तो कुछ स्वार्थी लोगों ने पैसों के लिए वहां मवेशियों को बेच दिया, जिसकी वजह से ब्राजील की धरती पर ओंगोल नस्ल का उदय शुरू हुआ. ब्राजील में 150 वर्ष पहले गई ओंगोल नस्ल की गायों और बैलों की संख्या अब करोड़ों में पहुंच गई है. ऐसे में 1962 में भारत सरकार द्वारा उनके निर्यात पर प्रतिबंध लगाये जाने तक ओंगोले मवेशियों का ब्राजील को निर्यात जारी रहा. ब्राज़ीलियन एसोसिएशन ऑफ़ ज़ेबू ब्रीडर्स के अनुसार, ब्राज़ील की वर्तमान पशुधन आबादी लगभग 220 मिलियन है. वहीं इनमें से लगभग 80 प्रतिशत मवेशी ओंगोल नस्ल के हैं.
ओंगोल मवेशियों की संख्या
वर्तमान में हमारे देश में ओंगोल मवेशियों की संख्या केवल 4 लाख है. इनमें से 3 लाख तक लोग आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में हैं. पशुपालन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इन 4 लाख मवेशियों में से केवल कुछ हजार ही अच्छी नस्ल के हैं. ओंगोले जनजाति को सबसे प्राचीन माना जाता है. हड़प्पा और मोहनजोदड़ो सभ्यताओं में पाए गए कूबड़ वाले बैलों की छवियों को ओंगोल नस्ल का बताया जाता है. शिव के वाहन नंदी का भी ओंगोले जनजाति से गहरा संबंध है.
कम हो रही ओंगोल मवेशियों की संख्या
ऐसे दावे हैं कि इन मवेशियों का जन्मस्थान साइबेरिया है और वे कई माध्यम से भारत में आए और आंध्र प्रदेश में गुंडलकम्मा, मूसी और अलेरू नदी घाटियों में बस गए. ओंगोल मवेशियों की संख्या धीरे-धीरे कम हो रही है. 1986 में गुंटूर जिले में ओंगोल पशुधन अनुसंधान केंद्र खोला गया. श्री वेंकटेश्वर पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय के तत्वावधान में संचालित यह केंद्र ओंगोल नस्ल के आनुवंशिक संरक्षण की दिशा में काम कर रहा है. इनके रखरखाव और प्रशिक्षण की लागत 30,000 से 40,000 रुपये प्रति माह के बीच है. इस प्रजाति को बचाने की जिम्मेदारी सरकार के साथ-साथ लोगों की भी है.