दिल्ली हाई कोर्ट ने शाही ईदगाह प्रबंध समिति को फटकार लगाई है. झांसी की रानी की मूर्ति को लेकर कोर्ट में सांप्रदायिक राजनीति करने और सिंगल जज के खिलाफ निंदनीय दलीलें देने के लिए माफी मांगने के लिए कहा है. कोर्ट ने कहा कि आपका सुझाव ही विभाजनकारी है. सांप्रदायिक रेखाओं पर विभाजन ना करें. जज ने हाल ही में कुछ विवादित भूमि को मस्जिद की बजाय दिल्ली विकास प्राधिकरण का घोषित किया था. कोर्ट ने मस्जिद समिति के आवेदन में कही गई कुछ पंक्तियों पर कड़ी आपत्ति जताई. इसमें सिंगल जज के उस फैसले की सत्यता पर सवाल उठाया गया था, जिसके तहत डीडीए को शाही ईदगाह पार्क में झांसी की रानी की मूर्ति लगाने की इजाजत भी दी गई थी.
बुधवार को जब मामले की सुनवाई हुई तो दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला की पीठ ने विवाद को सांप्रदायिक रंग देने के लिए समिति की निंदा की. उन्होंने कहा कि इस तरह के आचरण के लिए गुरुवार तक माफी मांगें. दिल्ली हाई कोर्ट मामले में अगली सुनवाई 27 सितंबर को करेगा. जस्टिस मनमोहन ने कहा कि कोर्ट के माध्यम से सांप्रदायिक राजनीति खेली जा रही है!… आप मामले को ऐसे पेश कर रहे हैं जैसे कि यह एक धार्मिक मुद्दा है. यह कानून और व्यवस्था की स्थिति है.
कोर्ट ने कहा कि झांसी की रानी की प्रतिमा होना बहुत गर्व की बात है. हम इन दिनों महिला सशक्तीकरण की बात करते हैं और आपके पास एक मुद्दा है. वह धार्मिक रेखाओं को पार करते हुए एक राष्ट्रीय नायक हैं. याचिकाकर्ता (मस्जिद समिति) सांप्रदायिक रेखाएं खींच रहा है और अदालत का इस्तेमाल कर रहा है. सांप्रदायिक रेखाओं पर विभाजन न करें. आपका सुझाव ही विभाजनकारी है.
आपकी जमीन थी तो मूर्ति स्थापित करने के लिए आगे आना था
कोर्ट ने कहा कि अगर जमीन आपकी थी तो आपको खुद मूर्ति स्थापित करने के लिए स्वेच्छा से आगे आना चाहिए था. सुनवाई के दौरान शाही ईदगाह समिति के वकील ने तर्क दिया कि शाही ईदगाह के सामने झांसी की रानी की मूर्ति स्थापित करने से क्षेत्र में कानून और व्यवस्था की स्थिति पैदा हो सकती है. दिल्ली अल्पसंख्यक समिति ने पहले यथास्थिति का आदेश पारित किया था. इसलिए मूर्ति स्थापित नहीं की जा सकती.
वकील ने कहा कि अल्पसंख्यक समिति के इस आदेश को एकल जज के समक्ष चुनौती नहीं दी गई थी. इसलिए यह आदेश अभी भी लागू होगा. डीडीए और दिल्ली नगर निगम द्वारा एक वैकल्पिक स्थल की पहचान की गई है, जहां मूर्ति स्थापित की जा सकती है. सुनवाई में नाटकीय मोड़ तब आया जब डीडीए के वकील ने समिति की दलीलों में कुछ निंदनीय पैराग्राफों की ओर कोर्ट का ध्यान आकर्षित किया.
आज गुरुवार तक माफीनामा देने का आदेश
इसके बारे में उन्होंने कहा कि वो सिंगल जज की ओर निर्देशित थे, जिन्होंने हाल ही में घोषणा की थी कि विवादित जमीन डीडीए की है. खंडपीठ ने शाही ईदगाह प्रबंध समिति को इस तरह की दलीलें देने के लिए आज गुरुवार तक माफीनामा देने का आदेश दिया. कोर्ट की फटकार के बाद समिति के वकील ने बिना शर्त माफीनामा जारी करने पर सहमति जताने के अलावा अपील वापस लेने की इजाजत मांगी.