चेन्नई: हवाई जहाज आसमान में इतनी तेजी से क्यों उड़ते हैं? क्या आपने कभी सोचा है कि रेलगाड़ियां इतनी गति से क्यों नहीं उड़ सकतीं? हाइपरलूप तकनीक इस सोच का जवाब है. जब किसी वस्तु का ज़मीन से घर्षण होता है तो उसकी गति सीमित होती है, लेकिन उड़ान में घर्षण प्रतिरोध बेहद कम हो जाता है.
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इसका मतलब है कि जब आप वायुहीन निर्वात में उड़ते हैं, तो हवा का अवरोध हट जाता है और आपको तेज़ गति मिलती है. यही हाइपरलूप तकनीक का आधार है. हालांकि हाइपरलूप पर शोध व्यापक रूप से 1960 के दशक से ही चल रहा है, लेकिन 2012 में अमेरिकी उद्यमी एलन मस्क ने इस तकनीक पर नए शोध की घोषणा की.
यह तकनीक एक दशक पहले इस्तेमाल में आने लायक परिपक्व नहीं हुई है. इसी संदर्भ में आईआईटी चेन्नई ने भारत में हाइपरलूप तकनीक के लिए एक मजबूत आधार स्थापित किया है. इस परियोजना के लिए, आईआईटी-चेन्नई के छात्रों की एक टीम हाइपरलूप पर शोध कर रही है. इस समूह में 11 अलग-अलग पाठ्यक्रमों के 76 स्नातक और स्नातकोत्तर छात्र शामिल हैं. वे हाइपरलूप के विभिन्न चरणों को डिजाइन कर रहे हैं.
हाइपरलूप के लिए भी तीन क्षेत्र महत्वपूर्ण हैं.
- लूप (कम वायु दाब वाला ट्यूब जैसा हिस्सा)
- पॉड (कोच जैसा वाहन)
- टर्मिनल (वह क्षेत्र जहां कोच रुकते हैं)
शोध करने वाली टीम ने 3 चरणों में पॉड नामक ट्रेन विकसित की है. आधुनिक डिजाइन वाले हाइपरलूप पॉड का नाम गरुड़ रखा गया है. ट्रायल रन के लिए पॉड के चलने के लिए 425 मीटर की दूरी पर लूप पथ का निर्माण किया गया है. घोषणा की गई है कि चेन्नई के बगल में तैयूर में स्थापित परिसर में वर्ष 2025 में इस ट्रैक पर एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता आयोजित की जाएगी.
इस बारे में आईआईटी चेन्नई के निदेशक, वी. कामकोडी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि ‘आईआईटी, चेन्नई द्वारा डिजाइन किए जा रहे हाइपरलूप पर 4 चरणों में शोध किया जाएगा. सबसे पहले पॉड का डिजाइन तैयार किया जाएगा, जो सामान्यतः ट्रैक पर तेज गति से नहीं चल सकता. अगर इसे ट्रैक से एक इंच ऊपर उठा दिया जाए, तो यह तेज गति से चलेगा.’
हाइपरलूप को कैसे सक्रिय करें?: हम देखते हैं कि हवा में विमान तेजी से ऊपर जाता है, लेकिन सड़क पर कार धीमी गति से चलती है. हाइपरलूप तकनीक में खुले स्थान में चुंबकीय बल (लेविटेशन) का उपयोग करके संचालन करना होता है.
“अगले लेवल पर एक ट्यूब लगाई जा सकती है, जिसमें हवा का दबाव कम करके चुंबकीय बल से ट्रेन को चलाया जाएगा, जो 500 से 600 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से चल सकती है. तीसरे चरण में ट्यूब के अंदर माल भेजा जाएगा. उसके बाद सफल होने पर हम लोगों को भेज सकेंगे. यानी ट्रेन का डिब्बा इस ट्यूब में कम हवा के दबाव के साथ ट्रैक से एक इंच की ऊंचाई पर उड़ेगा. इसके चारों ओर लगाई गई पाइपनुमा ट्यूब कोच को बाहरी हवा से बचाएगी. इससे कोच भागेंगे नहीं, बल्कि स्वतंत्र रूप से उड़ेंगे.” वी कामकोडी, निदेशक, आईआईटी चेन्नई
उन्होंने कहा, “हम इस बात पर शोध कर रहे हैं कि वैक्यूम ट्यूब में तेज़ गति से यात्रा करने पर मनुष्य के साथ क्या होता है. शोध 4 चरणों में किया जा रहा है. पहले चरण में चुंबकीय शक्ति का उपयोग करके एक बॉक्स को उड़ाने का परीक्षण पूरा हो चुका है.”
कामकोडी ने कहा, “दूसरे चरण में, हमने 425 मीटर पर वैक्यूम में परीक्षण के लिए एक ट्यूब डिज़ाइन और स्थापित की है. एशिया की सबसे लंबी हाइपरलूप ट्यूब यहीं स्थापित की गई है. परीक्षण आयोजित करने के अलावा, अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाएंगी. हाइपरलूप तकनीक में रुचि रखने वाला कोई भी व्यक्ति इसमें भाग ले सकता है. पुरस्कार विजेताओं को हाइपरलूप तकनीक विकसित करने का तरीका भी प्रेरित करेगा.”
अनुसंधान मंच स्थापित करने के लिए एलएंडटी और भारतीय रेलवे द्वारा वित्त पोषण प्रदान किया गया है. परीक्षण के प्रयास सही हैं, यह कब लोगों के लिए उपलब्ध होगा, चेन्नई से बेंगलुरु तक 30 मिनट में यात्रा करना कब संभव होगा? इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कामकोडी ने कहा कि ‘इसे व्यावसायिक रूप से परिवहन करने के लिए भी प्रगति हो रही है.’
कामकोडी ने कहा, “चेन्नई के आईआईटी रिसर्च सेंटर में सेंटर फॉर रेलवे रिसर्च नामक एक संगठन शुरू होने जा रहा है. इस संयुक्त उद्यम के तहत सरकार ट्रैक बिछाने के बाद पॉड नामक वाहन बनाएगी और सबसे पहले माल भेजेगी.’ उन्होंने कहा कि ‘हमें यह देखना होगा कि यह कितने किलो का माल ढो सकता है. इसलिए इसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाना चाहिए.”
उन्होंने कहा कि ‘मानवों को तैनात करते समय मानक संचालन प्रक्रियाओं का पालन किया जाएगा. हाइपरलूप चलाने के लिए मानक दिशा-निर्देश भी तैयार किए जाने हैं. मनुष्यों को भेजने के लिए परीक्षण पहले पूर्ण वायु प्रवाह के साथ और फिर कम वायु प्रवाह के साथ किया जाएगा.’ कामकोडी ने कहा कि ‘अगला चरण कार्गो भेजना है और फिर हम लोगों को भेज सकते हैं.’
अंतरराष्ट्रीय हाइपरलूप प्रतियोगिता : अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता के बारे में अधिक जानकारी देते हुए, डॉ. कामकोडी ने कहा, “हम जनवरी से अप्रैल 2025 के बीच मौसम की स्थिति के आधार पर विशिष्ट तिथियों पर हाइपरलूप अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता आयोजित करने की योजना बना रहे हैं. हम ताइयूर परिसर में स्थापित हाइपरलूप ट्यूब में परीक्षण करेंगे और जो कोई भी इस तकनीक में रुचि रखता है, वह परीक्षण कर सकता है. हम ऐसा करने के अवसर भी बनाने जा रहे हैं.”
उन्होंने यह भी कहा कि ‘इस तकनीक को रेलवे ट्रैक की तरह लगातार ठीक करने की जरूरत नहीं है. यहां-वहां ट्यूब बनाकर जोड़ा जा सकता है. अगर मौजूदा 425 मीटर ट्रैक ठीक से काम करता है, तो इस तकनीक से जुड़ी कंपनियां तुरंत पूरे भारत में ट्रैक बिछाने के लिए आगे आ सकती हैं. ढाई साल के अंदर इसका इस्तेमाल माल ढुलाई के लिए किया जा सकेगा. साथ ही, 5 साल के अंदर इस तकनीक के बिजली से चलने की पूरी संभावना है, इसलिए प्रदूषण नहीं होगा.’
आज आम इस्तेमाल में आने वाली हवाई जहाज़ और रेलवे जैसी सेवाएं कभी इसी तरह के बुनियादी शोध पर आधारित थीं. हाइपरलूप को कल की तकनीक के लिए आज की उन्नति माना जाना चाहिए. चुंबकीय बल पर आधारित उड़ने वाली ट्रेनें भी कोई नई तकनीक नहीं है, जापान में बुलेट ट्रेनों में इस तकनीक का इस्तेमाल करने की योजना बनाई गई थी.
लेकिन चूंकि इसके लिए अलग-अलग ट्रैक वाली व्यवस्था की जरूरत होती है, इसलिए ‘मैग्लेव ट्रेन’ की सेवा का जन्म हुआ. ये ट्रेनें फिलहाल चीन, दक्षिण कोरिया और जापान में ही इस्तेमाल हो रही हैं. ये ट्रेनें अधिकतम 500 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने में सक्षम हैं.
माना जा रहा है कि इसी तकनीक से ट्रेनों को वैक्यूम में चलाकर 700 से 900 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार हासिल की जा सकती है. चेन्नई से बेंगलुरु तक 30 मिनट की यात्रा के सपने को साकार करने में आईआईटी चेन्नई का शोध एक बड़ा मील का पत्थर है.