कहते हैं न जब बात आत्मसम्मान पर आए तो न तो रुपए का अमाउंट मैटर करता है और न ही कोई सामान, फिर तो बस खुद के अस्तित्व की लड़ाई लड़ी जाती है. अपने इसी आत्मसम्मान को बचाने की लड़ाई का एक मामला मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले से आया है. यहां रहने वाले शिवराज सिंह ठाकुर ने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और इस लड़ाई में जीत भी हासिल की.
इस जीत के लिए उन्होंने 11 साल का इंतजार किया है. लंबे इंतजार और धैर्य से मिली इस जीत के बाद अब उन्होंने राहत की सांस ली है. शिवराज की ये लड़ाई एक जूते को लेकर शुरू हुई थी. जूता खराब था और दुकानदार ने शिवराज से कुछ ऐसा कहा था, जिसकी टीस को मिटाने के लिए शिवराज उपभोक्ता फोरम पहुंचे और सालों-साल लड़ाई की और फैसले का इंतजार करते रहे.
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— India 2047 (@India2047in) July 4, 2025
600 रुपए का जूता 2013 में शुरू हुई लड़ाई
दरअसल यह मामला 2013 में शुरू हुआ जब शिवराज ठाकुर ने बालाघाट के सुभाष चौक स्थित ज्योति फुट वेयर से 600 रुपये के जूते खरीदे थे. जूते खरीदने के मात्र दो दिन बाद ही उनका सोल अंदर से फट गया. जब शिवराज जूते बदलने के लिए दुकानदार के पास पहुंचे, तो दुकानदार ने न केवल उनकी शिकायत को नजरअंदाज किया, बल्कि उनकी बेइज्जती करते हुए उनकी औकात पर भी सवाल उठाए.
नहीं बदले जाएंगे जूते
दुकानदार ने कहा कि यह जूते अब नहीं बदल सकते क्योंकि जूते में कोई गारंटी और वारंटी नहीं होती. तभी शिवराज ने कहा कि खरीदते वक्त तो आपने बड़ी-बड़ी बातें की थीं. इसी बात को लेकर दुकानदार गुस्सा हो गया. ग्राहक शिवराज ने कहा कि वह इस पूरे मामले को लेकर उपभोक्ता फोरम में जाएगा और इसकी शिकायत करेगा. इसी बात पर दुकानदार ने कहा कि तुम्हारे जैसे बहुत ग्राहक देखे हैं. वहां जाकर भी क्या कर लोगे? इसके भी 2000 रुपये लगते हैं. अब देखते हैं कि तुम्हारी भी कितनी औकात है? इस अपमानजनक व्यवहार से आहत शिवराज ने अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया. 2013 में उन्होंने बालाघाट के उपभोक्ता फोरम में मामला दर्ज किया. हालांकि, 2 महीन तक केस चलने के बाद उपभोक्ता फोरम बालाघाट के फैसले से संतुष्ट न होने पर उन्होंने राज्य उपभोक्ता फोरम, भोपाल में अपील की.
इस मामले का फैसला आने में 11 साल लग गए. अंत में मध्य प्रदेश राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग, भोपाल ने दुकानदार पर तीन हजार 40 रुपये का जुर्माना लगाया. इसमें 600 रुपये की मूल राशि के साथ 6% वार्षिक ब्याज, 1000 रुपये शारीरिक और मानसिक पीड़ा के लिए, और 1000 रुपये अपील के खर्च के लिए शामिल थे. इस फैसले से यह स्पष्ट हुआ कि न्याय की प्राप्ति में चाहे जितना भी समय लगे, अगर इरादे मजबूत हों तो इंसान अपने आत्मसम्मान की रक्षा कर सकता है. शिवराज ठाकुर की इस लड़ाई ने न केवल उन्हें न्याय दिलाया, बल्कि यह भी दिखाया कि एक आम नागरिक भी अपने अधिकारों के लिए खड़ा हो सकता है.